बांग्लादेश में हिंसा के बीच नई पार्टी BMJP ने चला बड़ा दांव, 91 सीटों पर लड़ेगी चुनाव; अध्यक्ष बोले- हम हीं हिंदुओं की असली आवाज हैं

फरवरी 2026 में होने वाले बांग्लादेश आम चुनाव से पहले हिंदुओं और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार के बीच बांग्लादेश माइनॉरिटी जनता पार्टी (BMJP) पहली बार चुनावी मैदान में उतरने जा रही है. पार्टी 300 में से 91 सीटों पर चुनाव लड़ने और 40-45 सीटें जीतने का दावा कर रही है. पार्टी अध्यक्ष सुकृति कुमार मंडल ने अवामी लीग से दूरी बनाते हुए भारत से भी अपना रुख बदलने की अपील की है. BMJP खुद को बांग्लादेश के हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की 'एकमात्र राजनीतिक आवाज' बता रही है और सेक्युलरिज्म, फेडरल सिस्टम व अल्पसंख्यक अधिकारों को अपना मुख्य एजेंडा मानती है.;

( Image Source:  Sora_ AI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 27 Dec 2025 10:45 PM IST

Bangladesh Elections 2026, Bangladesh Minority Janta Party, Sukriti Kumar Mandal: बांग्लादेश में फरवरी में होने वाले आम चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार के बीच एक नई राजनीतिक ताकत उभरने की कोशिश कर रही है. अप्रैल में रजिस्टर्ड हुई बांग्लादेश माइनॉरिटी जनता पार्टी (BMJP) पहली बार चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है. पार्टी का दावा है कि वह जातीय संसद (जतिया परिषद) की कुल 300 सीटों में से 91 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और 40 से 45 सीटें जीतने का लक्ष्य रखती है.

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अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर फोकस

पार्टी अध्यक्ष सुकृति कुमार मंडल ने ढाका से टाइम्स ऑफ इंडिया से फोन पर बातचीत में कहा कि BMJP ने उन सीटों की पहचान कर ली है, जहां अल्पसंख्यक, खासकर हिंदू वोट बैंक 20% से 60% तक है. मंडल के मुताबिक, इन्हीं इलाकों में पार्टी को मजबूत जनसमर्थन मिलने की उम्मीद है.

नामांकन की दौड़, सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा

सोमवार को नामांकन की आखिरी तारीख से पहले पार्टी तेजी से उम्मीदवारों को अंतिम रूप दे रही है. मंडल का कहना है कि हिंदुओं को पहले यह भरोसा चाहिए कि वे सुरक्षित तरीके से घर से निकलकर वोट डाल सकें. उन्होंने साफ कहा कि यदि बीएनपी (खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की पार्टी) या जमात-ए-इस्लामी जैसी किसी मुख्यधारा की पार्टी से गठबंधन होता है, तो अल्पसंख्यक बिना डर के मतदान कर पाएंगे.

सुकृति कुमार मंडल ने कहा, “मुख्यधारा की पार्टियों से गठबंधन होने पर अल्पसंख्यक डर के बिना वोट डाल सकते हैं. अवामी लीग अब हमारे एजेंडे में नहीं है. BMJP ही उत्पीड़ित हिंदुओं की असली आवाज़ है.”

अवामी लीग से दूरी, भारत से अपील

BMJP अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी अवामी लीग को पूरी तरह ‘ऑफ द रडार’ मानती है. उन्होंने भारत से भी अपनी नीति बदलने की अपील की. मंडल का कहना है कि भारत को बांग्लादेश में केवल हिंदुओं और अल्पसंख्यकों के मुद्दे का समर्थन करना चाहिए, न कि किसी एक पार्टी, खासकर अवामी लीग, का...

मंडल ने कहा, “अगर भारत अवामी लीग समर्थक रुख छोड़ता है, तो बांग्लादेश की मुख्यधारा की पार्टियां गंभीरता से ध्यान देंगी. अवामी लीग ने सिर्फ सत्ता पाने के लिए भारत का इस्तेमाल किया.” उनका दावा है कि भारत के रुख में बदलाव से बांग्लादेश में भारत को लेकर सोच भी बदलेगी.

5 सूत्रीय एजेंडा: सेक्युलरिज्म से फेडरल सिस्टम तक

BMJP ने अपना पांच सूत्रीय एजेंडा भी साझा किया है, जिसमें शामिल हैं:

  • एक वास्तविक रूप से सेक्युलर बांग्लादेश की स्थापना
  • देश को पांच प्रांतों में बांटकर फेडरल सिस्टम लागू करना
  • हर राज्य और समुदाय के मौलिक व संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित करना
  • पाठ्यक्रमों में सेक्युलर और वैज्ञानिक बदलाव
  • अल्पसंख्यकों के न्यायसंगत अधिकारों की सुरक्षा

‘एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट’ और हिंदुओं पर अत्याचार का मुद्दा

पार्टी के विज़न डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि स्वतंत्र बांग्लादेश बनने के बावजूद सांप्रदायिकता खत्म नहीं हुई. मंडल ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान काल का एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट आज भी हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है. उनका दावा है कि लाखों एकड़ हिंदू जमीन हड़पी जा चुकी है. जबरन धर्मांतरण, निजी दुश्मनी, मंदिरों में आगजनी और हिंसा रोज़मर्रा की घटनाएं बन चुकी हैं. इससे अनगिनत हिंदू परिवार तबाह हो चुके हैं.

“2.5 करोड़ हिंदू यहीं रहेंगे”

मंडल ने साफ कहा कि बांग्लादेश के करीब 2.5 करोड़ हिंदू देश छोड़ने वाले नहीं हैं. उनके मुताबिक, समाधान पलायन नहीं बल्कि मुख्यधारा की राजनीति में मजबूती से बने रहना है. उन्होंने यह भी कहा कि पहले हिंदू मतदाता अवामी लीग का समर्थन करते थे, लेकिन अब यदि किसी मुख्यधारा की पार्टी ने BMJP से गठबंधन की घोषणा की, तो हिंदू मतदाता खुलकर BMJP के पक्ष में वोट डाल सकते हैं.

फरवरी चुनाव से पहले BMJP का यह दांव न सिर्फ बांग्लादेश की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है, बल्कि भारत-बांग्लादेश रिश्तों और अल्पसंख्यक राजनीति पर भी दूरगामी असर डाल सकता है.

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