EXCLUSIVE: समाजवादी पार्टी 'चुप', आजम खान का ‘सत्ता-सुख’ छीनने वाले बीजेपी MLA बोले- रामपुर में उनका अब सिर्फ ‘घर’ बचा है!
रामपुर के कद्दावर नेता और सपा के पूर्व मंत्री आजम खान 23 महीने बाद सीतापुर जेल से बाहर आए, मगर उनके स्वागत में सपा कार्यकर्ताओं की भीड़ नदारद रही. खुद को कभी सत्ता का शहंशाह मानने वाले आजम पर अब हालात भारी हैं. बीजेपी विधायक आकाश सक्सेना ने कहा कि आजम का रामपुर में अब केवल उनका घर बचा है. वहीं, सपा नेतृत्व ने भी चुप्पी साध ली है.;
करीब 5 साल से एक जेल से दूसरी जेल की मलिन-अंधेरी-दमघोंटू कोठरियों में बेचैनी के आलम में तन्हा दिन-रात बसर करने वाले. ‘बड़बोले’ ‘बदजुबान’ और अब अपना राजनीतिक वर्तमान-भविष्य दोनों ‘बर्बाद’ करे बैठे, कल के कद्दावर और आज के बेहद कमजोर समाजवादी पार्टी नेता-पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान, 23 महीने लगातार बंद रहने के बाद मंगलवार को सीतापुर जेल की सलाखों से बाहर की खुली हवा में विचरने आ सके. वो भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रहम-ओ-करम पर.
जेल के बाहर आजम खान के स्वागत के लिए उनके अपने कुछ चहेते मौजूद देखे गए. इन कुछ शुभचिंतकों को भी आजम खान के बड़े पुत्र अदीब आजम साथ लेकर जेल पहुंचे थे. जेल के बाहर मौजूद इन चंद लोगों की भीड़ में मगर समाजवादी पार्टी के उन कार्यकर्ताओं-पदाधिकारियों की भीड़ का टोटा देखने को मिला, जो कभी इन्हीं आजम खान के मंत्री-सांसद रहते हुए इनके पांवों में लेटी या बिछी होती थी. सब समय-समय की बात है. जिक्र करना जरूरी है कि पहली बार आजम खान फरवरी 2020 में गिरफ्तार होकर 27 महीने जेल की सलाखों में बंद रखे गए थे.
पहले भी बिता चुके हैं जेल में 27 महीने
जैसे-तैसे 27 महीने बाद मई 2022 में बिचारे जेल की सलाखों से बाहर आए भी तो, उन्हें 18 अक्टूबर 2023 को दुबारा गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. इस बार उन्हें अपने बेटे अब्दुल्ला आजम के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में गिरफ्तार किया गया था. तब से अब 23 महीने बाद सीतापुर जेल में बंद रहकर मंगलवार को छूटकर बाहर आए हैं. कितने दिन आजम खान अब जेल से बाहर रह सकेंगे, इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में और कोर्ट-कचहरियों में मौजूद फाइलों और दस्तावेजों पर निर्भर करेगा.
दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है
मंगलवार को जेल से बाहर आने पर उनसे मीडिया ने जब पूछा कि, “जेल में रहने के दौरान उनकी अपनी पार्टी यानी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से कितनी बार बात हो सकी थी? उन्होंने टालने वाले अंदाज में जवाब दिया कि, जेल में रहते हुए किसी से बात संभव नहीं है. इसी तरह का जवाब उन्होंने अपनी पूर्व पॉलिटिकल बॉस रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती से संबंधित सवाल के जवाब में कही. मतलब, साफ है कि पांच साल से कोर्ट कचहरी और जेलों के धक्के खा रहे आजम खान जैसे तैसे जेल से बाहर आते ही जल्दबाजी में मीडिया को या खुद कोई पॉलिटिकल बयान देकर अपने लिए नई मुसीबत खड़ी करने को कतई राजी नहीं हैं.” बात भी सही है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है. सीतापुर जेल से बाहर निकलने पर मीडिया से बेहद नपा-तुला बोलने वाले समाजवादी पार्टी के यह वही कद्दावर नेता पूर्व मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, जो कभी रामपुर की भरी सभा में विरोधियों की बेइज्जती करने में कतई शर्म नहीं खाते थे. जब रामपुर से लेकर लखनऊ तक के राजनीतिक गलियारों में इनकी तूती बोला करती थी तब यही आजम खान कहा करते थे कि, “आईएएस क्या बेचते हैं. यह तो तनखैया हैं. जब मैं सत्ता में वापिस लौटूंगा, तब इन्हीं तनखैया आईएएस आईपीएस से मैं जूते साफ करवाऊँगा.”
कभी अफसरों से जूते साफ कराने का दम भरते थे आजम
ऐसे बड़बोले-बदजुबान और अहंकारी नेता आजम खान का जब बुरा वक्त शुरू हुआ तो, इन्हें रामपुर के तत्कालीन बेखौफ दबंग जिलाधिकारी आईएएस आन्जनेय कुमार सिंह द्वारा कानूनी-कागजों के जरिए कुछ ऐसा रगड़ा दिया गया कि, तब से बिचारे आजम खान जेल, कोर्ट कचहरी के चक्करों से ही निजात नहीं पा सके हैं. कुछ महीनों के लिए जेल से बाहर आकर खुले में सांस नहीं ले पाते हैं. तब तक वही सरकारी अफसर इन्हें दुबारा जेल में ठूंसने की फाइल तैयार कर लेते हैं, जिन्हें यह कभी तनखैया कहकर, अफसरों से अपने जूते साफ कराने का दम भरा करते थे.
जिस पार्टी की सरकार में रहे मंत्री, उसी ने साध ली चुप्पी
बहरहाल, मंगलवार को सीतापुर जेल से बाहर आकर आजम खान ने मुंह न खोलने में ही फिलहाल अपनी भलाई समझी. यहां तक तो सही है. इसके एकदम विपरीत मगर जिस समाजवादी पार्टी के यह पाले-पोसे बड़े नेता पूर्व मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव हैं, उसने भी क्यों मुंह पर लगाम लगाकर चुप्पी साध ली? यह सौ टके का सवाल जमाने के जेहन में मंगलवार को पूरे दिन गूंजता रहा. इस बारे में “स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने विशेष बात की, इन्हीं आजम खान और उनके परिवार का राजनीतिक करियर मिट्टी में मिलाकर, रामपुर से आजम खान की सल्तनत को ज़मींदोज कर देने वाले, भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर युवा नेता यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद विश्वासपात्र मौजूदा रामपुर विधायक आकाश सक्सेना से.
अपनी हालत के लिए आजम खान खुद जिम्मेदार
रामपुर से भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान विधायक आकाश सक्सेना ने कहा, “देखिए अब आजम खान का रामपुर में सिवाए एक अदद उनके पुश्तैनी घर के कुछ बाकी नहीं बचा है. उन्होंने अपने आप ही अपनी ‘करनी’ से सब कुछ गंवा या ज़मींदोज कर दिया है. भले ही समाजवादी पार्टी और आजम खान या उनके चाहने वाले इसके लिए घर में बैठकर क्यों न मुझे या भारतीय जनता पार्टी को कोसते रहें. मगर अगर ईमानदारी से बेहद ठंडे दिमाग और संतुलित मानसिकता से देखा जाए, तो अपनी आज की मौजूदा बदतर हालत के लिए आजम खान खुद जिम्मेदार हैं.
किस मुंह से रामपुर वालों को कोसेंगे आजम?
आजम खान भूल जाएं कि उन्होंने जो कुछ रामपुर वालों के साथ किया है, उसे अब रामपुर वाले और रामपुर वालों की आने वाली पीढ़ियां कभी भूल या भुला सकेंगी. आजम खान के साथ किसी ने कोई गलत नहीं किया है. उनके साथ उनके अपनों ने और रामपुर वालों ने वही किया है, जिसके वे और उनका परिवार हकदार थे. आज जब रामपुर से उनका राजनीतिक बोरिया-बिस्तरा बंध चुका है तब वे, किस मुंह से रामपुर वालों को कोसकर इस सबके लिए जिम्मेदार ठहरा सकते हैं? अरे भाई कालांतर में जब इसी रामपुर में आजम खान का सिक्का चला करता था तब, वह सिक्का भी तो रामपुर की उसी जनता ने ही चलवाया था न जिस जनता ने आजम खान और समाजवादी पार्टी की बेहूदा-बेजा हरकतों के चलते समय आने पर, रामपुर की मिट्टी से इन सबको साफ कर दिया.
मतलब, जब तब रामपुर की जनता के वोट के बलबूते आजम खान और समाजवादी पार्टी सत्ता का सुख भोगती रही. तब तक तो इस रामपुर की जनता आजम खान और समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी थी. जैसे ही इन जैसे बड़बोलों को सत्ता-सुख से जनता ने इन्हें वंचित करके इनके कर्मों का फल दिलवाना शुरू किया, वैसे ही रामपुर शहर और रामपुर वालों में आजम खान व समाजवादी पार्टी को कांटे लगे नजर आने लगे. इसे ही तो कहते हैं मतलब और मौकापरस्ती की ओछी राजनीतिक.”
जेल के बाहर क्यों नहीं दिखे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता?
यह तो बात रही रामपुर के प्रति बदले समाजवादी पार्टी और आजम खान के रवैये की. अब जिक्र इसका भी करना जरूरी है कि जब मंगलवार (23 सितंबर 2025) को सीतापुर में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान 23 महीने बाद जेल से बाहर आये तब उनके स्वागत में, समाजवादी पार्टी के लाल-टोपीधारी और लाल झंडावरदारों की लंबी लाइनें लगीं, आखिर जेल के बाहर क्यों अपने बुजुर्ग नेता के स्वागत में दिखाई नहीं दीं? क्यों आजम खान के जेल से आने की सुगबुगाहट से लेकर उनके सीतापुर से रामपुर पहुंच जाने तक, समाजवादी पार्टी के नेताओं ने मुंह पर ‘टेप’ चिपका लिया था?
सपा नेताओं ने साधी चुप्पी
इसके बारे में “स्टेट मिरर हिंदी” ने मंगलवार दोपहर बाद समाजवादी पार्टी के ही एक राष्ट्रीय नेता से बात की. जिन्होंने अपनी पहचान न खोलने की शर्त पर बताया, “राष्ट्रीय अध्यक्ष जी की तरफ से इस मुद्दे पर फिलहाल पार्टी के किसी भी नेता को कोई बयान न देने की हिदायत दी गई है. ऐसे में कुछ भी बोलना सही नहीं होगा. जो कुछ बोलेंगे वह राष्ट्रीय अध्यक्ष या फिर उनकी दी हुई लाइन पर ही पार्टी के बाकी नेता कुछ बोल पाने की स्थिति में होंगे.” मतलब, इससे साफ जाहिर है कि हुकूमत के जिन कारिदों को पांच साल पहले आजम खान हनक में आकर ‘तनखैया’ कहा करते थे. इन्हीं “तनखैया ब्यूरोक्रेट्स” से अंहकार के मद में चूर जो आजम खान कालांतर में अपने जूते साफ कराने का दम या हुंकार राजनीतिक सभाओं में भरा करते थे, अब दूध के जले न केवल वह आजम खान सतर्क हो चुके हैं. अपितु उन्हें पालने-पोसने वाली पार्टी “समाजवादी पार्टी” और उसके कद्दावर नेता भी, जल्दबाजी में अपने “बड़बोलेपन” का घटिया नमूना पेश करके, फिर कोई एक और मुसीबत बैठे-बिठाए मोल लेने को कतई राजी नहीं है.