क्या है RELOS Pact जिस पर पुतिन ने कर दिए हस्ताक्षर? भारत-रूस के रिश्ते और होंगे मजबूत, जानें पाक-चीन टेंशन में क्यों
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत-रूस के बीच हुए RELOS Pact को मंजूरी देकर इसे कानून का रूप दे दिया है. यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के सैन्य अड्डों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर लॉजिस्टिक सपोर्ट, ईंधन, रखरखाव और आपूर्ति की सुविधा देता है. RELOS Pact से भारत-रूस के रक्षा सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास, समुद्री-हवाई सुरक्षा, आपदा राहत और रणनीतिक साझेदारी को नई मजबूती मिलने की उम्मीद है.
भारत और रूस की रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में RELOS Pact को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संघीय कानून के रूप में हस्ताक्षर कर दिया है. यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के सैन्य बेस, वायुक्षेत्र, पोर्ट व लॉजिस्टिक्स संसाधनों तक पहुंच और सहयोग को व्यवस्थित करता है.
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भारत-रूस के बीच रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (RELOS) समझौते को स्टेट ड्यूमा (निचले सदन) ने 2 दिसंबर को और काउंसिल ऑफ फेडरेशन (ऊपरी सदन) ने 8 दिसंबर को मंजूरी दी थी. इस समझौते को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था ताकि इसे संघीय कानून बनाया जा सके.
क्या है RELOS Pact?
RELOS का पूरा नाम Reciprocal Exchange of Logistic Support Agreement है. यह एक द्विपक्षीय सैन्य-लॉजिस्टिक समझौता है, जिसे भारत और रूस ने 18 फरवरी 2025 को साइन किया था. अब रूस ने इसे अपने संघीय कानून के रूप में मंजूर कर दिया है. इसके तहत दोनों देशों की सेनाओं को आपसी सैन्य सुविधाओं और रसद सहायता का साझा उपयोग करने का कानूनी ढांचा मिलता है.
10 प्वाइंट्स में समझें यह समझौता अहम क्यों?
1. RELOS (Reciprocal Exchange of Logistic Support) एक सैन्य लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज समझौता है जो भारत और रूस के बीच सैनिकों, युद्धपोतों, विमानों और उपकरणों के संचालन व समर्थन के नियम तय करेगा.
2. यह समझौता 18 फरवरी 2025 को साइन किया गया और रूसी संसद (डुमा और फेडरेशन काउंसिल) द्वारा मंजूर होने के बाद, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने इसे संघीय कानून के रूप में 15 दिसंबर 2025 को साइन कर दिया.
3. भारत और रूस दोनों एक-दूसरे के सैन्य बेस, वायुक्षेत्र और बंदरगाहों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे सेनाओं की आवाजाही और रसद सहायता अधिक सुधार और कानूनी रूप से सुनिश्चित होती है.
4. ईंधन, रखरखाव, उपकरण, आपातकालीन सहायता, पोर्ट कॉल, एयरफील्ड एक्सेस, और संयुक्त अभ्यासों के दौरान रसद सहायता शामिल है.
5. यह तब तक पूर्ण रूप से लागू नहीं होगा जब तक दोनों देशों के बीच औपचारिक पुष्टिकरण दस्तावेजों का आदान-प्रदान नहीं हो जाता.
6. कुछ रिपोर्टों के अनुसार यह प्रारंभिक रूप से 5 वर्ष के लिए होगा और आवश्यकतानुसार आगे बढ़ाया जा सकता है.
7. संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण, मानवीय सहायता मिशन, आपदा राहत और अन्य आपसी स्वीकृत कार्रवाइयाँ इस समझौते के अंतर्गत आसानी से हो सकेगी.
8. दोनों देशों के सैनिक, विमान और युद्धपोत आपसी सुविधाओं में प्रवेश कर सकेंगे, जिससे सैन्य परिचालन और रसद प्रबंधन और अधिक प्रभावी होगा.
9. यह रूस-भारत के लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक व रक्षा सहयोग को आधुनिक, कानूनी और व्यवस्थित रूप देता है.
10. इससे दोनों देशों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र तथा अन्य वैश्विक सुरक्षा परिदृश्यों में सहयोग का विस्तार करने में सहायता मिलेगी.
किन क्षेत्रों में मिलेगी मजबूती?
संयुक्त सैन्य अभ्यास और प्रशिक्षण : RELOS के तहत संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण अभियान ज़्यादा व्यवस्थित ढंग से हो सकेंगे, जिससे दोनों सेनाओं का परिचालन तालमेल मजबूत होगा.
रसद और लॉजिस्टिक्स सहयोग : पोर्ट्स, एयरबेस और आपूर्ति सुविधाओं पर आपसी लॉजिस्टिक्स सहायता से परिचालन क्षमता बढ़ेगी.
आपदा राहत और मानवीय सहायता : प्राकृतिक आपदाओं और आपात स्थितियों में सहायता प्रदान करना आसान होगा.
समुद्री और वायु क्षेत्र सहयोग : दोनों देशों के जहाज और विमान एक-दूसरे के नियंत्रण क्षेत्र में रसद सहायता सहित परिचालन कर सकेंगे?.
वैश्विक रणनीतिक सहयोग : इसे दोनों देशों के बीच बढ़ते सामरिक विश्वास और मल्टी पोलर वर्ल्ड आर्डर की दिशा में कदम के रूप में देखा जा रहा है.
पाक-चीन की क्यों तनी भौहें?
RELOS Pact कोई सीधा सैन्य गठबंधन नहीं है, लेकिन यह एक शक्तिशाली राजनीतिक संकेत है. पाकिस्तान के लिए यह भारत की बढ़ती सैन्य क्षमता का संकेत है. जबकि चीन के लिए यह चेतावनी है कि भारत वैश्विक स्तर पर बहु-ध्रुवीय और संतुलित रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है. भारत केवल पश्चिमी देशों पर निर्भर नहीं है, बल्कि रूस जैसे पारंपरिक रक्षा साझेदार के साथ भी गहरे सैन्य तंत्र बना रहा है.
चीन-पाकिस्तान के साथ एक साथ भारत की टू फ्रंट वार होने पर लॉजिस्टिक और अन्य जरूरतों की सैन्य सामान की उपलब्धता भारत के पक्ष में रहेगा. रूस के भारत के साथ खड़े रहने से CPEC और क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों पर अप्रत्यक्ष असर पड़ सकता है.





