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इसरो की आंख, सेना का वार; ऑपरेशन सिंदूर में सेटेलाइट बना पाक के लिए सर्जिकल हथियार

ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने अंतरिक्ष आधारित निगरानी, उपग्रह इमेजरी और वैश्विक डेटा नेटवर्क के जरिए दुश्मन पर बढ़त बनाई. इसरो और भारतीय सेना के तालमेल से कार्टोसैट, रीसैट और नाविक जैसी तकनीकों ने निर्णायक भूमिका निभाई. भारत अब 100 से अधिक सैटेलाइट्स के साथ भविष्य की युद्ध रणनीति में अग्रणी बनने को तैयार है.

इसरो की आंख, सेना का वार; ऑपरेशन सिंदूर में सेटेलाइट बना पाक के लिए सर्जिकल हथियार
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( Image Source:  META AI )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 1 Dec 2025 5:21 PM IST

'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत की जीत सिर्फ जमीनी ताकत से नहीं, बल्कि अंतरिक्ष से मिली रणनीतिक जानकारी और संचार की मदद से संभव हुई. रक्षा सूत्रों ने खुलासा किया है कि भारतीय सशस्त्र बलों ने न केवल देश के सैन्य उपग्रहों का उपयोग किया, बल्कि वैश्विक वाणिज्यिक अंतरिक्ष संसाधनों से भी डेटा जुटाया. यह आधुनिक युद्ध में भारत की बदलती रणनीति को दर्शाता है, जिसमें अंतरिक्ष आधारित खुफिया और सटीक निगरानी प्रमुख हथियार बनते जा रहे हैं.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने ऑपरेशन के दौरान अपनी भूमिका को गर्व के साथ स्वीकार किया. चौबीसों घंटे काम करने वाली इसरो की टीमों ने न सिर्फ अपने सैटेलाइट नेटवर्क से जरूरी डाटा दिया, बल्कि विदेशी उपग्रहों के जरिए भी डुप्लीकेट तस्वीरें उपलब्ध कराईं. इस गठजोड़ ने साबित किया कि भारत की वैज्ञानिक शक्ति अब युद्ध नीति का अहम हिस्सा है.

वैश्विक नेटवर्क का इस्तेमाल

एक ओर जहां भारत ने अमेरिकी मैक्सार जैसी निजी कंपनियों और यूरोपीय सेंटिनल सैटेलाइट से डेटा जुटाया, वहीं पाकिस्तान की ओर से ऐसे किसी स्पष्ट सहयोग की पुष्टि नहीं हुई. विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान चीन की सैन्य अंतरिक्ष संपत्तियों पर निर्भर रहा होगा, लेकिन भारत की तरह खुले स्रोतों और बहुपक्षीय नेटवर्क से डेटा प्राप्त करने की उसकी क्षमता सीमित रही.

कार्टोसैट और रीसैट: युद्ध के नायाब हथियार

भारत के कार्टोसैट-2सी और रीसैट उपग्रहों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें और रडार इमेजरी प्रदान की, जिनसे दुश्मन की हर हरकत पर नजर रखी गई. यह तकनीक पहले 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक में इस्तेमाल हो चुकी है और अब यह भारत के ‘स्पेस वॉरफेयर डॉक्ट्रिन’ का स्थायी हिस्सा बन गई है.

आत्मनिर्भर भारत की उड़ान

भारतीय 'नाविक' नेविगेशन प्रणाली और जीसैट उपग्रहों ने ऑपरेशन के दौरान संचार और पोजिशनिंग में बेहद अहम भूमिका निभाई. घरेलू प्रणाली का सफल उपयोग भारत की आत्मनिर्भरता और विदेशी नेटवर्कों पर निर्भरता घटाने की दिशा में बड़ी छलांग माना जा रहा है.

अंतरिक्ष ही अगला रणक्षेत्र

आईएसपीए प्रमुख और इसरो चेयरमैन दोनों ने इस बात को स्पष्ट किया है कि आने वाले वर्षों में भारत 100 से अधिक उपग्रहों को लॉन्च करेगा, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा निगरानी और सैन्य सहयोग के लिए होगा. रिसैट-1बी जैसे नए रडार सैटेलाइट्स से भारत हर मौसम में, हर परिस्थिति में सटीक जानकारी हासिल कर सकेगा. आने वाला समय स्पष्ट कर रहा है कि अगला युद्ध अंतरिक्ष में भी लड़ा जाएगा, और भारत पहले से तैयार है.

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