रोहिंग्या के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा - ग़ैरक़ानूनी तरीके से आने वालों के लिए हम रेड कार्पेट बिछा दें?
रोहिंग्या मुसलमानों के अवैध प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि न्यायपालिका उन लोगों को “असाधारण संरक्षण” नहीं दे सकती जो गैरकानूनी तरीके से भारत में प्रवेश कर रहे हैं. CJI सूर्यकांत की पीठ ने पूछा कि क्या अवैध घुसपैठियों के लिए “लाल कालीन बिछा देना चाहिए?” अदालत ने कहा कि वे सुरंगों से देश में घुसकर नागरिकों जैसे अधिकार मांग रहे हैं, जबकि सीमित संसाधन पहले भारतीय नागरिकों के लिए हैं.
देश में अवैध रूप से प्रवेश कर रहे रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बेहद कड़ा रुख अपनाया. रोहिंग्याओं की कथित गुमशुदगी को लेकर दाखिल हैबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने तीखे सवाल उठाते हुए स्पष्ट कहा कि भारत की न्याय व्यवस्था उन लोगों के लिए “असाधारण संरक्षण” नहीं दे सकती जो ग़ैरक़ानूनी तरीके से देश में घुस रहे हैं.
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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया, “क्या आप चाहते हैं कि हम उनके लिए लाल कालीन बिछा दें?” पीठ ने कहा कि रोहिंग्या शरणार्थी ज़मीन के भीतर बने गुप्त रास्तों से भारत में अवैध रूप से घुस रहे हैं और देश में घुसने के बाद यहां के नागरिकों के समान अधिकार मांग रहे हैं. CJI ने टिप्पणी की, “वे सुरंगों के माध्यम से देश में प्रवेश करते हैं और फिर भोजन और आश्रय जैसे अधिकारों की मांग करते हैं.”
“सीमित संसाधन, पहले हमारे नागरिक”
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कल्याणकारी योजनाओं और संसाधनों पर भार को भी प्रमुख रूप से रेखांकित किया. CJI ने कहा, “क्या हमारे अपने गरीब बच्चों को इन लाभों का अधिकार नहीं है? क्या हमें कानून को इतना खींचना होगा कि अवैध घुसपैठ करने वाले भी समान हक़ प्राप्त करें?” अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान मानवता के साथ व्यवहार की अनुमति देता है, लेकिन यह भी तय करता है कि देश के संसाधन और सुरक्षा सर्वोपरि हैं.
उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा पर विशेष चिंता
अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि क्या राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े गंभीर पहलुओं को अनदेखा किया जा सकता है. CJI सूर्यकांत ने कहा, “उत्तर भारत में हमारी सीमा अत्यंत संवेदनशील है. यदि कोई घुसपैठिया अवैध रूप से देश में प्रवेश करता है, तो क्या हमारा दायित्व है कि हम उसे यहां ही रखें?” यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से संकेत देती है कि अदालत अवैध प्रवासन को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देख रही है और इस पर किसी तरह की ढील देने के पक्ष में नहीं है.
मामला क्या था?
याचिका में आरोप लगाया गया था कि कई रोहिंग्या शरणार्थी “लापता” हो रहे हैं और सरकार उन्हें गुप्त रूप से हिरासत में ले रही है. याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह मानवाधिकार और व्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह मानने से इंकार किया कि गैरकानूनी रूप से प्रवेश करने वालों के पास स्वचालित रूप से मौलिक अधिकारों का दावा करने का आधार है. अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर न्यायपालिका मानवीय संवेदना और राष्ट्रीय क़ानून - दोनों के संतुलन के साथ निर्णय लेगी.
अब सरकार को इस मामले में तथ्यों के साथ जवाब देने का निर्देश दिया गया है, खासतौर पर रोहिंग्या शरणार्थियों को कहां रखा जा रहा है, क्या हिरासत या डिटेंशन सेंटर में बंदी बनाया गया है और गुमशुदगी के आरोप सत्य हैं या भ्रामक, इन सबकी जानकारी देने को कहा गया है. अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह देखने वाला है कि मानवाधिकार के नाम पर अवैध प्रवेश को क्या सीमा तक सहन किया जा सकता है और भारत की सुरक्षा और संसाधन सीमाओं को कानून में कहां रखा जाएगा.





