महिलाओं के हक में बड़ा फैसला: 'लिव-इन अपराध नहीं, स्टेट सुरक्षा से नहीं झाड़ सकते हाथ', इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशन पर अहम फैसला देते हुए कहा कि बिना शादी के एक साथ रहना गैरकानूनी नहीं है. कोर्ट ने साफ किया कि लिव इन रहने पर महिला की जान-माल की सुरक्षा देना राज्य सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. इससे पुलिस मुंह नहीं मोड़ सकती.;

( Image Source:  ANI )

लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर समाज और प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में बड़ा और स्पष्ट फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि दो बालिगों का लिव-इन में रहना कानून के खिलाफ नहीं है. ऐसे में, यदि महिला को किसी तरह का खतरा है तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य की जिम्मेदारी है, न कि नैतिकता के नाम पर हाथ खड़े कर देना.

हाईकोर्ट का फैसला क्या है ?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशन अपने आप में कोई अपराध नहीं है. अगर कोई बालिग महिला अपनी मर्जी से किसी के साथ रह रही है तो उसे कानूनन सुरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता. पुलिस और प्रशासन यह कहकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकते कि रिश्ता सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, चाहे उसका निजी जीवन समाज की सोच से अलग ही क्यों न हो.

क्यों कहा लिव-इन गैरकानूनी नहीं?

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कानून किसी भी बालिग को अपनी जिंदगी जीने का तरीका चुनने का अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह साफ कर चुका है कि लिव-इन रिलेशन अपराध नहीं है. नैतिकता और कानून को एक-दूसरे के बराबर नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने माना कि भले ही समाज का एक वर्ग लिव-इन को स्वीकार न करता हो, लेकिन कानून का काम नैतिकता थोपना नहीं बल्कि अधिकारों की रक्षा करना है.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, यह मामला एक ऐसी महिला से जुड़ा था जो अपने साथी के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही थी और उसे परिवार या सामाजिक तत्वों से धमकी और खतरे की आशंका थी. महिला ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर सुरक्षा की मांग की थी. निचले स्तर पर प्रशासन ने रिश्ते की प्रकृति का हवाला देकर सुरक्षा देने में आनाकानी की, जिस पर हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए राज्य को उसकी जिम्मेदारी याद दिलाई.

जिन 12 महिलाओं ने अदालत से सुरक्षा की मांग की थी, उस पर विचार करते हुए कोर्ट ने माना की उन्हें जान का खतरा था. इसके बाद हाई कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि अगर कोई उनकी शांतिपूर्ण जिंदगी में खलल डालता है तो उन्हें तुरंत सुरक्षा दी जाए.

राज्य और पुलिस को क्या निर्देश?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ किया कि पुलिस यह नहीं देखेगी कि रिश्ता सामाजिक रूप से स्वीकार्य है या नहीं. खतरे की आशंका होने पर तुरंत सुरक्षा मुहैया कराई जाए. किसी महिला को सिर्फ इसलिए असुरक्षित नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि वह लिव-इन में रह रही है. जस्टिस विवेक कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने कहा, “लिव-इन रिलेशनशिप का कॉन्सेप्ट सभी को मंजूर नहीं हो सकता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसा रिश्ता गैर-कानूनी है या शादी की पवित्रता के बिना साथ रहना कोई जुर्म है.”

क्यों अहम है यह फैसला?

हाई कोर्ट के इस फैसले महिलाओं की स्वतंत्रता और सुरक्षा को कानूनी मजबूती. पुलिस और प्रशासन की नैतिक पुलिसिंग पर रोक. लिव-इन रिलेशन को लेकर फैली कानूनी भ्रम की स्थिति साफ. व्यक्तिगत आज़ादी को संविधान के दायरे में संरक्षण.

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं द्वारा दायर 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, जिन्होंने अपनी जान के खतरे के डर से सुरक्षा मांगी थी, हाई कोर्ट ने संबंधित जिलों के पुलिस प्रमुखों को आदेश दिया कि अगर कोई उनकी शांतिपूर्ण जिंदगी में खलल डालता है तो उन्हें तुरंत सुरक्षा दी जाए।लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं द्वारा दायर 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, जिन्होंने अपनी जान के खतरे के डर से सुरक्षा मांगी थी, हाई कोर्ट ने संबंधित जिलों के पुलिस प्रमुखों को आदेश दिया कि अगर कोई उनकी शांतिपूर्ण ज़िंदगी में खलल डालता है तो उन्हें तुरंत सुरक्षा दी जाए.

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