दाने-दाने को मोहताज पाकिस्तान की खुली किस्मत! बलूचिस्तान में मिला सोने का भंडार, कीमत इतनी कि...
पाकिस्तान को हाल ही में एक बड़ी खनिज संपदा हाथ लगी है. बलूचिस्तान प्रांत में खोजे गए तांबे और सोने के भंडार की अनुमानित कीमत करीब 70 अरब डॉलर बताई जा रही है. यह खोज न केवल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए अहम मानी जा रही है, बल्कि क्षेत्रीय विकास और विदेशी निवेश के लिहाज़ से भी बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इन दिनों ICU में पड़ी है. कभी गिरता रुपया, तो कभी चढ़ता कर्ज़, और IMF का बेलआउट पैकेज अब मानो घरेलू सदस्य बन चुका है. बजट घाटे से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार की खस्ता हालत तक, हर मोर्चे पर हालत पतली है. ऐसे में सरकार की नजर अब ज़मीन के नीचे छिपे खजाने पर है, क्योंकि ऊपर तो कुछ बचा नहीं! बलूचिस्तान की रेको डिक खदान अब उम्मीद की वो आख़िरी रौशनी बन गई है, जिस पर पूरा मुल्क टकटकी लगाए बैठा है.
कहते हैं कि जब ऊपरवाला दरवाज़ा बंद करता है तो ज़मीन में सुरंग खोद देता है. रेको डिक उसी सुरंग का नाम है, जहां 70 अरब डॉलर के तांबे और सोने का भंडार मिला है. यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
रेक़ो डिक: धरती के नीचे छुपा खजाना
बलूचिस्तान के चगाई जिले में छुपे इस खदान को तांबा और सोने से इतनी भरपूर है कि इसे दुनिया के सबसे बड़े अनछुए भंडारों में गिना जाता है. इसे निकालने का खर्चा भी कोई छोटा-मोटा नहीं करीब 6.6 अरब डॉलर की लागत से ये प्रोजेक्ट तैयार हो रहा है. पहले चरण में हर साल करीब 2 लाख टन तांबा निकालने की योजना है, और आगे चलकर ये आंकड़ा 4 लाख टन तक पहुंच सकता है. यानी रिटर्न बड़ा है, और उम्मीदें उससे भी बड़ी
इस प्रोजेक्ट की कुल उम्र 37 साल मानी गई है और अंदाज़ा है कि इससे 70 अरब डॉलर तक की कमाई हो सकती है और वो भी "फ्री कैश फ्लो" के रूप में. लेकिन असली ड्रामा तो ये है कि इतने सालों तक ये प्रोजेक्ट कानूनी झमेलों और खींचतान में फंसा रहा. जैसे-तैसे करके 2022 में जाकर इसका रास्ता साफ हुआ.
कौन-कौन है इस प्रोजेक्ट में शामिल?
रेक़ो डिक की खदान अब सिर्फ पाकिस्तान की कहानी नहीं रही, इसमें अब इंटरनेशनल कंपनियों की एंट्री हो चुकी है. इस प्रोजेक्ट की कमान संभाली है कनाडा की मशहूर माइनिंग कंपनी बैरिक गोल्ड ने, जिसकी इसमें 50% हिस्सेदारी है. बाकी आधा हिस्सा पाकिस्तान की फेडरल और प्रांतीय सरकारों के पास है. यानी आधा प्रोजेक्ट विदेशियों के पास है.
अब इतना बड़ा प्रोजेक्ट है, तो पैसों की भी तो ज़रूरत होगी. ऐसे में एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) $410 मिलियन डॉलर की मोटी रकम लेकर आ रहा है. इसमें से $300 मिलियन सीधे बैरिक गोल्ड को कर्ज़ के रूप में मिलेंगे (जैसे अमीर दोस्त को उधार), और बाकी $110 मिलियन पाकिस्तान सरकार के लिए गारंटी के तौर पर है.
अमेरिका का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक, जापान की JBIC, कनाडा की एक्सपोर्ट डेवलपमेंट एजेंसी, और वर्ल्ड बैंक की IFC। कुछ ने पहले ही पैसा दिया है, और कुछ अभी बातचीत की कुर्सी पर बैठे हैं. कुल मिलाकर, रेको डिक अब एक खदान कम और अंतरराष्ट्रीय बिजनेस ज़्यादा बन चुका है.
पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था में उम्मीद की किरण
पाकिस्तान की आर्थिक हालत पिछले कुछ सालों से खराब दौर से गुजर रही है. बार-बार IMF से कर्ज़ मांगना जैसे आदत बन गई है, विदेशी निवेशक दूरी बनाए हुए हैं, डॉलर की किल्लत बढ़ रही है और ऊपर से राजनीतिक हालात भी ठीक नहीं हैं. इन सबने मिलकर देश की माली हालत और भी कमजोर कर दी है.
अब ऐसे समय में रेक़ो डिक खदान को सरकार एक आर्थिक उम्मीद की तरह देख रही है. सरकार को भरोसा है कि इस प्रोजेक्ट से न सिर्फ तांबा और सोना मिलेगा, बल्कि दुनिया के निवेशकों का भरोसा भी दोबारा जीता जा सकेगा. साथ ही, इससे और भी दुर्लभ खनिजों (rare earths) की खोज को बढ़ावा मिलेगा, जिससे पाकिस्तान के खनिज क्षेत्र में नई जान आ सकती है.
2028 में उत्पादन की शुरुआत, भविष्य में विस्तार की संभावना
बैरिक गोल्ड का कहना है कि अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला, तो 2028 तक रेको डिक खदान से तांबे और सोने का प्रोडक्शन शुरू हो सकता है. कंपनी को उम्मीद है कि 37 साल के तय प्रोजेक्ट टाइम के बाद भी, अगर नई जगहों पर खनिज मिलते हैं और तकनीक में सुधार होता है, तो इस खदान को और लंबे समय तक चलाया जा सकता है. इसका साफ मतलब यह है कि रेको डिक सिर्फ अभी के लिए नहीं, बल्कि भविष्य में भी पाकिस्तान के लिए कमाई का एक मजबूत जरिया बन सकता है. यह प्रोजेक्ट लंबे समय तक देश की अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकता है.
सुरक्षा और राजनीतिक जोखिम बना हुआ है बड़ा सवाल
हालांकि रेको डिक प्रोजेक्ट से उम्मीदें बहुत हैं, लेकिन कुछ गंभीर चुनौतियां भी सामने हैं. बलूचिस्तान एक संवेदनशील और हिंसाग्रस्त क्षेत्र रहा है, जहां अकसर विरोध प्रदर्शन, तोड़फोड़ और सुरक्षा संबंधी घटनाएं होती रहती हैं. अतीत में रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचे पर हमले भी हो चुके हैं. ऐसे में विदेशी निवेशकों और कंपनियों के लिए यह चिंता का विषय बना हुआ है. यदि सुरक्षा की स्थिति न सुधरी, तो परियोजना की प्रगति पर असर पड़ सकता है.
क्या यह सिर्फ एक खदान है या रणनीतिक मोड़?
रेक़ो डिक को सिर्फ एक खदान समझना इसकी असली अहमियत को कम आंकना होगा. यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान के लिए एक बड़ा मौका है खुद को बदलने और मजबूत करने का. अगर सरकार इसे ईमानदारी, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ सही तरीके से आगे बढ़ाती है, तो यह सिर्फ खनिज निकालने वाला प्रोजेक्ट नहीं रहेगा. बल्कि यह दुनिया को दिखा सकता है कि पाकिस्तान भरोसेमंद है और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिए तैयार है.