कांग्रेस में फिर ‘प्रियंका बनाम राहुल’ की आहट? चुनावी हार के बाद उठ रही अंदरूनी आवाज़ों ने बढ़ाई हाईकमान की बेचैनी
लगातार चुनावी हार के बाद कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर नई बहस तेज हो गई है. पार्टी में प्रियंका गांधी वाड्रा को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका देने की मांग अब खुलकर सामने आने लगी है. ओडिशा के विधायक मोहम्मद मोक़ीम के पत्र और सहारनपुर सांसद इमरान मसूद के बयान ने “प्रियंका बनाम राहुल” की चर्चा को फिर हवा दे दी. इसी बीच संसद में प्रियंका के प्रभावशाली भाषण, सत्ता पक्ष से संवाद और सक्रियता ने उनका कद और मजबूत किया है.
लगातार चुनावी झटकों से जूझ रही कांग्रेस पार्टी के भीतर एक बार फिर वही पुरानी लेकिन अब और तेज होती बहस सामने आ गई है - क्या पार्टी को अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रियंका गांधी वाड्रा को बड़ी और निर्णायक भूमिका देनी चाहिए? महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली जैसे अहम राज्यों में करारी हार के बाद कांग्रेस के अंदर यह सवाल अब फुसफुसाहट नहीं, बल्कि खुली आवाज़ में उठने लगा है. यही कारण है कि पार्टी के भीतर “प्रियंका बनाम राहुल” की चर्चा एक बार फिर सुर्खियों में है.
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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के भीतर कई नेता अब सार्वजनिक तौर पर प्रियंका गांधी के लिए ज्यादा “सशक्त” और केंद्रीय भूमिका की मांग कर रहे हैं. यह बदलाव इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि प्रियंका अब तक संगठन की बैक-एंड रणनीतिकार मानी जाती थीं, लेकिन हाल के महीनों में वे एक फ्रंटलाइन, धारदार और आत्मविश्वासी नेता के रूप में उभरी हैं.
ओडिशा से उठा पहला बड़ा सवाल
इस बहस की चिंगारी ओडिशा से भड़की, जब वरिष्ठ कांग्रेस विधायक मोहम्मद मोक़ीम ने सोनिया गांधी को लिखे अपने पत्र में पार्टी नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े किए. मोक़ीम ने न सिर्फ नेतृत्व की कार्यशैली पर असंतोष जताया, बल्कि प्रियंका गांधी को बड़ी भूमिका देने का संकेत भी दिया. उन्होंने यह भी कहा कि वे पिछले करीब तीन वर्षों से राहुल गांधी से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन एक विधायक होने के बावजूद उन्हें समय नहीं मिला.
इस पत्र के महज़ एक हफ्ते बाद ही मोक़ीम को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हालांकि आधिकारिक तौर पर यह अनुशासनात्मक कार्रवाई बताई गई, लेकिन कांग्रेस के भीतर इसे एक “संदेश” के तौर पर देखा गया - कि नेतृत्व पर सवाल उठाने की कीमत चुकानी पड़ेगी.
प्रियंका को पीएम बनाने की खुली मांग
मोक़ीम के बाद कांग्रेस के भीतर यह बहस और तेज हो गई, जब सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने प्रियंका गांधी को लेकर बेहद बड़ा बयान दे डाला. मसूद ने कहा कि अगर प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री बनें तो वे इंदिरा गांधी की तरह मजबूत नेतृत्व दे सकती हैं.
एएनआई से बातचीत में मसूद ने कहा था, “प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री हैं क्या? उन्हें प्रधानमंत्री बनाकर देखिए, फिर पता चलेगा कि जवाब कैसे दिया जाता है. इंदिरा गांधी की पोती हैं, गांधी नाम ही काफी है. पाकिस्तान को जो जख्म इंदिरा गांधी ने दिया था, उसके निशान आज भी हैं.” यह बयान ऐसे वक्त आया जब कांग्रेस पूरी तरह से राहुल गांधी को मोदी सरकार के खिलाफ मुख्य चेहरा बनाकर पेश कर रही है. लिहाजा मसूद की टिप्पणी ने पार्टी के भीतर ही भूचाल ला दिया.
बयान से मचा बवाल, फिर आई सफाई
मसूद के बयान के कुछ ही घंटों बाद कांग्रेस में खलबली मच गई. बीजेपी ने इसे राहुल गांधी पर अविश्वास का प्रमाण बता दिया, वहीं पार्टी के भीतर भी असहजता बढ़ी. इसके बाद मसूद को आनन-फानन में सफाई देनी पड़ी. उन्होंने कहा, “इस बयान का राहुल गांधी से कोई लेना-देना नहीं है. राहुल हमारे नेता हैं और प्रियंका गांधी के भी नेता हैं.” माना जा रहा है कि यह सफाई एआईसीसी के दबाव में आई, लेकिन तब तक राजनीतिक नुकसान हो चुका था.
बीजेपी का हमला: ‘राहुल हटाओ, प्रियंका लाओ’
बीजेपी ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया. पार्टी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने तीखा हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस अब खुद राहुल गांधी पर भरोसा नहीं कर रही. उन्होंने ट्वीट किया, “इमरान मसूद ने साफ कह दिया कि अब उन्हें राहुल गांधी पर भरोसा नहीं है. राहुल न जनता का नेता रहे, न सहयोगियों का और अब लगता है कि जनपथ का भी भरोसा खो चुके हैं.” बीजेपी ने इसे कांग्रेस की आंतरिक टूट और नेतृत्व संकट का सबूत बताया.
संसद में प्रियंका का जलवा
इस अंदरूनी घमासान के बीच प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद में अपनी मौजूदगी से सबका ध्यान खींचा. शीतकालीन सत्र के दौरान उनके दो भाषण - एक वंदे मातरम् पर बहस में और दूसरा मनरेगा से जुड़े बिल पर - खूब सुर्खियों में रहे. करीब 30 मिनट के भाषण में प्रियंका गांधी ने न सिर्फ नेहरू पर बीजेपी के हमलों का जवाब दिया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी सटीक तंज कसे. उनकी शुद्ध हिंदी, संतुलित शब्दों और आत्मविश्वास भरे अंदाज ने कांग्रेस सांसदों में नई ऊर्जा भर दी.
इसके उलट, राहुल गांधी का भाषण एक बार फिर “वोट चोरी” जैसे पुराने मुद्दों तक सीमित रहा. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी चुनावी सुधारों जैसे अहम मुद्दों से भटक गए. संसद के भीतर भी साफ दिखा कि प्रियंका के भाषण पर जहां ज़ोरदार तालियां बजीं, वहीं राहुल के भाषण को वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिली.
सत्ता पक्ष से संवाद की कला
प्रियंका गांधी की राजनीतिक परिपक्वता तब और सामने आई, जब उन्होंने लोकसभा के फ्लोर पर ही सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से केरल की छह परियोजनाओं को लेकर सीधा संवाद कर लिया. गडकरी ने उन्हें तुरंत अपने कार्यालय आने का न्योता दे दिया. बाद में प्रियंका और गडकरी की चाय-नाश्ते पर बातचीत की तस्वीरें वायरल हुईं. संदेश साफ था - प्रियंका टकराव के साथ-साथ संवाद की राजनीति भी जानती हैं. इतना ही नहीं, राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में प्रियंका लोकसभा स्पीकर द्वारा आयोजित चाय पार्टी में भी शामिल हुईं. दो साल में पहली बार गांधी परिवार का कोई सदस्य इस परंपरागत आयोजन में दिखा. यहां प्रियंका को पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ हल्के-फुल्के अंदाज में बातचीत करते भी देखा गया.
क्यों बढ़ रहा प्रियंका का कद?
पार्टी के भीतर प्रियंका गांधी को लेकर तीन बातें बार-बार कही जा रही हैं -
- वे ज्यादा सहज और स्पष्ट तरीके से अपनी बात रखती हैं
- संसद और संगठन दोनों में सक्रिय और उपलब्ध रहती हैं
- विधायक और सांसद उन्हें ज्यादा “अप्रोचेबल” मानते हैं
हालांकि प्रियंका ने चुनावी राजनीति में कदम सिर्फ एक साल पहले रखा है, लेकिन उनकी पकड़ और मौजूदगी तेजी से मजबूत हुई है.
कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस नेतृत्व इस उभरती “राहुल बनाम प्रियंका” की धारणा से कैसे निपटेगा. क्या पार्टी इसे दबाने की कोशिश करेगी या प्रियंका को औपचारिक रूप से बड़ी भूमिका देकर संतुलन साधेगी? एक बात साफ है - चुनावी हार, संगठनात्मक असंतोष और सार्वजनिक बयानों ने कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर बहस को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है. आने वाले महीनों में यह बहस पार्टी की दिशा और दशा दोनों तय कर सकती है.





