जमात से गठबंधन के बाद साथ छोड़ गया NCP का गुरु महफूज आलम, क्यों मानता है 1971 का दोषी?
रविवार को उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें कहा कि वे इस एनसीपी का हिस्सा नहीं बनेंगे. उन्होंने लिखा, 'वर्तमान हालात में जुलाई आंदोलन के मेरे साथियों के लिए मेरा सम्मान, प्यार और दोस्ती हमेशा बनी रहेगी. लेकिन मैं इस एनसीपी का हिस्सा नहीं बन रहा हूं.' महफूज ने यह भी साफ किया कि उन्हें जमात-एनसीपी गठबंधन से कोई सीट का प्रस्ताव नहीं मिला था
बांग्लादेश में 2024 के जुलाई आंदोलन को एक बड़ी क्रांति माना जाता था. इस आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को गिरा दिया था. इस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले छात्रों ने बाद में एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई, जिसका नाम है नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी). लोग इसे छात्रों की पार्टी कहते हैं और उम्मीद करते थे कि यह देश में नई उम्मीद लेकर आएगी. लेकिन अब, जब बांग्लादेश में 12 फरवरी 2026 को आम चुनाव होने वाले हैं, तब एनसीपी के अंदर बड़ा विवाद हो गया है. इस विवाद की मुख्य वजह है पार्टी का जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी गठबंधन.
जमात-ए-इस्लामी एक इस्लामिक पार्टी है, जिसका इतिहास काफी विवादों में रही है. कई लोग इसे 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान का समर्थन करने और नरसंहार में शामिल होने का आरोप लगाते हैं. एनसीपी के कई नेता मानते हैं कि जमात के साथ गठबंधन करना पार्टी के मूल सिद्धांतों और जुलाई आंदोलन की भावना के खिलाफ है. इस वजह से पार्टी में फूट पड़ गई है और कई बड़े नेता इस्तीफा दे रहे हैं या खुद को अलग कर रहे हैं.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
NCP का गुरु महफूज आलम
इस विवाद का सबसे बड़ा नाम है महफूज आलम. महफूज आलम को जुलाई आंदोलन का 'गुरु' कहा जाता है. वे आंदोलन के मुख्य रणनीतिकार थे और कई लोग उन्हें क्रांति के पीछे का दिमाग मानते हैं. बांग्लादेश के अंतरिम प्रशासक मोहम्मद यूनुस ने खुद उन्हें अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलवाया था और कहा था कि महफूज ही 2024 की पूरी क्रांति के मास्टरमाइंड हैं. एनसीपी में महफूज को बहुत सम्मान मिलता है और उन्हें पार्टी का गुरु माना जाता है. लेकिन अब महफूज आलम ने एनसीपी से दूरी बना ली है.
मैं एनसीपी का हिस्सा नहीं
रविवार को उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें कहा कि वे इस एनसीपी का हिस्सा नहीं बनेंगे. उन्होंने लिखा, 'वर्तमान हालात में जुलाई आंदोलन के मेरे साथियों के लिए मेरा सम्मान, प्यार और दोस्ती हमेशा बनी रहेगी. लेकिन मैं इस एनसीपी का हिस्सा नहीं बन रहा हूं.' महफूज ने यह भी साफ किया कि उन्हें जमात-एनसीपी गठबंधन से कोई सीट का प्रस्ताव नहीं मिला था, लेकिन अपनी पुरानी विचारधारा को बनाए रखना उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है. उनका यह पोस्ट एनसीपी के संयोजक नाहिद इस्लाम के उस ऐलान के कुछ घंटे बाद आया, जिसमें नाहिद ने जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने की घोषणा की थी.
दो बड़े नेताओं का इस्तीफा
महफूज आलम के अलावा पार्टी में और भी विरोध हो रहा है. करीब 30 वरिष्ठ नेताओं ने एक संयुक्त पत्र पर साइन करके गठबंधन का विरोध किया. इनमें से दो बड़े नेताओं तस्नीम जारा और ताजनुवा जबीन ने इस्तीफा दे दिया. ताजनुवा जबीन ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा कि वे मानसिक पीड़ा में हैं और इस गठबंधन को एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति मानती हैं. कई महिला नेताओं ने भी इसका विरोध किया है. विरोध करने वाले नेताओं का कहना है कि जमात का इतिहास बांग्लादेश की आजादी और लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है.
एनसीपी के संयोजक ने क्या कहा?
दूसरी तरफ, एनसीपी के संयोजक नाहिद इस्लाम इस गठबंधन का बचाव कर रहे हैं. उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अकेले चुनाव लड़ना पार्टी के लिए मुश्किल है, इसलिए आठ समान विचार वाली पार्टियों के साथ गठबंधन किया गया है. नाहिद ने जोर देकर कहा कि यह कोई विचारधारा वाला गठबंधन नहीं है, बल्कि सिर्फ चुनावी समझौता है. पार्टी अपने सिद्धांतों पर कायम रहेगी. उन्होंने दावा किया कि पार्टी की कार्यकारी समिति में बहुमत से यह फैसला लिया गया और ज्यादातर नेता इसका समर्थन कर रहे हैं. असहमत लोगों को भी अपनी राय रखने या विरोध करने का अधिकार है. यह पूरा मामला दिखाता है कि जुलाई आंदोलन की क्रांति अब चुनौतियों का सामना कर रही है. छात्रों की पार्टी में इतनी जल्दी फूट पड़ जाना कई लोगों को निराश कर रहा है. चुनाव से ठीक पहले ये इस्तीफे और विवाद एनसीपी के लिए बड़ा झटका हैं.





