सोना फिर बना निवेशकों का ‘सेफ हेवन’, जानिए क्यों रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंची कीमतें और क्या अभी निवेश करना सही रहेगा?
सोने की कीमतें 2025 में फिर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं, जिसकी वजह वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव, केंद्रीय बैंकों की भारी खरीदारी और अमेरिकी फेड की ब्याज दरों में कटौती मानी जा रही है. डॉलर के कमजोर होने और रुपये के अवमूल्यन से भारतीय निवेशकों के लिए सोने में रिटर्न और बढ़े हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में सोना $3,500 (₹2,90,500) से $4,000 (₹3,32,000 प्रति औंस) यानी 9340 रुपये प्रति ग्राम से 10 हजार 670 प्रति ग्राम के बीच रह सकता है.

Gold Prices 2025 record high: सोना एक बार फिर इतिहास दोहरा रहा है. 2025 में इसकी कीमतें नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी हैं. वैश्विक अनिश्चितता के समय में हमेशा की तरह, इस बार भी सोने ने निवेशकों को चमकदार रिटर्न दिया है. चाहे 2008 की आर्थिक मंदी रही हो या 2020 की महामारी, जब-जब वित्तीय संकट आया है, सोने ने खुद को सबसे भरोसेमंद संपत्ति साबित किया है. अब 2025 में यह ट्रेंड एक बार फिर दिख रहा है. इस बार वजहें हैं बढ़ती भू-राजनीतिक तनातनी, केंद्रीय बैंकों की खरीदारी और अमेरिकी फेड की ब्याज दरों में कटौती.
क्यों चमक रहा है सोना?
विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council) के अनुसार, बीते एक दशक में दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने अपने सोने के भंडार लगभग दोगुने कर लिए हैं. इससे यह स्पष्ट है कि वैश्विक रिज़र्व के रूप में सोने की स्थिति और मजबूत हुई है. भारत ने भी अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता के बीच अपने गोल्ड रिज़र्व में लगातार इज़ाफ़ा किया है.
साल 2025 में सोने की कीमतों में अब तक 60% से अधिक की बढ़ोतरी
साल 2025 में सोने की कीमतों में अब तक 60% से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. तुलना करें तो 2008 से 2011 के बीच इसमें 100% और 2020 में लगभग 53% की तेजी आई थी. अब सोना करीब 4,000 डॉलर प्रति औंस के स्तर के आसपास ट्रेड कर रहा है, जो एक नया रिकॉर्ड है. अमेरिका में सरकारी शटडाउन और फ्रांस में राजनीतिक संकट ने बाजारों में अनिश्चितता बढ़ा दी है, जिससे निवेशक फिर से सोने की ओर लौट रहे हैं.
अमेरिकी फेड की पॉलिसी और डॉलर की कमजोरी ने दिया बूस्ट
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व द्वारा सितंबर 2025 में 25 बेसिस पॉइंट की ब्याज दरों में कटौती ने सोने की रैली को और बल दिया. आगे एक और रेट कट की उम्मीद जताई जा रही है. जब ब्याज दरें गिरती हैं तो डॉलर कमजोर होता है, जिससे सोने की कीमतें बढ़ती हैं, क्योंकि निवेशक जोखिम से बचाव के लिए सोना खरीदते हैं.
वैश्विक तनाव और भारत में बढ़ी डिमांड
रूस-यूक्रेन युद्ध, पश्चिम एशिया में हिंसा और धीमी वैश्विक वृद्धि ने निवेशकों को सुरक्षित विकल्पों की ओर धकेला है. भारत में गिरते रुपये ने सोने की कीमतों को और बढ़ा दिया है, क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से आयातित सोना महंगा होता है. पिछले 30 वर्षों में सोने ने रुपये में लगभग 11% वार्षिक रिटर्न दिया है, जबकि डॉलर में यह 7.6% के करीब रहा है.
निवेश की नई लहर: ETF और डिजिटल गोल्ड की बढ़त
भले ही ऊंची कीमतों के कारण ज्वेलरी की मांग कुछ धीमी हो गई हो, लेकिन निवेश के रूप में सोना तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. Gold ETF, डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स के ज़रिए निवेशक इसे अपने पोर्टफोलियो में जोड़ रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, सोना सिर्फ महंगाई से बचाव का जरिया नहीं, बल्कि एक जरूरी पोर्टफोलियो डाइवर्सिफायर भी है.
सोने और चांदी दोनों में 50:50 के अनुपात में निवेश करें
टाटा म्यूचुअल फंड की अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पावधि में सोना 3,500–4,000 डॉलर प्रति औंस के दायरे में रह सकता है, लेकिन लंबी अवधि में इसकी संभावनाएं मजबूत हैं. रिपोर्ट में निवेशकों को सलाह दी गई है कि वे गिरावट आने पर सोने और चांदी दोनों में 50:50 के अनुपात में निवेश करें, क्योंकि दोनों धातुएं रणनीतिक निवेश के लिहाज से मजबूत दिख रही हैं.
सोना सट्टेबाजी नहीं, बल्कि स्थिरता का प्रतीक है
यह सोने की सिर्फ त्योहारों वाली बढ़त नहीं है, बल्कि वैश्विक आर्थिक बदलावों, मुद्रा अस्थिरता और राजनीतिक जोखिमों का नतीजा है. भारतीय निवेशकों के लिए यह याद रखने का समय है कि सोना सट्टेबाजी नहीं, बल्कि स्थिरता का प्रतीक है. चाहे गोल्ड ETF हो, डिजिटल गोल्ड या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड- पोर्टफोलियो में इसका छोटा लेकिन स्थायी हिस्सा लंबे समय में सुरक्षा कवच का काम कर सकता .