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भारत में गरीबी का नया सच: मुसलमानों में गरीबी हिंदुओं से कम, पनगढ़िया रिपोर्ट ने बदली पुरानी धारणा

एक नई रिसर्च रिपोर्ट ने भारत की गरीबी को लेकर वर्षों से चली आ रही आम धारणा को चुनौती दी है. अरविंद पनगढ़िया और विशाल मोरे द्वारा तैयार इस पेपर में दावा किया गया है कि भारत ने 2011-12 से 2023-24 के बीच चरम गरीबी को लगभग खत्म कर दिया है. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि 2023-24 में मुसलमानों में चरम गरीबी दर 1.5% और हिंदुओं में 2.3% रही - यानी मुसलमानों की गरीबी दर हिंदुओं से कम पाई गई. ग्रामीण भारत में अंतर और भी स्पष्ट है: मुसलमान 1.6%, हिंदू 2.8%.

भारत में गरीबी का नया सच: मुसलमानों में गरीबी हिंदुओं से कम, पनगढ़िया रिपोर्ट ने बदली पुरानी धारणा
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( Image Source:  Sora AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 11 Dec 2025 11:59 AM

भारत में पहली बार गरीबी के धार्मिक और सामाजिक समूहों पर विस्तृत डेटा सामने आया है, जो एक लंबे समय से प्रचलित धारणा को चुनौती देता है. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और 16वें वित्त आयोग के चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया तथा इंटेलिंक एडवाइजर्स के संस्थापक विशाल मोरे द्वारा लिखे गए एक नए शोध-पत्र ने दावा किया है कि भारत ने 2011-12 से 2023-24 के बीच चरम गरीबी (Extreme Poverty) को लगभग समाप्त कर दिया है, और इस दौरान मुस्लिम समुदाय में गरीबी दर हिंदुओं से थोड़ी कम पाई गई है.

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शोध-पत्र के अनुसार वर्ष 2023-24 में चरम गरीबी दर हिंदुओं में 2.3% और मुसलमानों में मात्र 1.5% दर्ज की गई. यही अंतर 2022-23 में भी देखा गया था, जब मुसलमानों में गरीबी दर 4% और हिंदुओं में 4.8% थी. लेखकों के अनुसार यह डेटा “आम धारणा” को चुनौती देता है कि भारत में मुसलमानों में गरीबी हिंदुओं की तुलना में अधिक है.

वर्ल्‍ड बैंक की परिभाषा के अनुसार, चरम गरीबी का अर्थ है - PPP (Purchasing Power Parity) में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 3 डॉलर से कम पर जीवनयापन करना. यह स्तर लगभग भारत की अंतिम आधिकारिक तेंदुलकर गरीबी रेखा के समान है.

भारत ने 'अत्यधिक गरीबी को लगभग खत्म कर दिया है'

पेपर में दावा किया गया है कि 2011-12 से 2023-24 के बीच गरीबी में गिरावट “तीव्र और निरंतर” रही. राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी दर 2011-12 में 21.9% थी, जो 2023-24 में घटकर केवल 2.3% रह गई - यानी 12 साल में 19.7 प्रतिशत अंकों की कमी. गिरावट की गति सालाना औसतन 1.64 प्रतिशत अंक प्रति वर्ष की रही जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभूतपूर्व मानी जा रही है.

ग्रामीण भारत में गरीबी तेजी से घटी

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच तुलना में भी दिलचस्प तस्वीर सामने आती है. ग्रामीण गरीबी 22.5 प्रतिशत अंक गिरी (1.87% प्रति वर्ष) जबकि शहरी गरीबी 12.6 प्रतिशत अंक घटी (लगभग 1% प्रति वर्ष). ग्रामीण भारत में शुरुआती गरीबी स्तर अधिक होने के बावजूद वहां बेहतर विकास, सरकारी स्कीमों और लक्षित कल्याण कार्यक्रमों ने गरीबी में अधिक गिरावट दर्ज कराई.

SC/ST समेत सभी सामाजिक समूहों में तेज गिरावट

पेपर के अनुसार - SC, ST, OBC और अगड़ी जातियों - सभी वर्गों में गरीबी में भारी कमी देखी गई है. ST समुदाय, जो हमेशा सबसे कमजोर वंचित समूह माना जाता है, उसके बीच 2023-24 में गरीबी दर 8.7% थी - यह आंकड़ा पहले की तुलना में ऐतिहासिक रूप से कम है.

धार्मिक समूहों के बीच अंतर लगभग खत्म

2023-24 के धार्मिक समूहवार गरीबी आंकड़े:

  • हिंदू: 2.3%
  • मुस्लिम: 1.5%
  • क्रिश्चियन: 5%
  • बौद्ध: 3.5%
  • सिख व जैन: 0%

पेपर में कहा गया है कि हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच चरम गरीबी का अंतर “लगभग समाप्त हो चुका” है. विशेष रूप से ग्रामीण भारत में मुस्लिम गरीबी दर 1.6% है, जबकि हिंदुओं की 2.8% - यानी ग्रामीण मुसलमानों का आर्थिक स्तर अपेक्षाकृत बेहतर दिखाई देता है. उधर शहरी क्षेत्रों में ऐतिहासिक बदलाव दिखता है. 2011-12 में शहरी मुस्लिम गरीबी दर 20.8% थी, जबकि हिंदुओं में यह 12.5% थी. 2023-24 में दोनों समुदायों के बीच अंतर सिमटकर लगभग समान (1.2% बनाम 1%) रह गया.

डेटा कैसे जुटाया गया?

शोध-पत्र ने जिन आंकड़ों पर काम किया, वे 2011-12, 2022-23 और 2023-24 के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय - Ministry of Statistics and Programme Implementation (MoSPI) द्वारा जारी घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey) से लिए गए.

तेंदुलकर पद्धति पर आधारित राष्ट्रीय गरीबी रेखा:

  • 2011-12: ₹932/व्यक्ति/माह
  • 2022-23: ₹1,714
  • 2023-24: ₹1,804

प्रत्येक राज्य और शहरी/ग्रामीण क्षेत्र के हिसाब से गरीबी रेखा अलग-अलग तय की गई.

यूनिट-लेवल डेटा में खर्च को तीन श्रेणियों में बांटा गया -

  • 365 दिन: कम-बार खरीद
  • 30 दिन: मध्यम खरीद
  • 7 दिन: खाद्य/रोजमर्रा की खरीद

इस विस्तृत डेटा को आधार बनाकर प्रत्येक परिवार को गरीब या गैर-गरीब की श्रेणी में रखा गया.

कौन से राज्य सबसे बेहतर?

पेपर में कहा गया है कि अब किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की गरीबी दर दो अंकों में नहीं है - यानी 10% से कम. कुछ स्थानों पर गरीबी लगभग शून्य स्तर पर पहुंच गई है. इनमें हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा, और तीन केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली, चंडीगढ़ और दमन व दीव शामिल हैं. इन क्षेत्रों में गरीबी दर “पहले दशमलव तक शून्य” दर्ज की गई है.

‘धारणा बदलने की जरूरत’

पेपर का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि “मुस्लिमों में गरीबी हिंदुओं से अधिक होने की आम धारणा को संशोधित करने की आवश्यकता है, कम से कम चरम गरीबी के संदर्भ में.” शोध-पत्र के अनुसार भारत में आर्थिक विकास, कल्याणकारी कार्यक्रमों और व्यापक उपभोग वृद्धि ने लगभग सभी समुदायों को चरम गरीबी रेखा से ऊपर उठा दिया है. चरम गरीबी आज मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों और कुछ बेहद दूरदराज के क्षेत्रों तक सीमित हो चुकी है.

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