Pahalgam Attack: “जिंदा बच निकले पहलगाम हमलावरों का एक महीने बाद भी खौफ”, टूरिस्टों की छोड़िए, नींद कैसे आए?
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले को एक महीना बीत गया, लेकिन दहशत अब भी बरकरार है. हमले में 26 लोगों को धर्म पूछकर मारा गया. स्थानीय लोगों की आजीविका खत्म हो चुकी है, टूरिज़्म ठप है और सुरक्षा के बावजूद डर कायम है. ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान पर कार्रवाई के बावजूद हमले के जिंदा आतंकी पकड़े नहीं गए, जिससे घाटी पर खतरे की तलवार अब भी लटक रही है.

पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को मंगलवार के दिन हुए ‘अमंगल’ यानी बैसरन घाटी में आतंकवादी हमले को हुए आज (22 मई 2025) एक महीना हो गया. इस एक महीने में दुनिया ने न केवल पहलगाम घाटी में हुए आतंकवादी हमले में धर्म पूछकर 26 लोगों का कत्ल किया जाना देखा. उसके बाद से अब तक के 30 दिनों में “ऑपरेशन-सिंदूर” के जरिए भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डों पर मचाए गए कहर-कोहराम की तासीर भी देख ली.
भारत के हाथों खुद की दुर्गति-दुर्दशा देखकर पाकिस्तान जहां “कराह-सिसक” उठा. तो वहीं दूसरी ओर दुनिया, भारत की विदेश, कूटनीति, सामरिक और सैन्य क्षमताओं का लोहा मान गई. इस सबके बीच आइए जानते हैं कि आखिर ऐसे पहलगाम की खूनी हो चुकी बैसरन एक महीने बाद खुद को कहां खड़ा हुआ महसूस करती है?
एक महीने बाद भी दहशत कायम
आतंकवादी हमले के एक महीने बाद के पहलगाम और बैसरन घाटी के दिल, आब-ओ-हवा में झांकने के लिए स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर (क्राइम-इनवेस्टीगेशन) कुछ स्थानीय छोटे-बड़े व्यवसायियों, दो खच्चर चालक-मालिकों, बैसरन घाटी के आसपास भेड़-बकरी चराने वाले 2 लोगों, सहित कई से बात की. कमोबेश इन सबमें कुछ बातें समान ही मिलीं. एक तो उनका नाम-पता-ठिकाना स्टेट मिरर हिंदी खबर में उजागर न करे. इससे आतंकवादी और उनके आका चिढ़कर, आइंदा कभी भी इनको अपनी गोलियों का निशाना बना सकते हैं.
काल्पनिक नाम पते और ठिकाने
इसलिए इस खबर में उन सभी असली पात्रों के नाम पते बदल दिए जा रहे हैं, जिनसे स्टेट मिरर ने व्हाट्सऐप कॉल पर बात की. व्हाट्सऐप कॉल पर बात इसलिए करनी पड़ी क्योंकि, पहलगाम और उसके आसपास के इलाके में मौजूद लोग दिल्ली में बैठे किसी भी इंसान पर विश्वास कर पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. उन्हें डर है कि पता नहीं कौन किस रूप में क्या बनकर, इनकी ऑडियो रिकॉर्डिंग करके, उसका कहीं बेजा इस्तेमाल न कर ले. इन्हें (पहलगाम और बैसरन घाटी के करीब जिन लोगों से बात की) डर है कि, कहीं पत्रकार बनकर कोई भारतीय खुफिया एजेंसी का अफसर या एजेंट ही इनसे बात न कर रहा हो. जो बाद में इन सबके लिए बबाल-ए-जान बन जाए.
हमले में बची जिंदगी भी किस काम की?
पहलगाम इलाके में एक होटल में प्रबंधक के पद पर पिछले 15-16 साल से काम करने वाले 45 साल के रहीमउल्लाह बताते हैं, “मैं पहलगाम से ही 20-25 किलोमीटर दूर पहाड़ी गांव में रहता हूं. गांव में रोजी-रोजगार का साधन न कभी था न आज है. मां घर में बूढ़ी हैं. घर में तीन बहनें शादी के लिए हैं. बीबी और तीन बच्चे भी हैं. कमाने वाला मैं ही अकेला हूं. होटल में 15-16 साल पहले काम करने आया तो यहीं का होकर रह गया. आज होटल-गेस्टहाउस मालिक ने सारी जिम्मेदारी मेरे ही ऊपर डाल रखी है.
टूरिस्टों के ‘टोटा’ ने रोटियों के लाले डाले
जबसे बैसरन घाटी में कत्ल-ए-आम हुआ. तब से अपना पेट पालना तो दूर, होटल के कर्मचारियों की दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम नहीं हो पा रहा है. सुबह एक बार बनाकर दोपहर और शाम को खा लेते हैं. ताकि खाना बनाने में आग-पानी का खर्चा बार-बार न हो. क्योंकि हमले वाले दिन से आज तक एक भी टूरिस्ट मेरे गेस्टहाउस में क्या, पहलगाम से 100-150 किलोमीटर के इलाके में नहीं आया है. आसपास को गांवों में रहने वाले जो लोग अपने खेतों से सब्जियां खुद ही गेस्ट हाउस तक बेचने को ले आते थे. अब वे सब भी नदारद हैं.”
सिवाये रोजी-रोटी और सुकून के बाकी सब है
जिस पहलगाम (बैसरन) में 22 अप्रैल को यानी अब से ठीक एक महीने पहले 26 बेकसूरों को उनका धर्म पूछकर मार डाला गया. उसके बाद से यहां सबकुछ मौजूद है. अगर कुछ नहीं बचा है तो वह है स्थानीय लोगों का चैन-सुकून रोजी-रोजगार. कहने को जम्मू-कश्मीर पुलिस, पैरा-मिलिट्री के हथियारबंद जवानों का बेड़ा 24 घंटे है. इसके बाद भी मगर यहां जब टूरिस्टों ही नहीं है. तो फिर इनकम का रास्ता ही पूरी तरह ब्लॉक हो गया है. सुरक्षा होने के बाद भी डर का माहौल है.
अब कड़ी सुरक्षा भी वजन सी लगती है
ऐसी और इस कदर की सुरक्षा करनी ही थी तो हुकूमत पहले करती. अब जब आतंकवादी हमला हो ही चुका है. आतंकवादी भी नहीं पकड़े गए अब तक. वह कब आ धमकेंगे? इसका कोई ठिकाना नहीं है. उन्हें मरने का डर नहीं है. मरने का डर तो हम बेकसूरों को (स्थानीय लोगों को) लगा रहता है कि न मालूम, बैसरन घाटी के हमलावर-आतंकवादी कब किधर से फिर आ धमकें? पहलगाम इलाके के मूल निवासी और एक टोल प्लाजा पर क्लर्क की नौकरी करने वाले 28 साल का एक युवक कहता है, “जिस दिन से बैसरन में कत्ल-ए-आम हुआ, घरवालों ने मेरा टोल प्लाजा की ड्यूटी पर जाना बंद कर दिया. मैंने घरवालों को काफी समझाया कि अब काफी सिक्योरिटी बढ़ा दी गई है. अब कोई खतरा नहीं है. इस पर घर वालों ने कोई बात नहीं सुनी. उन्हें डर है कि टोल प्लाजा भी तो सरकारी एजेंसी है. और आतंकवादी कभी भी कहीं टोल पर ही गोलियां न बरसा दें.”
एक ओर कुआं दूसरी ओर खाई
अपना नाम-पता-ठिकाना उजागर न करने की शर्त पर 22 साल के गुलफाम (बदला हुआ नाम) कहते हैं, “मैं भेड़-बकरियों को चराने का काम करता हूं. कभी-कभार जब बैसरन में टूरिस्टों की भीड़ ज्यादा देखा करता हूं, तो वहां भी भाड़े पर खच्चर लेकर पहुंच जाता हूं. खच्चर का किराया निकाल कर भी, अपनी जेब के लिए रोजाना करीब 1200-1500 की दिहाड़ी बना लेता था. आतंकवादी हमले के बाद से तो मैंने बैसरन घाटी की ओर मुड़कर नहीं देखा है.
न ही पहाड़ी पर भेड़-बकरी चराने ले गया हूं. डर यह लगा रहता है कि बैसरन में अटैक करने वाले आतंकवादी अभी मरे नहीं हैं न. तो वह (पहलगाम कांड के जिंदा बच निकले हमलावर) पुलिस क्या कर रही है? कब आती जाती है? पता करने के लिए हमीं लोगों (इलाके पहाड़ियों पर भेड़-बकरियां चराने वालों को) को पकड़ते हैं. उन्हें पुलिस के बारे में बताओ तो हमारी पुलिस से दुश्मनी हो जाती है. और अगर उनको (आतंकवादियों को) पुलिस/फौज के बारे में न बताओ तो वो (आतंकवादी) हमारे दुश्मन हो जाते हैं.”
आतंकवादियों के खौफ का आलम...
पहलगाम घाटी से करीब 10-15 किलोमीटर दूर एक आलीशान टूरिस्ट ढाबा-कम-गेस्ट-हाउस मालिक के मुताबिक, “22 अप्रैल 2025 के बाद से ताला पड़ा है. मैं और मेरे दो नौकर अब यहां रहते हैं. ताकि हम भी अगर यहां से भाग गए तो कोई बड़ी बात नहीं कब, कोई चिढ़ा हुआ आतंकवादी आकर इसे भी तबाह करके न चला जाए. टूरिस्टों की टैक्सियों को देखे बिना महीना गुजर गया है. सुबह जागते हैं दिन भर खाली बैठे रहकर, रात को सो जाते हैं. नींद किसे आती है? डर लगा रहता है कि बैसरन कांड के बाद न मालूम कब किधर से कोई आफत सिर पर आ पड़े. हमले से पहले तक मेरे गेस्टहाउस के सामने टूरिस्ट टैक्सियों की भीड़ लगी रहती थी.”
‘सन्नाटे’ के बीच में किसकी कैसी ‘सुरक्षा’?
32 साल के बब्बू खान (बदला हुआ नाम) कहते हैं पहलगाम मेन मार्केट में मेरी कश्मीरी कपड़ों की बड़ी दुकान है. जो पिछले एक महीने से बंद (22 अप्रैल 2025) पड़ी है. यहां से कुछ दूर मौजूद सेल्फी प्वाइंट पर सन्नाटा छाया रहता है. वरना जब पहलगाम घाटी आबाद थी तब, मेरी दुकान पर काम करने वाले लड़के, इसी सेल्फी प्वाइंट की बेंच पर भी कपड़े हाथो-कंधों पर लेकर बेचने पहुंच जाते थे. अब तो इस सेल्फी प्वाइंट वाली बेंच की शायद किसी ने धूल भी साफ न की हो. जम्मू में ट्रेवल एजेंट का काम करने वाले इन्हीं बब्बू खान के बड़े भाई कहते हैं, “पहलगाम गोलीकांड ने सब कुछ ठहरा दिया है. नहीं समझ आता है कि संगीनों के साये में कैसे काम-धंधा चलेगा? कौन टूरिस्ट आएगा यहां इस मातमी-खौफनाक माहौल में?”
जिंदा बच निकले आतंकवादियों का हमेशा खौफ
65 साल की उम्र के एक स्थानीय बुजुर्ग जोकि जम्मू कश्मीर राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से रिटायर हो चुके हैं, बताते हैं- “अब पहलगाम कब दुबारा अपने पांवों पर खड़ा हो सकेगा. कह पाना बहुत मुश्किल है. हम लोग यहां से कहीं जा भी नहीं सकते हैं. दूसरे, जबसे पहलगाम कांड हुआ है. तब से उम्मीद थी हमें कि वे (पहलगाम के हमलावर) मार दिए जाएंगे या पकड़ लिए जाएंगे. अब तक मगर उनका कोई पता नहीं चला है. भले ही क्यों न ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में सब आतंकवादी मार डाल गए हों. लेकिन जब तक पहलगाम-बैसरन के अटैकर नहीं मारे-पकड़े जाते हैं. तब तक तो डर बना ही है न. न मालूम कब किधर से वे सब फिर आकर कहर बरपा डालें?”
जम्मू कश्मीर के पूर्व DGP भी हैरान रह गए
पहलगाम-बैसरन घाटी के ऊपर उल्लिखित लोगों से सामने निकल कर आई अंदर की रुह कंपाती सच्चाई पर, स्टेट मिरर हिंदी ने बात की देश के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और, जम्मू कश्मीर राज्य के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक शेष पाल वैद्य (Ex IPS Retired DGP Jammu and Kashmir Shesh Pal Vaid) से. पूर्व आईपीएस एस पी वैद्य (IPS SP Vaid) बोले, “आपने जिन लोगों से बात की, मुझे हैरत है कि उन लोगों ने आपसे बात भी कैसे कर ली? इस तरीके के हमलों (पहलगाम कांड) के बाद पूरी जम्मू-कश्मीर घाटी में सन्नाटा छाया हुआ है. पत्रकारों की बात छोड़िए ऐसे हमलों के बाद राज्य पुलिस को भी स्थानीय लोगों से बात करना दूभर हो जाता है. क्योंकि उन्हें डर रहता है कि अगर पुलिस से बात करने की मुखबिरी आतंकवादियों से किसी ने कर दी, तो समझिए उस गांव वाले का कत्ल दो चार दिन में तय है.”
धर्म पूछकर कत्ल करने वालों को भी डर लगता है
भले ही ऑपरेशन सिंदूर में क्यों न भारत ने पाकिस्तान के कई आतंकवादी अड्डे तबाह कर डाले हों. इसके बाद भी मगर अब तक पहलगाम के हमलावर आतंकवादी जिंदा या मुर्दा हाथ नहीं आ सके हैं? पूछने पर जम्मू कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद्य ने कहा, “हां, यह बेशक चिंता का विषय है. उन तक हमारे सुरक्षा-बलों या फौज का जल्दी से जल्दी पहुंचना बहुत जरूरी है. मुझे प्रबल संभावना लगती है कि वे सब (पहलगाम हमले के आरोपी आतंकवादी) घटनास्थल से दूर नहीं निकल पाए होंगे. उस हमले के बाद अचानक बदले हुए हालातों के चलते अपनी जान बचाने को वह कहीं न कहीं किसी घने जंगल में दुम दबाकर बैठे होंगे. क्योंकि अपनी जान उन्हें भी प्यारी होती है जो दूसरों की जान धर्म पूछकर लेने में शर्म नहीं खाते हैं.”