Exclusive : बांग्लादेश में कट्टरपंथ की चुनौती कायम, लेकिन भारत के लिए कैसे अवसर हैं तारिक रहमान- एक्सपर्ट ने बताया
Bangladesh Crisis 2025: पिछले डेढ़ साल से बांग्लादेश की राजनीतिक व्यवस्था में अराजकता का आलम है. अब यह बड़े राजनीतिक और सामाजिक संकट की ओर बढ़ रहा है. हालांकि, फरवरी में चुनाव होने हैं. वहां सियासी माहौल किस रूप में सामने आएगा, इसके बारे में अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है. यह भारत के लिए भी परीक्षा की घड़ी है. क्या कट्टरपंथी ताकतों की वापसी होगी? भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर असर क्या पड़ेगा. जानें पूरा डिटेल.
Bangladesh Crisis 2025: बांग्लादेश एक बार फिर ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां राजनीतिक अस्थिरता, संस्थागत कमजोरी और कट्टरपंथी ताकतों की आहट एक साथ सुनाई दे रही है. पूर्व पीएम शेख हसीना का सत्ता से हटाए जाने के बाद से वहां के हालात तेजी से बदले रहे हैं. सत्ता समीकरण डगमगा चुका है, ढाका की सड़कों पर तनाव है और धार्मिक कट्टरपंथ को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश 1971 के बाद के सबसे बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या कट्टरपंथ की वापसी सिर्फ आशंका है या उभरती हुई हकीकत? विदेश मामलों के जानकार डॉ. ब्रह्मदीप अलूने का कहना है कि इस संकट के मायने सिर्फ ढाका तक सीमित नहीं हैं, बल्कि भारत और पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा इससे सीधे जुड़ी है. जानें, इस बारे में उनका और क्या कहना है?
विदेश मामलों के जानकार डॉ. ब्रह्मदीप अलूने का कहना है कि बांग्लादेश में फरवरी में चुनाव होना है. तीन प्रमुख दल सत्ता की रेस में शामिल हैं. इनमें पहली जामात ए इस्लामी है. इसकी सोच इस्लामिक राष्ट्र स्थापना की रही है. यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमेशा से हिंसा में सलिप्त रहा. तौहीद इस्लाम शेख की नेशनल सिटीजन पार्टी हसीना को अपदस्थ करने के बाद बनी है. यह भी खुलकर कट्टरपंथी ताकतों से साथ है.
बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) प्योर इस्लामिक पार्टी के तौर पर जिया उर रहमान ने स्थापित की थी. एक दिन पहले उनके बेटे तारीक रहमान लंदन से लौटे हैं. 17 साल बाद लौटने पर उनका ढाका में अभूतपूर्व स्वागत हुआ है.
इसके अलावा अवामी लीग, एक मात्र ऐसा दल है जो वहां की राजनीति में धर्मनिरपेक्षता की सोच पर आधारित है, लेकिन उसके चुनाव लड़ने पर यूनुस की कार्यवाहक सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है. यानी चुनावी रेस में इस बार अवामी लीग है ही नहीं. देश की धर्मनिरपेक्ष चरित्र वाली पार्टी चुनाव लड़ेगी ही नहीं तो तय है कि निष्पक्ष सरकार भी वहां बनने से रही.
तीनों दल 'इस्लामिक राष्ट्र' के पैरोकार
डॉ. अलूने का आगे कहते हं, '1971 बंगाली अस्मिता के नाम पर पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के नाम पर स्वतंत्र राष्ट्र बना था. आज इस देश की एक ही आवाज है, और वो है इस्लामिक राष्ट्र की. इसकी स्थापना के लिहाज से यह बांग्लादेश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. तय है कि बांग्लादेश के लोगों को इस बार तीन प्रमुख कट्टरपंथी पार्टियों में से एक को चुनना है. ये दल जमात, नेशनल सिटीजन पार्टी और बीएनपी, जो चुनावी रेस में है.
ब्रह्मदीप अलूने के अनुसार ऐसे में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा कौन करेगा? यह सबसे बड़ा सवाल है. वहां की जनता किस राजनीतिक दल पर भरोसा करे, यह एक अलग सवाल है.
भारत के लिए अच्छी बात क्या?
इस बीच भारत की दृष्टि से, एक अच्छी बात यह है कि तारीक रहमान की पार्टी बीएनपी प्रमुख विपक्षी दल है. सत्ता की प्रबल दावेदार भी. उसके नेता तारीक रहमान ने लंदन से बांग्लादेश लौटते ही साफ शब्दों में कहा है कि बांग्लादेश केवल मुसलमानों का नहीं हिंदू, बौद्ध, इसाई व अन्य सभी समुदायों की है. उसके बाद से लगता है कि इस बार बीएनपी की विचारधारा को लेकर चलने की है, जो पहले की तुलना में बदला हुआ है.
तारीक रहमान के बयान की लाइन पर अगर बीएनपी आगे बढ़ती है तो हिंदुओं का वोट उन्हें इस बार चुनाव में मिल सकता है. वैसे भी शेख हसीना के बाद भारत को किसी मददगार की बांग्लादेश में जरूरत है. ताकि पाकिस्तान और चीन का मुकाबला वहां पर भारत कर सके.
जरूरत तो तारीक रहमान को भी भारत की है. ऐसा इसलिए कि वह इंडिया के बिना बांग्लादेश को विकास की राह पर आगे नहीं बढ़ा सकते. तारीक को पता है कि बांग्लादेश की छवि वैश्विक मंच पर खराब है. अल्पसंख्यकों पर देश में अत्याचार हो रहा है. आतंकवादी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है. देश में अस्थिरता का आलम है. आईएसआई, सीआईए, चीन, अमेरिका, पाकिस्तान एक्टिव है. इससे पार पाने के लिए उन्हें भारत की जरूरत पड़ेगी.
तारीक रहमान की चुनौतियां कम नहीं
बीएनपी नेता तारीक रहमान सत्ता में आने की संभावना है. वो आ भी जाएंगे, लेकिन उनके सामने चुनौतियां एक नहीं बल्कि कई होंगी. सत्ता में आते ही देश में स्थिरता सरकार देना और विश्व मंच पर देश की छवि को बेहतर करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. इसमें भारत जैसा लोकतांत्रिक देश उनके लिए मददगार साबित हो सकता है. सोचने वाली बात यह है कि क्या भारत तारीक रहमान पर भरोसा करेगा या तरीक रहमान भारत पर भरोसा करेंगे. अगर ऐसा हुआ तो भारतीय कूटनीति में बड़ा बदलाव माना जाएगा.
भारत ने इससे पहले कभी बीएनपी पर भरोसा नहीं किया. अब भारत की मजबूरी है कि उस पर भरोसा करें. ये वो पार्टी है, जो भारतीय के हितों को बांग्लादेश में पूरा कर सकती है. संबंधों को बेहतर बनाने में ही दोनों की भलाई है. अगर भारत को विकास की राह पर आगे बढ़ने के लिए स्थिर बांग्लादेश चाहिए तो मजबूत और समृद्ध बांग्लादेश के लिए रहमान को भारत का सहयोग चाहिए.
कहने के मतलब यह है कि "भारत और बांग्लादेश की भौगोलिक, आर्थिक और भू राजनीतिक परिस्थितियां दोनों को एक साथ मिलकर चलने को मजबूर करती हैं. तारीक रहमान को लंबे समय तक सत्ता में बने रहना है तो भारत को साथ लेकर चलना होगा. भारत को क्षेत्र में स्थिरता और पाक-चीन की रोकने के लिए मजबूत और स्थिर बांग्लादेश चाहिए. ऐसे में दोनों के पास एक ही विकल्प है. एक-दूसरे पर विश्वास करें."
कट्टरपंथी सरकार की संभावना कितनी?
बांग्लादेश में कट्टरपंथी सरकार बनने की तब ज्यादा हो जाएगी, जब इस्लामिक नेशनल सिटीजन और जमात ए इस्लामी गठबंधन सत्ता में आ जाए. ऐसा होने पर बांग्लादेश में कट्टरपंथ मजबूत होगा. इसके उलट बीएनपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना ले तो बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है.
डॉ. अलूने का कहना है कि एक बात और है. बीएनपी को लंबे समय तक सत्ता में बने रहना है तो उन्हें बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को विकसित करना होगा. वो तभी होगा जब वह भारत से अच्छे संबंध बनाएं. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे. फिलहाल, जो माहौल है उसमें तारीक रहमान सत्ता में वापस आ रहे हैं. उनकी बांग्लादेश के अफसरों और भारतीय पक्षकारों से कुछ बातें हुई हैं. ऐसा होना भी नए बदलाव का संकेत माना जा सकता है. अवामी लीग अल्पसंख्यकों की हिमायती पार्टी है. इस बार चुनावी रेस से बाहर है, इसलिए उसका सत्ता में आना मुश्किल है.
कैडर बेस्ड पार्टी नहीं है जमात-एनसीपी
जमात ए इस्लामी और नेशनल सिटीजन पार्टी की मिलकर सत्ता आने की संभावना नहीं है. ऐसा इसलिए कि दोनों के पास कैडर नहीं है. कैडर बेस्ड पार्टी बीएनपी है, जिसकी दो दशक के बाद सत्ता में वापसी की संभावना है. लंदन से ढाका एयरपोर्ट पर, रहमान के स्वागत में लाखों लोगों का उमड़ना यूं ही नहीं है. ऐसा उसी पार्टी के पक्ष में होता है, जो कैडर बेस्ड पार्टी होती है.
उन्होंने कहा, अभी इंडिया में बीजेपी सत्ता में है. इसके बावजूद जरूरत पड़ने पर कांग्रेस भी अपने कार्यक्रमों में भारी संख्या में भीड़ जुटा लेती है. ऐसा इसलिए कि कांग्रेस कैडर बेस्ड और वैचारिक पार्टी है. इसके उलट बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर क्यों नहीं जीत हासिल कर पाए. उन्होंने पैसे देकर कैडर बनाया था. यानी जन सुराज पार्टी विचारों की पार्टी नहीं है. लंबे समय के लिए लोग विचारों की वजह से जुड़ते हैं. न कि सिर्फ अन्य हितों की वजह है. यूपी में बसपा क्यों कमजोर पड़ गई, उसके पास एक व्यापक सोच नहीं थी.
इस लिहाज से, बीएनपी भले ही अभी चुनावी रेस में वहां के सियासी समीकरणों की वजह से है, लेकिन भविष्य में वो बांग्लादेश में वापसी कर सकती है. ऐसा इसलिए कि इस्लामी लीग कैडर आधारित पार्टी है.
हिंदुओं पर मंडराते खतरे का क्या?
बांग्लादेश में फिलहाल, हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरा बरकरार रहेगा. पूर्व पीएम शेख हसीना ने पुलिस व्यवस्था का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया था. उस पर किसी का भरोसा ही नहीं है. सुरक्षा कौन करेगा? हिंदू तब तक संकट में वहां रहेंगे, जब तक संवैधानिक व्यवस्था कायम नहीं हो जाती.
'घुसपैठ' 100 फीसद पर लगाम मुश्किल
जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है तो बांग्लादेश के साथ भारत की लंबी सीमा है. पूर्वोत्तर भारत की सभी राज्यों की सीमाएं उससे लगती हैं. भौगोलिक स्थितियां जटिल हैं. 170 से 175 किलोमीटर सीमा ऐसी हैं, जहां आप चाहते हुए भी बाड़ नहीं लगा सकते. इसका सीधा मतलब है कि आप घुसपैठ को पूरी तरह से नहीं रोक सकते, क्योंकि वहां से नदियां गुजरती हैं. फिर, म्यांमार से लगती हुई सीमा भी अभी पूरी तरह से आपन है. वहां भी कोई तारबंदी नहीं है.
ऐसे में कट्टरपंथी या आतंकी समर्थक पार्टियां सत्ता में आई तो वो आईएसआई से मिलकर वो बॉर्डर वाले इलाके में अस्थिरता के दौरा को बढ़ावा दे सकती है. ऐसे में भारत सरकार भी अपनी रणनीति बदलनी होगी. ताकि बाहरी ताकतों के दखल को रोकना संभव हो सके.





