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लिंचिंग, डर और इस्लामिस्ट भीड़ - ‘हमें बचा लो, बॉर्डर खोलो’ बांग्‍लादेश से हिंदुओं की भारत से गुहार

बांग्लादेश में हालिया हिंसा और हिंदुओं की लिंचिंग की घटनाओं के बाद अल्पसंख्यक समुदाय में भारी दहशत है. दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल की हत्या के बाद ढाका, रंगपुर, चटगांव और मयमनसिंह में रहने वाले हिंदू भारत से बॉर्डर खोलने की अपील कर रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें इस्लामिस्ट भीड़ की हिंसा और आगामी चुनावों के बाद BNP के सत्ता में आने का डर सता रहा है.

लिंचिंग, डर और इस्लामिस्ट भीड़ - ‘हमें बचा लो, बॉर्डर खोलो’ बांग्‍लादेश से हिंदुओं की भारत से गुहार
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 27 Dec 2025 9:16 AM

बांग्लादेश में हाल के दिनों में हिंदू समुदाय पर बढ़ती हिंसा और भीड़तंत्र ने हालात को बेहद डरावना बना दिया है. दीपू चंद्र दास और अमृत मंडल की निर्मम लिंचिंग के बाद देशभर में फैले हिंदुओं के बीच डर और असुरक्षा का माहौल गहराता जा रहा है. इसी डर के बीच ढाका से लेकर रंगपुर, चटगांव और मयमनसिंह तक हिंदू भारत से गुहार लगा रहे हैं - “कृपया हमें बचा लो, बॉर्डर खोल दो.”

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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में फंसे हिंदुओं को अब यह आशंका सताने लगी है कि इस्लामिस्ट भीड़ की हिंसा और तेज हो सकती है, खासकर ऐसे समय में जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के नेता तारीक रहमान के समर्थन में माहौल बनता दिख रहा है. उन्हें एक हार्डलाइन नेता माना जाता है और अल्पसंख्यकों के लिए उनकी राजनीति को खतरे के रूप में देखा जा रहा है.

“हर दिन अपमान, हर पल मौत का डर”

टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने निर्वासित बांग्लादेश सनातन जागरण मंच के नेता निहार हालदार की मदद से व्हाट्सऐप कॉल पर बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हिंदुओं से बात की. निहार हालदार पर पूर्व ISKCON भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास के साथ देशद्रोह का आरोप लगाया गया है. रंगपुर के 52 वर्षीय एक हिंदू निवासी ने कहा, “हमारे धर्म को लेकर रोज अपमान सहना पड़ता है. हम जवाब नहीं दे सकते, क्योंकि डर है कि कहीं यह ताने भीड़ की हिंसा में न बदल जाएं. सड़क पर चलते वक्त जो अपशब्द सुनते हैं, वही कल लिंचिंग बन सकते हैं. हम फंसे हुए हैं, कहीं जा नहीं सकते. हम दीपू या अमृत जैसा अंजाम नहीं चाहते.”

उन्होंने बताया कि सबसे बड़ा डर BNP के सत्ता में आने का है, जिसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ माना जाता है. उन्होंने कहा, “हम भारत ही जा सकते हैं, लेकिन बॉर्डर पर सख्ती है.”

तारीक रहमान की वापसी ने बढ़ाई बेचैनी

ढाका में रहने वाले एक अन्य हिंदू ने बताया, “दीपू दास की हत्या ने पहले ही डर फैला दिया था. अब खालिदा जिया के बेटे तारीक रहमान की वापसी ने चिंता और बढ़ा दी है. अगर BNP सत्ता में आई, तो हमारे लिए हालात और खराब होंगे. शेख हसीना की अवामी लीग ही हमारे लिए एकमात्र ढाल थी.”

भारत में बसे शरणार्थी इलाकों तक पहुंची चिंता की लहर

इस संकट की गूंज भारत के उन इलाकों तक भी पहुंच गई है, जहां पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए हिंदू शरणार्थी बसे हैं. महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और चंद्रपुर, तथा छत्तीसगढ़ के पाखांजूर जैसे इलाकों में रहने वाले लोगों में भी बेचैनी है. निखिल बांग्ला समन्वय समिति के अध्यक्ष डॉ. सुभाष बिस्वास ने कहा, “हिंदू संगठन आखिर सक्रिय क्यों नहीं हो रहे? संकट के समय बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए भारत ही एकमात्र सहारा है. हत्याएं होंगी, लेकिन बॉर्डर बंद रहेंगे - ऐसा कैसे चलेगा? हम बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं.”

‘2.5 करोड़ हिंदू, यह कोई छोटी संख्या नहीं’

सनातन जागरण मंच से जुड़े एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर TOI से कहा, “बांग्लादेश में करीब 2.5 करोड़ हिंदू रहते हैं. यह कोई छोटी संख्या नहीं है. भारत में हिंदू संगठन सिर्फ बयानबाजी कर रहे हैं. हम एक संभावित नरसंहार की ओर बढ़ रहे हैं.”

‘बॉर्डर खुलने से कम से कम बचने का रास्ता मिलेगा’

मयमनसिंह के एक निवासी ने कहा कि बॉर्डर खुलने का मतलब सामूहिक पलायन नहीं है, “हम सब भारत भागना नहीं चाहते. लेकिन अगर बॉर्डर खुले होंगे, तो हिंसा से बचने का एक रास्ता तो रहेगा.” ढाका के एक अन्य हिंदू ने कहा, “हम सबसे बुरे सपने जी रहे हैं. बॉर्डर खुलना हमारे लिए एक सुरक्षा कवच जैसा होगा.”

रोज़ी-रोटी बनाम जान का सवाल

रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में कई हिंदू हाथ-मुंह की रोज़ी पर जी रहे हैं. दीपू चंद्र दास का परिवार इसका उदाहरण है. ऐसे परिवारों के लिए भारत भागना आसान फैसला नहीं. ढाका के 40 वर्षीय एक व्यक्ति ने कहा, “रोज़ी पहले आती है. भारत में अनिश्चित जीवन सबके लिए संभव नहीं,” उन्होंने यह भी बताया, “अगर आप कोई हिंदू प्रतीक पहन लें, तो राह चलते लोग आपको ‘भारतीय एजेंट’ कहने से नहीं हिचकते.”

सवाल जो भारत और दुनिया के सामने हैं

बांग्लादेश में हिंदुओं की यह SOS पुकार अब सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि मानवीय संकट का संकेत है. सवाल यह है कि क्या भारत इस पुकार को सुनेगा? क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर दबाव बनाएगा?

फिलहाल, ढाका से उठ रही यह आवाज़ साफ है, “हमें बचा लो, हमारे पास भागने का कोई रास्ता नहीं बचा.”

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