सीमांचल की 24 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला, कितना काम करेगा ओवैसी का तिलिस्म?
बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सीमांचल यानी किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया में AIMIM प्रमुख Asaduddin Owaisi ने सघन चुनाव प्रचार में जुटे हैं. वह न केवल 2020 की पांच सीटों पर दोबारा पार्टी प्रत्याशियों को जिताना चाहते हैं बल्कि उनकी कोशिश कुछ अन्य सीटों पर भी पार्टी को जीत दिलाने की है. आइए जानते हैं, इस क्षेत्र में ओवैसी का तिलिस्म का असर कितना काम कर रहा है?;
बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 24 सीटों पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने फिर से सरगर्मी बढ़ा दी है. ओवैसी की सक्रियता की वजह से इस बार सीमांचल में एआईएमआईएम, महागठबंधन और NDA के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. जानिए, ओवैसी इस बार भी 2020 वाला ‘तिलिस्म’ दोहरा पाएंगे या नहीं. ऐसा इसलिए के वो पहले गठबंधन करना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बनने पर वो आक्रामक तरीके से चुनाव प्रचार में जुटे हैं.
दरअसल, Seemanchal क्षेत्र में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत दूसरे क्षेत्र की तुलना में अधिक है. यही वजह है कि AIMIM प्रमुख लगातार इस क्षेत्र में पार्टी की सियासी छवि मजबूत बनाना चाहते हैं. साल 2020 में AIMIM ने इस क्षेत्र से 24 में से पांच सीटें जीती थीं. इनमें अमौर, बाईसी, किशनगंज, बहादुरगंज व एक अन्य शामिल हैं. ओवैसी ने पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए सितंबर में “Seemanchal Nyay Yatra” नामक अभियान चलाया था, जिसमें उन्होंने विकास-अभाव और क्षेत्रीय पिछड़ेपन को मुद्दा बनाया.
धार्मिक पहचान पर दिया था जोर
उन्होंने खुलेआम कहा है कि मुसलमान समुदाय को बिहार में समुचित नेतृत्व नहीं मिला है. भाजपा व अन्य दलों पर आरोप लगाए हैं कि Seemanchal के लोगों को ‘घुसपैठियों’ जैसी टैगिंग से बदनाम किया जा रहा है.
दबाव की राजनीति
असदुद्दीन ओवैसी Owaisi ने कहा है कि यदि राष्ट्रीय जनता दल (लालू यादव और तेजस्वी यादव) AIMIM को छह सीटें नहीं देंगे तो पार्टी चुनाव नहीं लड़ेगी. उन्होंने कहा कि गठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव इसलिए दिया था ताकि सांप्रदायिक सरकार के खिलाफ विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़े. महागठबंधन ने एआईएमआईएम के प्रस्ताव को रिजेक्ट कर सीमांचल के लोगों को नुकसान पहुंचाने का काम किया है. अब हम सीमांचल के लोगों को उनका हक दिलाएंगे.
सियासी समीकरण
- सीमांचल में 45–68% तक मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र हैं, जहां ओवैसी खुद को मुसलमानों सही मायने में प्रतिनिधि होने का दावा कर सकते हैं.
- RJD को डर है कि AIMIM वोट-कटवा की भूमिका निभाएगी, जबकि AIMIM खुद को 'विकास और न्याय' की आवाज बताया है.
- बीजेपी इस त्रिकोणीय मुकाबले से अप्रत्यक्ष लाभ उठा सकती है, क्योंकि मुस्लिम वोट विभाजित होने पर हिंदू वोट बैंक एकजुट मतदान कर सकता है.
- ओवैसी ने विकास-अभाव, बाढ़, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे मुद्दे को सीमांचल में उठाया है.
- किशनगंज, बहादुरगंज, अमौर, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसी सीटों पर AIMIM की मौजूदगी ने RJD-कांग्रेस की नींद उड़ी रखी है.
चुनाव में ओवैसी की चुनौतियां
2020 में जितने seats AIMIM ने जीते थे, उनमें से 4 विधायक 2022 में RJD में चले गए. इससे पार्टी की विश्वसनीयता पर अंकुश लगा. RJD-कांग्रेस की ओर से AIMIM को सीट देने में झिझक है, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे मुस्लिम-वोट बांटेगा और बीजेपी-नेता इसे हिंदू-मुस्लिम विभाजन के रूप में पेश कर देंगे.
मत विभाजन का खतरा
महागठबंधन की ओर से यह चिंता जताई जा रही है कि AIMIM का बढ़ना RJD/कांग्रेस के लिए सहायक नहीं होगा बल्कि उनके मुस्लिम वोट शेयर को काट सकता है. यही वजह है कि AIMIM फिर से चुनाव मैदान में है और सीमांचल में चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. ऐसा होना आरजेडी और कांग्रेस के लिए नुकसानदेह भी साबित हो सकता है.
विकास-मुद्दा और स्थानीय जड़ें
एआईएमआईएम प्रमुख Owaisi ने इस बार सीमांचल में विकास को मुद्दा बनाया है. वह हर जनसभा में यह कहते हुए सुने जा रहे हैं कि एआईएमआईएम सिर्फ भाषण नहीं बल्कि जमीन पर बदलाव लाकर दिखाएगी. इन सबके बावजूद पार्टी की पैठ अभी भी बहुत-से हिस्सों में सीमित है और स्थानीय लोगों को अपने पक्ष में करना उनके लिए कठिन लग रहा है.
कितना काम करेगा ओवैसी का तिलिस्म
जहां तक Owaisi के तिलिस्म की बात है तो यह सही है कि Seemanchal के मुस्लिम वोट-बेस में एक विकल्प के रूप में खुद को स्थापित किया है. विकास-वामदर्शी तथा पहचान-आधारित (identity-based) रणनीति दोनों इस्तेमाल की है, लेकिन उसकी पूरी असरकारिता इस बात पर निर्भर करेगी कि AIMIM कितनी सीटें लड़ती है और कितनी जीतती है. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपने पक्ष में वोट विभाजन को रोक पाएंगे या नहीं. पार्टी का स्थानीय नेतृत्व पर लोगों को कितना भरोसा है.?
AIMIM इस बार लोकल पार्टियों से प्रभावी गठबंधन नहीं बना पाई है, पर ऐसे में 'तिलिस्म' असल में क्षणिक ही साबित होने की संभावना है. इसके उलट अगर मुस्लिम मतदाता उनके पक्ष में मतदान करेंगे तो सीमांचल बड़ी ताकत बनकर उभरेंगे.
सीमांचल का क्या है इतिहास?
परंपरागत रूप से सीमांचल पहले कांग्रेस और उसके बाद आरजेडी का गढ़ रहा है। 2020 में बीजेपी ने सबसे ज्यादा सीटें जीती थी. बीजेपी ने 24 में से 9 सीटें जीती थी. कांग्रेस को पांच, जेडीयू चार, एक पर आरजेडी जीती थी. इस समय में सीमांचल के चार जिलों में आरजेडी के दबंग नेता और पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज और शाहनवाज आलम का दबदबा है. दोनों आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के करीबी विश्वासपात्र हैं. हालांकि, सरफराज इस बार जन सुराज के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. यही वजह है कि एआईएमआईएम के सीमांचल की राजनीति में प्रवेश ने आरजेडी की मुश्किलों को बढ़ा दिया है.