PMO का नया नाम ‘सेवातीर्थ’, राजभवन अब ‘लोक भवन’... आखिर क्या संदेश देना चाहती है मोदी सरकार?
मोदी सरकार ने पीएमओ यानी प्रधानमंत्री आवास का नाम बदल दिया है. अब इसे सेवातीर्थ के नाम से जाना जाएगा. वहीं, देश के सभी राजभवनों को अब लोक भवन के नाम से जाना जाएगा. केंद्र ने यह बड़ा एलान मंगलवार यानी 2 दिसंबर को किया. सरकार का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं, बल्कि शासन की सोच और कार्यशैली का प्रतीक है.
मोदी सरकार ने दो महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों के नाम बदलने का फैसला लिया है. पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय को अब सेवातीर्थ के नाम से जाना जाएगा. वहीं, देश के सभी राजभवनों को अब लोक भवन के नाम से जाना जाएगा. सरकार ने यह बड़ा एलान मंगलवार यानी 2 दिसंबर को किया. सरकार का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं, बल्कि शासन की सोच और कार्यशैली का प्रतीक है.
सरकार ने प्रधानमंत्री ऑफिस यानी PMO के नए परिसर को नया नाम दिया है - सेवातीर्थ. इसका उद्देश्य यह संदेश देना है कि प्रधानमंत्री का कार्यालय 'सेवा का केंद्र' है, न कि सत्ता का प्रतीक... वहीं, कई राज्यों में राजभवन का नाम बदलकर लोक भवन या राज्यपाल भवन किया जा रहा है. सरकार इसे 'औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति' का कदम बता रही है.
बदलाव की वजह क्या?
1- औपनिवेशिक शब्दों से छुटकारा
सरकार का कहना है कि ‘राजभवन’, ‘राजपथ’, ‘वायसराय हाउस’ जैसे नाम भारत की औपनिवेशिक विरासत की याद दिलाते हैं. इसी लाइन में पहले राजपथ → कर्तव्य पथ हुआ और अब राजभवन का नया नाम सामने आया.
2- शासन को ‘सेवा’ की भावना से जोड़ना
PM मोदी कई बार कह चुके हैं कि वे खुद को 'देश का प्रधान सेवक' मानते हैं. इसी विचारधारा से PMO को सेवातीर्थ नाम देना सरकार की ब्रांडिंग रणनीति का हिस्सा है.
3- जनता-केन्द्रित छवि को मजबूत करना
सरकार का कहना है कि नए नाम अधिक जनप्रिय, सरल, और भारत-केंद्रित हैं. लोक भवन और सेवा भवन जैसे नामों से एक संदेश जाता है कि सरकार जनता के करीब है.
4- नई पीढ़ी के लिए नए प्रतीक
मोदी सरकार बीते वर्षों में कई बड़े सरकारी संस्थानों व स्थलों के नाम बदल चुकी है, जैसे राजपथ - कर्तव्य पथ, नया संसद भवन, PM म्यूज़ियम और आइकॉनिक राष्ट्रीय स्मारक. 'सेवातीर्थ' इसी प्रतीक श्रृंखला का एक और हिस्सा माना जा रहा है.
क्या बदलेगा? क्या नहीं?
- सरकार का दावा: नाम बदलने से संस्थानों के कार्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह सिर्फ सोच और संस्कृति में बदलाव का प्रतीक है.
- विपक्ष की आलोचना: विपक्ष इसे 'अनावश्यक ब्रांडिंग' और 'व्यक्तिगत छवि निर्माण' बता रहा है. कई विपक्षी दल कह रहे हैं कि ऐतिहासिक नाम बदलने की जगह सरकार को समस्याओं पर फोकस करना चाहिए.
PMO और राजभवन के नाम बदलना सिर्फ प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और प्रतीकात्मक संदेश भी है कि भारत औपनिवेशिक प्रतीकों से दूरी बना रहा है और शासन को सेवा के सिद्धांत से जोड़ा जा रहा है. यह बदलाव आने वाले समय में केंद्र और राज्यों के कई संस्थानों में और नाम परिवर्तन की दिशा भी दिखा सकता है.





