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नेपाल से म्यांमार तक: भारत के पड़ोस में लगी है आग, 7 पड़ोसी देशों में क्‍या हैं आर्थिक-सियासी हालात

दक्षिण एशिया में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ रही है. नेपाल में 'Gen-Z आंदोलन, बांग्लादेश में छात्रों का विरोध और अस्थायी सरकार, पाकिस्तान में सैन्य नियंत्रण और विद्रोह, श्रीलंका में आर्थिक संकट, अफगानिस्तान में गरीबी और तालिबान शासन, मालदीव में कर्ज और चीन का बढ़ता प्रभाव, म्यांमार में सैन्य शासन और गृहयुद्ध क्षेत्र की स्थिरता को गंभीर चुनौती दे रहे हैं. इन घटनाओं का प्रभाव भारत के रणनीतिक, आर्थिक और सामाजिक हितों पर भी पड़ रहा है.

नेपाल से म्यांमार तक: भारत के पड़ोस में लगी है आग, 7 पड़ोसी देशों में क्‍या हैं आर्थिक-सियासी हालात
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 10 Sept 2025 11:53 AM IST

पिछले काफी समय से भारत के पड़ोस में कहीं न कहीं बवाल चल ही रहा है. पाकिस्‍तान के बारे में तो क्‍या ही कहना, पहले श्रीलंका, फिर बांग्‍लादेश और अब नेपाल सुलग रहा है. नेपाल में जारी विरोध प्रदर्शन और तनाव ने पूरे दक्षिण एशिया में राजनीतिक अस्थिरता की तस्वीर को और गंभीर बना दिया है. “जनरेशन-जी” आंदोलन के तहत युवा भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और डिजिटल सेंसरशिप के खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं, जबकि सरकार के खिलाफ बढ़ते विरोध ने देश में राजनीतिक असुरक्षा को बढ़ा दिया है. इसी तरह बांग्लादेश में अगस्त 2024 में छात्र आंदोलनों के चलते प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिर गई थी और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनाई गई, लेकिन अब भी लोकतांत्रिक संस्थाओं में स्थिरता नहीं आई है.

नेपाल और बांग्लादेश में युवाओं की बढ़ती असंतुष्टि, लोकतंत्र के कमजोर संस्थान और सेना या बाहरी ताकतों का प्रभाव क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा हैं. इन घटनाओं का प्रत्यक्ष असर न केवल इन देशों की आंतरिक व्यवस्था पर पड़ता है बल्कि भारत के आर्थिक, रणनीतिक और सामाजिक हितों पर भी पड़ता है. इसके साथ ही श्रीलंका में आर्थिक संकट, पाकिस्तान में विद्रोह और सैन्य नियंत्रण, अफगानिस्तान में गरीबी और मानवीय संकट, मालदीव में कर्ज और चीन का बढ़ता प्रभाव, और म्यांमार में सैन्य शासन और गृहयुद्ध जैसी चुनौतियां इस क्षेत्र को और अस्थिर बनाती हैं.

आइए समझते हैं भारत के पड़ोस में स्थित इन सात देशों की मौजूदा आर्थिक-सियासी स्थिति, उनके मुख्य संकट और भारत पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों को.

1. नेपाल - भ्रष्टाचार और डिजिटल आज़ादी की मांग

नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए पहले दो बड़े जन आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1990 में राजशाही के खिलाफ जनता सड़कों पर उतरी और लोकतंत्र बहाल हुआ. 2006 में भी संसद की बहाली के लिए बड़े जन आंदोलन हुए. अब देश में 'जनरेशन-जी' आंदोलन उभर कर सामने आया है, जिसमें युवाओं की एक बड़ी संख्या भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, डिजिटल सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग कर रही है. युवाओं में असंतोष बढ़ रहा है क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पाबंदियां, सरकार के खिलाफ विरोध और आर्थिक ठहराव ने उनकी उम्मीदों को कम कर दिया है. सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाइयों और नीति निर्णयों के बावजूद राजनीतिक नेतृत्व पर आम जनता का विश्वास घटता जा रहा है. नेपाल में आर्थिक विकास धीमा है, रोजगार के अवसर सीमित हैं और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सेंसरशिप ने नागरिक स्वतंत्रता को प्रभावित किया है. इस नई पीढ़ी की आवाज़ ने राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं. यदि सरकार युवा विरोध और डिजिटल आज़ादी की मांगों को नजरअंदाज करती है, तो सामाजिक अस्थिरता और सार्वजनिक गुस्से में वृद्धि की संभावना है.

2. पाकिस्तान - सैन्य प्रभाव, विद्रोह और असंतोष

अप्रैल 2022 में इमरान खान की सत्ता से विदाई के बाद शहबाज शरीफ की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनी, लेकिन वास्तविक सत्ता सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसीम मुनीर के हाथों में बनी रही. बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा में विद्रोहियों के हमले पिछले समय की तुलना में लगभग 70% तक बढ़ गए हैं, जिससे सुरक्षा हालात चिंताजनक बने हुए हैं. देश में तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार ने आम जनता में असंतोष बढ़ा दिया है. धार्मिक कट्टरपंथ, आतंकवाद और सीमा-पार हिंसा ने देश की सुरक्षा स्थिति को और जटिल बना दिया है. इन परिस्थितियों ने पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी अस्थिरता वाले देश के रूप में प्रस्तुत किया है. अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास घटा है और आर्थिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा है. राजनीतिक गुटबाजी और सत्ता संघर्ष ने सरकार की स्थिरता को कमजोर कर दिया है. इन सभी कारकों के चलते पाकिस्तान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असंतुलन गहराता जा रहा है, जो न केवल देश के नागरिकों के लिए चुनौतीपूर्ण है बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा पर भी प्रत्यक्ष प्रभाव डाल रहा है.

3. बांग्लादेश - छात्र आंदोलन और राजनीतिक असमंजस

अगस्त 2024 में भ्रष्टाचार और राजनीतिक दमन के खिलाफ छात्रों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिर गई. अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को नियुक्त किया गया. योजना थी कि 90 दिनों के भीतर चुनाव कराए जाएंगे, लेकिन 13 महीने से अधिक समय हो चुका है और चुनाव टलते जा रहे हैं. कई छात्र नेताओं को शुरुआत में शामिल किया गया था, लेकिन अब उनमें से अधिकांश को हाशिए पर डाल दिया गया है. सेना ही सरकार का संचालन कर रही है. देश में अस्थिरता बनी हुई है. आर्थिक सुधार के प्रयास धीमे हैं और राजनीतिक असुरक्षा बनी हुई है.

4. अफगानिस्तान - गरीबी, मानवीय संकट और तालिबान का शासन

अगस्त 2021 में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में पुनः सत्ता संभाल ली. इसके तुरंत बाद देश में मानवीय संकट गंभीर रूप से गहरा गया. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों के अनुसार, अफगानिस्तान की लगभग 97% आबादी गरीबी में जी रही है, और हर दूसरे परिवार के लिए पर्याप्त भोजन जुटाना भी चुनौतीपूर्ण हो गया है. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए. तालिबान के शासन में महिलाओं के अधिकारों पर प्रतिबंध और सामाजिक जीवन में कट्टरपंथी बदलाव ने देश की सामाजिक स्थिरता को भी कमजोर कर दिया है. लाखों लोग अपने घरों और क्षेत्रीय संघर्षों के कारण विस्थापित हुए हैं. अंतरराष्ट्रीय सहायता कार्यक्रमों पर देश की निर्भरता बढ़ गई है, लेकिन वैश्विक समर्थन पर्याप्त नहीं है. रोजगार की कमी, बुनियादी सेवाओं की अभाव और निरंतर असुरक्षा ने अफगान नागरिकों की जीवन गुणवत्ता को और गिरा दिया है. अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति न केवल देश के अंदर संकट पैदा कर रही है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही है. मानवाधिकारों की स्थिति, गरीबी और सामाजिक असमानता इस संकट को और गहरा बना रही हैं.

5. मालदीव - कर्ज संकट और चीन का प्रभाव

मालदीव, जिसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर आधारित है, गहरे वित्तीय संकट का सामना कर रहा है. देश का कुल विदेशी कर्ज वर्तमान में अपनी जीडीपी का लगभग 134% तक पहुंच चुका है, जो आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है. कुल विदेशी कर्ज में चीन का हिस्सा लगभग 35% है, यानी करीब 91,500 करोड़ रुपये, जिससे चीन की रणनीतिक पकड़ और बढ़ती जा रही है. मालदीव सरकार ने विकास परियोजनाओं और आधारभूत ढांचे के विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश की है, लेकिन बढ़ते कर्ज और ब्याज भुगतान के दबाव ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है. वित्तीय असंतुलन और बढ़ती देनदारियां देश की आर्थिक स्वतंत्रता पर असर डाल रही हैं. देश की मुद्रा में उतार-चढ़ाव, महंगाई और निवेशकों के लिए अनिश्चितता जैसी समस्याएं गहरी होती जा रही हैं. इस कर्ज संकट के चलते मालदीव पर विदेशी प्रभाव बढ़ रहा है, और रणनीतिक रूप से यह हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की स्थिति को मजबूत कर रहा है. वित्तीय और राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मालदीव को कर्ज प्रबंधन, निवेश संतुलन और विदेशी प्रभाव कम करने की दिशा में कदम उठाने होंगे.

6. म्यांमार - सैन्य शासन और नागरिकों पर दमन

फरवरी 2021 में म्यांमार में आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार का तख्तापलट हुआ और सेना ने सत्ता अपने हाथों में ले ली. इसके बाद से देश गहरे गृहयुद्ध और राजनीतिक अस्थिरता में फंसा हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अब तक 6,231 नागरिकों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं. सेना के कब्जे के बाद मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई, जिससे स्वतंत्र पत्रकारिता और लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाया जा रहा है. मानवाधिकार संगठन जैसे Amnesty International और Human Rights Watch ने सेना की कार्रवाई की लगातार निंदा की है. महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर भी गंभीर संकट है. आर्थिक रूप से भी म्यांमार पूरी तरह ठप है. निवेश रुका हुआ है, औद्योगिक उत्पादन कम हो गया है और विदेशी व्यापार प्रभावित हुआ है. पर्यटन, जो देश की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत था, गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है. देश की राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य शासन के चलते अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार म्यांमार पर दबाव बना रहा है, लेकिन स्थानीय नागरिक सुरक्षा और मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार नहीं हो पाया है.

7. श्रीलंका - राजपक्षे परिवार की हार, आर्थिक संकट जारी

श्रीलंका ने 2022 में अपना सबसे गहरा आर्थिक संकट झेला. विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो गया, ईंधन, दवाओं और खाद्यान्न की भारी कमी हो गई. जनता ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा. इसके बाद 23 सितंबर 2024 को अनुरा कुमार दिसानायके ने राष्ट्रपति पद संभाला. अनुरा सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई शुरू की. पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और अन्य नेताओं को जेल की सजा दी गई. इसके बावजूद श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट से उबर नहीं सकी. महंगाई दर 60% तक पहुंची, बेरोजगारी में तेज वृद्धि हुई और गरीब परिवारों पर दो वक्त का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो गया. भारत ने भी अपनी तरफ से श्रीलंका की हर तरह से मदद की. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से सहायता मिलने के बावजूद आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे ही सुधर रही है.

भारत के सातों पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट, सैन्य शासन, विदेशी कर्ज और मानवाधिकारों का संकट गहराता जा रहा है. क्षेत्रीय सहयोग, स्थिरता और विकास के लिए भारत की कूटनीतिक भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी. भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए मानवीय सहायता, व्यापार और रणनीतिक साझेदारी का संतुलन साधना होगा. इन देशों में अस्थिरता का सीधा असर भारत की सीमा सुरक्षा, व्यापार मार्गों, ऊर्जा आपूर्ति और राजनीतिक संबंधों पर पड़ सकता है. संयुक्त प्रयास, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और पारदर्शी शासन ही इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता दिखा सकते हैं.

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