पश्चिम बंगाल में हुआ जन्म, 'तख्तापलट' में पति को खोया; नहीं रहीं बांग्लादेश की 'अनकम्प्रोमाइजिंग' लीडर बेगम खालिदा जिया
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और BNP प्रमुख Khaleda Zia का 80 वर्ष की उम्र में ढाका के एवरकेयर अस्पताल में निधन हो गया. लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रहीं खालिदा जिया का जीवन सत्ता, आंदोलन, जेल और संघर्ष से भरा रहा. 1991 में बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने से लेकर विपक्ष की सबसे मजबूत आवाज़ बनने तक, उन्होंने देश की राजनीति को दशकों तक प्रभावित किया.
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की प्रमुख बेगम खालिदा जिया का 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वह लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं और इलाज चल रहा था. उनके निधन की खबर से बांग्लादेश की राजनीति में शोक की लहर दौड़ गई है. बेगम खालिदा जिया बांग्लादेश की राजनीति की सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिनी जाती थीं. उनके निधन को बांग्लादेशी राजनीति के एक बड़े अध्याय के अंत के रूप में देखा जा रहा है.
बांग्लादेश की राजनीति में जब भी संघर्ष, सत्ता और प्रतिरोध की बात होगी, Khaleda Zia का नाम अपने-आप सामने आएगा. उनका निधन सिर्फ़ एक पूर्व प्रधानमंत्री के जाने की खबर नहीं है, बल्कि उस राजनीति का अंत है जो सड़कों, जेलों और आंदोलन से निकलकर सत्ता तक पहुंची थी. खालिदा जिया की जिंदगी जितनी ताकतवर दिखती थी, उतनी ही भीतर से अकेली और पीड़ादायक भी थी. अंतिम वर्षों में बीमारी, राजनीतिक अलगाव और पारिवारिक टूटन इन सबके बीच उनका जाना बांग्लादेश को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा करता है, जहां पीछे मुड़कर देखना ज़रूरी हो जाता है. यह कहानी सत्ता से ज़्यादा उस इंसान की है, जिसने हालात के आगे झुकने से इनकार किया.
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अस्पताल में थमी धड़कन
ढाका के एवरकेयर अस्पताल में इलाज के दौरान सुबह फजर की नमाज़ के बाद खालिदा जिया ने अंतिम सांस ली. वह लंबे समय से दिल, फेफड़ों, किडनी, लीवर और डायबिटीज़ जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं. स्थायी पेसमेकर और स्टेंट के बावजूद उनकी हालत लगातार नाज़ुक बनी हुई थी.
बीमारी पर हुई राजनीति
खालिदा जिया की सेहत पिछले कई वर्षों से गिरती रही, लेकिन राजनीति कभी उनके शरीर से दूर नहीं हुई. जेल में रहने से लेकर सशर्त रिहाई तक, हर चरण में उनकी बीमारी भी एक राजनीतिक बहस का हिस्सा बनी रही. इलाज के लिए विदेश जाने की मांग, सरकार की शर्तें और अदालतों की दखल. इन सबके बीच उनकी बीमारी ने बांग्लादेश की राजनीति को असहज सवालों के सामने खड़ा किया.
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री
1991 में खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. उन्होंने संसदीय लोकतंत्र को बहाल किया और केयरटेकर सरकार की व्यवस्था लागू कराई, जिसे आज भी बांग्लादेश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अहम मोड़ माना जाता है. 1996 में सत्ता गंवाने के बाद उन्होंने विपक्ष की भूमिका निभाई, फिर 2001 में ज़बरदस्त बहुमत के साथ सत्ता में लौटीं. यह उनकी राजनीतिक पकड़ का प्रमाण था कि वे हार के बाद भी खुद को फिर स्थापित कर सकीं.
ज़ियाउर रहमान के बाद संभाली BNP की कमान
पति ज़ियाउर रहमान की हत्या के बाद खालिदा जिया ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे राजनीति में आएंगी. लेकिन 1980 के दशक में BNP की कमान संभालते हुए उन्होंने खुद को एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित किया, बिना किसी राजनीतिक प्रशिक्षण के. जनरल एर्शाद के तानाशाही शासन के खिलाफ आंदोलन में खालिदा जिया सबसे मजबूत चेहरा बनकर उभरीं. बार-बार नजरबंदी, गिरफ्तारी और दबाव के बावजूद उन्होंने आंदोलन नहीं छोड़ा. यहीं से उन्हें “अनकम्प्रोमाइजिंग लीडर” कहा जाने लगा. बाद में छोटे बेटे की मौत और बड़े बेटे का वर्षों तक निर्वासन. इन निजी त्रासदियों ने उनके जीवन को भीतर से तोड़ा, लेकिन सार्वजनिक रूप से उन्होंने कभी कमजोरी नहीं दिखाई.
2007 के बाद सब कुछ बदल गया
सेना समर्थित केयरटेकर सरकार के दौर में जेल जाना उनके राजनीतिक जीवन का टर्निंग पॉइंट बना. इसके बाद सत्ता में वापसी कभी नहीं हो सकी. 2014 में संसद से बाहर रहना और 2018 में जेल यह उनके पतन का दौर था. भ्रष्टाचार के मामलों में सजा, फिर कोविड के दौरान सशर्त रिहाई. इन सबने उन्हें सार्वजनिक जीवन से लगभग अलग कर दिया. वह गुलशन के घर तक सीमित रहीं, जहां से राजनीति को दूर से देखती रहीं.
बेटे के पास बीएनपी की कमान
उनकी मौत के बाद बीएनपी की कमान उनके बेटे तारिक रहमान के पास रहेगी लेकिन उनकी कमी समय समय पर खलेगी. समर्थक हों या आलोचक दोनों मानते हैं कि खालिदा जिया के बिना बांग्लादेश की राजनीति पहले जैसी नहीं रहेगी. उस्मान हादी की मौत के बाद बांग्लादेश की राजनीति काफी बदल गई है. फरवरी में खालिदा जिया के निधन का फायदा बीएनपी को मिल सकती है.





