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नेपाल में युवाओं के हीरो बने बालेन शाह, Gen-Z इन्हें क्यों सौंपना चाहता है देश की कमान? जानें रैपर से मेयर बनने की कहानी

नेपाल के युवा बालेन को सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बदलाव का प्रतीक मानते हैं. वे मानते हैं कि अगर देश को भ्रष्टाचार से निकालना है, अगर असमानता खत्म करनी है और अगर नेपाल को नई दिशा देनी है, तो बालेन जैसे नेताओं को सामने आना होगा.

नेपाल में युवाओं के हीरो बने बालेन शाह, Gen-Z इन्हें क्यों सौंपना चाहता है देश की कमान? जानें रैपर से मेयर बनने की कहानी
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( Image Source:  x-@PRCAmbNepal )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 9 Sept 2025 1:22 PM IST

नेपाल की सड़कों पर जलते टायर, गूंजते नारे और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ उठी आवाज़ों के बीच एक नाम सबसे ज्यादा गूंजा है, वह बालेन्द्र शाह का है. लोग उन्हें प्यार से ‘बालेन’ कहते हैं. कल तक जो शख्स सिर्फ काठमांडू का मेयर था, आज वही नेपाल की राजनीति में नई उम्मीद और बदलाव का प्रतीक बन गया है.

सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में 19 लोगों की जान चली गई, सैकड़ों घायल हुए, लेकिन इसी खून और आंसुओं के बीच बालेन के लिए समर्थन की बाढ़ उमड़ पड़ी. युवाओं ने अपनी टाइमलाइन पर लिखा “प्रिय बालेन, अभी नहीं तो फिर कभी नहीं.” सवाल है, आखिर कौन हैं ये बालेन शाह, जिनके पीछे नेपाल की पूरी जेनरेशन खड़ी हो गई है? जो उन्हें देश की कमान सौंपना चाहते हैं.

इंजीनियर से रैपर तक का सफर

बालेन शाह का जन्म और पढ़ाई नेपाल में ही हुई. वह पेशे से सिविल इंजीनियर हैं, लेकिन उनकी पहचान सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं रही. बालेन एक जाने-माने रैपर भी हैं. उन्होंने अपने रैप्स में हमेशा सामाजिक मुद्दों, युवाओं की परेशानियों और भ्रष्टाचार को आवाज़ दी. यही वजह है कि वह धीरे-धीरे युवाओं के दिलों में उतरने लगे. पढ़ाई और कला दोनों का संगम बनने वाले बालेन की सोच थी कि सिस्टम को सिर्फ बाहर से कोसने के बजाय भीतर जाकर बदलना होगा.

मेयर चुनाव: जब इतिहास लिखा गया

साल 2022 का काठमांडू नगर निगम चुनाव नेपाल की राजनीति के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ. बालेन ने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और बड़े-बड़े पारंपरिक दलों को हराकर जीत हासिल की. यह जीत सिर्फ उनकी नहीं थी, यह उन युवाओं की जीत थी जो मानते थे कि राजनीति बदलाव ला सकती है, अगर उसमें ईमानदार चेहरे आएं. उनकी जीत ने ये साबित कर दिया कि जनता सिर्फ राजनीतिक दलों की गुलाम नहीं है.

मेयर बालेन के काम: उम्मीद की झलक

मेयर बनने के बाद बालेन ने दिखाया कि राजनीति का मतलब सिर्फ कुर्सी पर बैठना नहीं, बल्कि सिस्टम को बदलना है. उन्होंने काठमांडू की सड़कों और फुटपाथों को साफ-सुथरा किया. सरकारी स्कूलों की निगरानी को सख्त बनाया. इसके अलावा, टैक्स चोरी करने वाले निजी स्कूलों पर नकेल कसी. साथ ही, शहर में सफाई और अनुशासन की नई परंपरा शुरू की. उनकी सबसे बड़ी ताकत रही उनकी बेदाग छवि और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति. यही कारण है कि लोग उन्हें "यंग, क्लीन और ऑनेस्ट लीडर" कहते हैं.

युवाओं का हीरो क्यों बने बालेन?

नेपाल में गरीबी और असमानता हमेशा से बड़ी समस्या रही है. औसतन नेपाली नागरिक की सालाना आय महज 1,300 डॉलर है, लेकिन राजनेताओं के बच्चों की लाइफस्टाइल लग्जरी कारों और विदेश यात्राओं से भरी पड़ी है. यही वजह है कि सोशल मीडिया पर “नेपो किड्स” और “नेपो बेबीज़” जैसे हैशटैग वायरल हो गए. ऐसे माहौल में बालेन की सादगी, उनकी मेहनत और उनकी ईमानदारी युवाओं को अपनी लगी. उन्होंने हमेशा खुलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई और युवाओं को राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.

बालेन का साथ और बढ़ती लोकप्रियता

इस आंदोलन के बीच बालेन शाह ने युवाओं का समर्थन किया. उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि वे आयु सीमा (28 वर्ष से कम) के कारण प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सकते, लेकिन उनका दिल पूरी तरह प्रदर्शनकारियों के साथ है. उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक दल इस आंदोलन का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए न करें. यह बयान युवाओं को और ज्यादा जोश से भर गया. उन्होंने सोशल मीडिया पर बालेन के समर्थन में पोस्ट करना शुरू कर दिया. लोगों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि बालेन अब मेयर की कुर्सी छोड़कर देश का नेतृत्व संभालें.

वैश्विक पहचान और प्रशंसा

बालेन की लोकप्रियता केवल नेपाल तक सीमित नहीं रही. 2023 में टाइम मैगजीन ने उन्हें अपने टॉप 100 उभरते नेताओं की सूची में शामिल किया. न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे वैश्विक मीडिया हाउस ने भी उनके काम की तारीफ की. यह अंतरराष्ट्रीय पहचान बताती है कि बालेन केवल स्थानीय नेता नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर उभरते हुए राजनेता हैं.

मौजूदा राजनीतिक संकट और बालेन की भूमिका

सोशल मीडिया बैन और उसके खिलाफ हुए खूनी प्रदर्शनों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कुर्सी हिला दी. गृह मंत्री रमेश लेखक ने प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया. अब जनता का गुस्सा सीधा प्रधानमंत्री पर है और उनके इस्तीफे की मांग जोरों पर है. ऐसे में बालेन का नाम एक विकल्प के रूप में सामने आ रहा है. लोग कह रहे हैं कि यह समय है जब पारंपरिक राजनीति को बदलकर एक ईमानदार और युवा नेतृत्व को मौका दिया जाए.

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