चीन में अमेरिका के बीच पिस गया नेपाल! सोशल मीडिया बैन से बाद भी कैसे जुटे GenZ? पढ़ें Inside Story
नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ Gen-Z युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा है. केपी शर्मा ओली सरकार द्वारा फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और ट्विटर समेत 26 अमेरिकी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद हजारों युवा सड़कों पर उतर आए. संसद भवन पर कब्जे की कोशिश, गोलीबारी और कर्फ्यू जैसे हालात बन गए. वहीं, चीन के दबाव और अमेरिका की नाराजगी के बीच नेपाल का राजनीतिक संकट और गहरा गया है.

नेपाल की राजनीति इस समय सबसे बड़े संकट से गुजर रही है. काठमांडू से लेकर पूरे देश की सड़कों पर युवा सरकार के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं. वजह है—केपी शर्मा ओली सरकार का फैसला, जिसमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बैन कर दिया गया. इस निर्णय ने 18 से 30 साल के युवाओं को गुस्से से उबाल दिया और देखते ही देखते आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया.
इस विरोध ने नेपाल की सत्ता की नींव हिला दी है. संसद भवन पर कब्जे की कोशिश, कर्फ्यू और गोलीबारी जैसी घटनाओं ने साबित कर दिया कि यह सिर्फ सोशल मीडिया बैन का मुद्दा नहीं बल्कि युवाओं के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भविष्य से जुड़ा सवाल है.
संसद पर कब्जे की कोशिश और कर्फ्यू
नेपाल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि संसद भवन पर युवाओं ने कब्जे की कोशिश की. काठमांडू में हजारों प्रदर्शनकारी संसद भवन के गेट नंबर 1 और 2 को तोड़कर अंदर घुस गए. हालात काबू से बाहर हुए तो पुलिस ने गोलियां चलाईं और सेना बुलानी पड़ी. संसद, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास के आसपास कर्फ्यू लगा दिया गया.
सोशल मीडिया बैन से भड़का गुस्सा
ओली सरकार ने 26 अमेरिकी सोशल मीडिया ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया, जिनमें फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब शामिल हैं. सरकार का तर्क था कि इन कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया. लेकिन युवाओं का कहना है कि यह उनकी आवाज दबाने और भ्रष्टाचार छिपाने की साजिश है. उनका आरोप है कि सरकार उनकी आज़ादी और रोजगार छीन रही है.
युवाओं का तर्क और गुस्सा
Gen-Z के लिए सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि रोजगार और शिक्षा का साधन भी है. कई युवा ऑनलाइन बिजनेस और कंटेंट क्रिएशन से पैसा कमा रहे थे. छात्रों का कहना है कि सोशल मीडिया बैन से उनकी पढ़ाई और विदेशी रिश्तेदारों से संवाद प्रभावित होगा. यही वजह है कि बैन ने आंदोलन का रूप ले लिया.
भ्रष्टाचार और पलायन का दर्द
प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि नेपाल की सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई है. रोज़ हजारों युवा विदेश पलायन कर रहे हैं क्योंकि देश में रोजगार और अवसर नहीं हैं. सोशल मीडिया उनके लिए रोज़गार का नया विकल्प था, लेकिन सरकार ने वह भी छीन लिया. यही गुस्सा अब सड़कों पर दिख रहा है.
Gen-Z युवा कैसे एकजुट हुए?
1. VPN और प्रॉक्सी सर्वर का इस्तेमाल
नेपाल के युवा टेक-सेवी हैं. सोशल मीडिया बैन होने के बावजूद उन्होंने VPN और प्रॉक्सी सर्वर का सहारा लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का इस्तेमाल जारी रखा.
2. ऑफ़लाइन नेटवर्किंग और ग्राउंड कनेक्टिविटी
कई छात्र संगठनों और युवा ग्रुप्स ने कॉलेजों, यूनिवर्सिटीज़ और कैफ़े में मिलकर आंदोलन की योजना बनाई. WhatsApp और Telegram बंद होने पर SMS और लोकल चैटिंग ऐप्स का सहारा लिया गया.
3. अंतरराष्ट्रीय मदद और एक्सपोज़र
नेपाल में मौजूद प्रवासी नेपाली छात्रों और एक्टिविस्ट्स ने विदेशों से सोशल मीडिया पर #NepalProtest ट्रेंड कराया. इसने स्थानीय युवाओं को मोटिवेट किया.
4. युवाओं का साझा मुद्दा – रोज़गार और आज़ादी
युवाओं के बीच पहले से बेरोज़गारी और पलायन का मुद्दा बड़ा था. सोशल मीडिया बैन उनके लिए "आखिरी ट्रिगर" साबित हुआ. इससे Gen-Z को लगा कि उनकी कमाई और आज़ादी दोनों छीनी जा रही हैं, और यही गुस्से को ईंधन देता गया.
5. पारंपरिक तरीकों का सहारा
कई जगह पोस्टर, पैम्पलेट, स्ट्रीट मीटिंग्स और वर्ड-ऑफ-माउथ से युवाओं को बुलाया गया. यानी डिजिटल बैन के बावजूद ऑफ़लाइन क्रांति का तरीका अपनाया गया.
क्या चीन का दबाव है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अमेरिकी सोशल मीडिया ऐप्स पर बैन क्यों लगाया गया, जबकि चीनी ऐप्स पर कोई रोक नहीं लगी? यह कदम ओली की हाल की चीन यात्रा के बाद उठाया गया, जिससे शक गहरा रहा है कि नेपाल चीन जैसा सेंसरशिप मॉडल अपनाना चाहता है.
अमेरिका बनाम चीन की जंग
नेपाल में इस फैसले को अमेरिका और चीन की वर्चस्व की लड़ाई से भी जोड़ा जा रहा है. अमेरिका जहां खुले इंटरनेट और अभिव्यक्ति की आज़ादी का पक्षधर है, वहीं चीन इंटरनेट पर सख्त सेंसरशिप लागू करता है. नेपाल का यह कदम अमेरिका की नाराजगी और चीन की बढ़ती पकड़ दोनों को ही दर्शाता है.
ओली सरकार की सफाई
सरकार का कहना है कि कंपनियों को रजिस्ट्रेशन के लिए नोटिस दिया गया था लेकिन उन्होंने नियमों का पालन नहीं किया. इसलिए बैन करना पड़ा. ओली का आरोप है कि बाहरी ताकतें युवाओं को भड़का रही हैं और आंदोलन के पीछे विदेशी समर्थन हो सकता है.
नेपाल का बदलता राजनीतिक समीकरण
यह विरोध नेपाल की राजनीति के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है. गृह मंत्री पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं और अब प्रधानमंत्री ओली पर दबाव बढ़ रहा है. अगर आंदोलन यूं ही जारी रहा तो सरकार गिरने की आशंका भी जताई जा रही है.
युवाओं की ताकत और भविष्य की चुनौती
नेपाल का यह आंदोलन साबित करता है कि युवा किसी भी सरकार की नींव हिला सकते हैं. सोशल मीडिया बैन ने उनके जीवन, रोजगार और स्वतंत्रता पर सीधा असर डाला है. सवाल यह है कि क्या नेपाल चीन के रास्ते पर चलेगा या युवाओं की आवाज़ सुनकर लोकतांत्रिक रास्ता चुनेगा? आने वाले समय में यही आंदोलन नेपाल की राजनीति की दिशा तय करेगा.