SIR की चली तलवार : पश्चिम बंगाल में 58 लाख वोटरों पर गिरी गाज, राज्य की सियासत में भूचाल आना तय
भारत निर्वाचन आयोग ने एक महीने तक चले विशेष गहन संशोधन (SIR) अभ्यास के बाद पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची का मसौदा जारी कर दिया है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस संशोधन प्रक्रिया में करीब 58 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं. इसके पीछे की वजह भी चुनाव आयोग ने बताई है.
भारत निर्वाचन आयोग ने एक महीने तक चले विशेष गहन संशोधन (SIR) अभ्यास के बाद पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची का मसौदा जारी कर दिया है. इस कदम को 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले एक अहम प्रशासनिक प्रक्रिया माना जा रहा है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने से राज्य की राजनीति में नई बहस छिड़ने के आसार हैं.
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आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस संशोधन प्रक्रिया में करीब 58 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं. हालांकि विपक्षी दलों की ओर से इस पर सवाल उठाए जाने की संभावना जताई जा रही है.
विशेष गहन संशोधन के तहत बड़ी कार्रवाई
2026 विधानसभा चुनावों की तैयारियों के तहत पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन किया गया. इस प्रक्रिया का मकसद मृत, स्थानांतरित, डुप्लिकेट या लंबे समय से अनुपस्थित मतदाताओं के नामों की पहचान कर उन्हें सूची से हटाना था. चुनाव आयोग के अनुसार, यह अभ्यास मतदाता सूची की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है.
किन कारणों से हटाए गए लाखों नाम
आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 24 लाख मतदाताओं को मृत घोषित किया गया, करीब 19 लाख मतदाता अपना निवास स्थान छोड़कर दूसरी जगह पर रह रहे, 12 लाख नाम लापता के रूप में दर्ज किए गए और लगभग 13 लाख नाम डुप्लिकेट प्रविष्टियों के तौर पर चिह्नित किए गए. इन सभी श्रेणियों के आधार पर कुल मिलाकर 58 लाख से अधिक नामों को मसौदा मतदाता सूची से बाहर किया गया है.
राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज
इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटाए जाने से राज्य के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो सकती है. विपक्षी दल इस पूरी प्रक्रिया, इसके मानकों और निष्कर्षों की बारीकी से जांच कर सकते हैं. आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच तीखी बयानबाजी की संभावना जताई जा रही है.
2026 चुनावों से पहले अहम कदम
पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले किया गया यह विशेष गहन संशोधन प्रशासनिक दृष्टि से एक बड़ा कदम माना जा रहा है. आयोग का कहना है कि मृत्यु, निवास स्थान में परिवर्तन, दोहरी प्रविष्टियां या निर्वाचन क्षेत्र से लंबे समय तक अनुपस्थिति जैसे कारणों से नामों को चिह्नित किया गया है, ताकि चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बन सके.





