पाक-चीन से दोस्ती, ढाका को बनाया ISI की पनाहगाह; गंगा जल संधि को कहा- गुलामी का सौदा; खालिदा जिया के भारत से कैसे थे रिश्ते?
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री Khaleda Zia का भारत से रिश्ता सिर्फ़ जन्म और कूटनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कई मौकों पर विवादों में भी घिरा रहा. कई मुद्दों ने भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव पैदा किया. हालांकि खालिदा जिया ने खुद को भारत-विरोधी नेता कभी नहीं बताया, लेकिन घरेलू राजनीति में भारत को चुनावी मुद्दा बनाना उनकी छवि पर सवाल छोड़ गया. उनके निधन के बाद इन विवादों को फिर से याद किया जा रहा है.;
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री Khaleda Zia का निधन एक व्यक्ति के जाने से कहीं बड़ा घटनाक्रम है. 80 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद उनका जाना उस दौर की विदाई है, जब दक्षिण एशिया की राजनीति तानाशाही, जनआंदोलन और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के बीच झूल रही थी. खालिदा जिया सत्ता में कम और संघर्ष में ज़्यादा रहीं और यही उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी.
खालिदा जिया का भारत से जुड़ाव सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं, बल्कि जन्म और स्मृति से जुड़ा हुआ था. 1945 में उनका जन्म जलपाईगुड़ी (तत्कालीन अविभाजित बंगाल) में हुआ. उनका पूरा नाम खालिदा खानम पुतुल था, जिसे लोग प्यार से पुतुल कहते थे. विभाजन के बाद उनका परिवार दिनाजपुर चला गया. यह पृष्ठभूमि उन्हें भारत और बांग्लादेश के साझा इतिहास की जीवित कड़ी बनाती है. एक ऐसी नेता, जिसकी पहचान सरहद बनने से पहले तय हो चुकी थी.
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मजबूरी से नेतृत्व तक
खालिदा जिया ने राजनीति को कभी करियर के रूप में नहीं चुना. पति Ziaur Rahman की 1981 में हत्या के बाद हालात ने उन्हें आगे धकेला. BNP में शामिल होकर उन्होंने धीरे-धीरे पार्टी की कमान संभाली और एक ऐसी नेता के रूप में उभरीं, जो निजी त्रासदी को सार्वजनिक संघर्ष में बदलना जानती थीं.
एर्शाद विरोधी आंदोलन का चेहरा बनीं
जनरल हुसैन मुहम्मद एर्शाद के सैन्य शासन के खिलाफ खालिदा जिया सात-दलीय गठबंधन का चेहरा बनीं. बार-बार नजरबंदी, गिरफ्तारी और दबाव के बावजूद उन्होंने आंदोलन जारी रखा. इसी दौर ने उन्हें “अनकम्प्रोमाइजिंग लीडर” की छवि दी जो सत्ता से नहीं, सिद्धांतों से समझौता करती थीं.
1991 में लोकतंत्र की वापसी
1991 में लोकप्रिय वोट से प्रधानमंत्री बनकर खालिदा जिया ने इतिहास रचा. उन्होंने संसदीय लोकतंत्र बहाल किया और केयरटेकर सरकार प्रणाली लागू की, जिससे निष्पक्ष चुनाव की नींव पड़ी. VAT, बैंकिंग सुधार और शिक्षा तक पहुंच जैसे कदम उनके पहले कार्यकाल को सुधारवादी पहचान देते हैं.
सत्ता से बाहर, फिर वापसी
1996 में सत्ता गंवाने के बाद खालिदा जिया विपक्ष की भूमिका में रहीं और 2001 में भारी बहुमत के साथ वापसी की. भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ सख़्ती का वादा कर उन्होंने यह साबित किया कि वे सिर्फ़ आंदोलनकारी नेता नहीं, बल्कि चुनावी राजनीति की भी मज़बूत खिलाड़ी थीं. अपने दोनों कार्यकाल में वह भारत से दुश्मनी पर पाक चीन से दोस्ती की. उन्होंने ISI को बांग्लादेश में पनाह दिया और उसके नेटवर्क को फैलाया.
2012 की भारत यात्रा
Khaleda Zia जब भी भारत आती थीं, तो अपने भाषणों या अनौपचारिक बातचीत में जलपाईगुड़ी का ज़िक्र ज़रूर करती थीं. वही शहर जहां उनका जन्म हुआ था. 2012 की भारत यात्रा के दौरान, दिल्ली में एक बंद कमरे की बैठक में उन्होंने कहा था कि “भारत मेरे लिए सिर्फ़ पड़ोसी देश नहीं, मेरी स्मृतियों का हिस्सा है.” यह बात उस समय और अहम लगी, जब वे सत्ता में नहीं थीं, बल्कि एक विपक्षी नेता के तौर पर भारत आई थीं. खालिदा जिया ने 1996 में हुए गंगा जल साझा संधि को 'गुलामी का सौदा' कहा था.
2015 में पीएम से हुई थी मुलाकात
खालिदा जिया का भारत से रिश्ता सत्ता और विपक्ष- दोनों दौर में बना रहा. 2006 और 2012 की भारत यात्राओं से लेकर 2015 में प्रधानमंत्री Narendra Modi से मुलाकात तक, उनका कद सिर्फ़ घरेलू नहीं, क्षेत्रीय राजनीति में भी अहम रहा. भारत-बांग्लादेश संबंधों में वे एक वैकल्पिक लेकिन प्रभावशाली आवाज़ थीं.
बेटे के कंधों पर है विरासत
2018 में भ्रष्टाचार मामलों में जेल, फिर लंबी बीमारी और सशर्त रिहाई, इन सबने उनकी सक्रिय राजनीति को सीमित कर दिया. बावजूद इसके, उन्होंने 2026 के चुनाव तक सक्रिय रहने की इच्छा जताई थी. अब उनकी विरासत उनके बेटे तारिक रहमान के कंधों पर है, जबकि खालिदा जिया इतिहास में एक ऐसी नेता के रूप में दर्ज होंगी, जिनका जीवन सत्ता से ज़्यादा संघर्ष की कहानी था.