गाज़ा की महिलाओं का दर्द: खाने और दवाइयों के बदले यौन शोषण की शर्मनाक शर्तें, रिपोर्ट्स में चौंकाने वाले खुलासे

गाज़ा में युद्ध और भूख की मार झेल रही महिलाएं अब राहत के नाम पर यौन शोषण का सामना कर रही हैं. कई महिलाओं ने बताया कि खाने, दवाइयों या नौकरी के बदले पुरुष उनसे यौन संबंध की मांग करते हैं. छह महिलाओं ने अपनी कहानियां साझा की हैं, जबकि मनोचिकित्सक और मानवाधिकार संगठन भी ऐसे मामलों की पुष्टि कर चुके हैं. इंटरनेट और विस्थापन की समस्या के कारण शिकायत दर्ज करना मुश्किल है.;

( Image Source:  X/@GHFUpdates )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 1 Oct 2025 4:30 PM IST

गाज़ा में चल रहे मानवीय संकट के बीच महिलाओं से जुड़ी एक भयावह तस्वीर सामने आई है. न्‍यूज एजेंसी एपी की एक रिपोर्ट और मानवाधिकार संगठनों के हवाले से सामने आया है कि युद्ध और भूख की मार झेल रहीं महिलाओं को खाने, दवाइयों, पानी, यहां तक कि काम के नाम पर यौन संबंधों के लिए मजबूर किया जा रहा है.

रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कई महिलाएं, जो युद्ध की वजह से अपने पति से अलग हो गईं या परिवार का सहारा खो बैठीं, उन्हें स्थानीय लोगों - जिनमें कुछ राहत संगठनों या उनके ठेकेदारों से जुड़े लोग भी बताए गए हैं - ने शिकार बनाया. महिलाओं ने बताया कि उनसे कहा गया: "खाना चाहिए? तो मेरे साथ चलो," या फिर शादी के बहाने यौन संबंध की बात रखी गई.

गाज़ा में जब 90% आबादी विस्थापित हो चुकी है, तब इस तरह के शोषण के मामले महिलाओं को और भी असुरक्षित बना रहे हैं.

नौकरी का झांसा और अपमानजनक सौदा

एक 38 वर्षीय महिला, जिसने युद्ध में अपना कारोबार खो दिया और छह बच्चों की परवरिश का बोझ अकेले संभाल रही थी, उसे एक आदमी ने नौकरी दिलाने का वादा किया. महिला का कहना है कि उसे लगा कि किसी राहत एजेंसी में छह महीने का कॉन्ट्रैक्ट मिलेगा. लेकिन जब वह “ऑफिस” जाने के लिए कार में बैठी, तो उसे एक सुनसान अपार्टमेंट में ले जाया गया. वहां उससे कहा गया कि “मैं तुमसे प्यार करता हूं, पर जाने नहीं दूंगा.” डर और मजबूरी में महिला ने विरोध नहीं किया. बदले में उसे 100 शेकेल (करीब 30 डॉलर) और बाद में एक डिब्बा दवाइयों और खाने का सामान मिला. लेकिन नौकरी का वादा लंबे समय तक झूठ साबित हुआ.

भूख, असुरक्षा और शोषण का चक्र

छह महिलाओं ने AP से अपनी कहानियां साझा कीं. इनमें से अधिकतर ने पहचान उजागर करने से इनकार किया क्योंकि गाज़ा जैसे रूढ़िवादी समाज में विवाहेतर यौन संबंधों को गंभीर अपराध और शर्मनाक माना जाता है. महिलाओं ने कहा कि, “कभी कहा गया, मुझे छूने दो,” “कभी शादी का झांसा देकर बुलाया गया,” “तो कभी कहा गया, साथ चलो, फिर खाना मिलेगा.”

स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों का कहना है कि ऐसी स्थितियां किसी भी मानवीय संकट के दौरान और भयंकर हो जाती हैं. दक्षिण सूडान, बुर्किना फासो, कॉन्गो, चाड और हैती जैसे देशों में भी युद्ध या प्राकृतिक आपदा के दौरान ऐसे मामले सामने आए हैं.

कई महिलाएं गर्भवती भी हुईं

गाज़ा में काम कर रहे चार मनोचिकित्सकों ने बताया कि उनके पास दर्जनों महिलाएं आईं, जिन्हें मजबूरी में यौन शोषण का सामना करना पड़ा. इनमें से कुछ मामलों में महिलाएं गर्भवती भी हुईं. इन मनोचिकित्सकों का कहना है कि पीड़ित महिलाएं सार्वजनिक रूप से बोलना नहीं चाहतीं क्योंकि परिवार और समाज का डर बहुत बड़ा है.

राहत संगठनों पर गंभीर सवाल

छह स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों - जिनमें Women’s Affairs Center और Protection from Sexual Exploitation and Abuse (PSEA) नेटवर्क शामिल हैं - ने पुष्टि की है कि उन्हें ऐसे मामलों की शिकायतें मिली हैं. PSEA नेटवर्क का कहना है कि 2024 में ही उन्हें 18 आरोप मिले, जिनमें स्थानीय ठेकेदारों या राहतकर्मियों द्वारा महिलाओं के शोषण की शिकायत शामिल थी. हालांकि, कितने मामलों की जांच पूरी हुई है, यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई.

सिर्फ ‘आइसबर्ग का टॉप’ है ये आंकड़ा

नेटवर्क की कोऑर्डिनेटर सारा अचिरो ने कहा, “यौन हिंसा हमेशा अंडर-रिपोर्टेड रहती है. जो डेटा सामने आता है, वह सिर्फ ‘आइसबर्ग का टॉप’ है. गाज़ा की स्थिति में वास्तविक मामलों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है.” रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि इंटरनेट और फोन कनेक्टिविटी की कमी, बार-बार का विस्थापन और सामाजिक कलंक, शिकायत दर्ज करने में बड़ी बाधाएं हैं.

विधवा की पीड़ा: “क्या पहना है, कैसे पति खुश करता था?”

एक 35 वर्षीय विधवा ने बताया कि उसे UNRWA (संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी) का यूनिफॉर्म पहने एक व्यक्ति ने सहायता वितरण के दौरान फोन नंबर मांगा. बाद में उस शख्स ने देर रात कॉल करके उससे अश्लील सवाल पूछने शुरू किए - “तुम्हारे कपड़े क्या हैं, पति तुम्हें कैसे खुश करता था?” जब उसने संबंध बनाने से इनकार किया, तो कॉल्स जारी रहीं लेकिन कोई मदद नहीं मिली. महिला ने इसकी शिकायत UNRWA से की, मगर कहा गया कि सबूत (रिकॉर्डिंग) लाना होगा. UNRWA की प्रवक्ता जूलियट टोउमा ने बयान दिया कि एजेंसी की “ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी” है और सबूत की शर्त नहीं रखी जाती.

समाज का दबाव: “कोई यकीन नहीं करेगा”

एक अन्य महिला ने बताया कि जिस शख्स ने उसे नौकरी का झांसा दिया, वही बाद में UNRWA में छह महीने का कॉन्ट्रैक्ट दिलवाने में सफल रहा. लेकिन उसने कभी शिकायत नहीं की. उसका कहना था, “मैंने खुद से कहा, कोई विश्वास नहीं करेगा. लोग कहेंगे कि मैं नौकरी पाने के लिए ये कहानी बना रही हूं.”

युद्ध और भूख ने बढ़ाया संकट

Women’s Affairs Center की निदेशक अमल स्याम ने कहा, “इसका असली कारण इज़राइल की नाकेबंदी और युद्ध है, जिसने गाज़ा की महिलाओं को मजबूरी में इन हालात में धकेला है.” इज़राइल का कहना है कि उसने सहायता पर कोई रोक नहीं लगाई है और अगर देरी हो रही है तो उसकी वजह हमास द्वारा सप्लाई डायवर्ट करना और संयुक्त राष्ट्र की लापरवाही है. दूसरी ओर, मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि युद्ध की वजह से हालात इतने बिगड़े हैं कि महिलाएं खाने के एक पैकेट और बच्चों के लिए दवा तक के लिए शोषण झेल रही हैं.

बढ़ते मामले और चुप्पी का बोझ

एक 29 वर्षीय मां ने बताया कि उसे बार-बार एक राहतकर्मी कॉल करके शादी का प्रस्ताव देता और बच्चों के लिए पोषण सप्लीमेंट देने का ऑफर करता. जब उसने मना किया तो अलग-अलग नंबर से कॉल आती रहीं. “मुझे अपमानित महसूस हुआ. लेकिन मैं मजबूर थी क्योंकि बच्चों के लिए खाना चाहिए था.”

ह्यूमन राइट्स वॉच की महिला अधिकार विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर हीदर बार ने कहा, “हर मानवीय संकट में यौन हिंसा का खतरा बढ़ जाता है. गाज़ा की स्थिति तो और भी भयानक है, खासकर महिलाओं और बच्चियों के लिए.”

गाज़ा की महिलाएं आज दोहरी लड़ाई लड़ रही हैं, एक तरफ युद्ध, भूख और बेघर होने की पीड़ा, तो दूसरी तरफ राहत के नाम पर होने वाला यौन शोषण. यह न केवल मानवीय संकट की गहराई दिखाता है बल्कि यह भी बताता है कि किस तरह 'मदद' का ढांचा खुद महिलाओं के लिए शोषण का ज़रिया बन गया है. मानवाधिकार संगठन इसे “युद्ध की अदृश्य त्रासदी” कह रहे हैं, जबकि महिलाओं की आवाज़ अब भी खामोश है क्योंकि उन्हें डर है कि समाज, परिवार और दुनिया उन पर यकीन नहीं करेगी.

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