Bihar Election 2025: सीएम से ज्यादा डिप्टी सीएम को लेकर शुरू हुआ दंगल, सीटों को लेकर महागठबंधन और एनडीए में रस्साकशी तेज

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखें तय हो चुकी हैं, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन और एनडीए दोनों में सियासी खींचतान चरम पर है. एक ओर वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी 20 सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग पर अड़े हैं, तो वहीं कांग्रेस ने भी 60 सीटों और दो उपमुख्यमंत्री का फार्मूला पेश किया है. सीपीआईएमएल 30 सीटें मांग रही है जबकि एनडीए में चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा अपने-अपने हिस्से को लेकर आक्रामक हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या गठबंधन की यह गुत्थी समय पर सुलझेगी या बिहार की राजनीति में नया समीकरण जन्म लेगा?;

( Image Source:  sora ai )
Curated By :  नवनीत कुमार
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बिहार विधानसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा के साथ ही राज्य की सियासत गरम हो चुकी है. वोटिंग की तारीखें तय हो गई हैं, लेकिन अब तक न तो एनडीए और न ही महागठबंधन सीटों के बंटवारे पर अंतिम निर्णय ले पाए हैं. राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हैं कि बातचीत अंतिम दौर में है, पर अंदरूनी खींचतान अब भी जारी है. दोनों गठबंधन अपने समीकरण साधने में लगे हैं, ताकि कोई वर्ग या जातीय समूह नाराज न हो.

महागठबंधन के अंदर सबसे बड़ी चुनौती वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की मांग से जुड़ी है. आरजेडी ने जहां उन्हें 12 सीटों का प्रस्ताव दिया, वहीं सहनी 20 से अधिक सीटों और उपमुख्यमंत्री पद की शर्त पर अड़े हैं. उनका तर्क है कि निषाद समाज की बड़ी आबादी को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. सहनी ने खुलकर कहा है कि वे 'निषादों की आवाज़' बनकर सत्ता में भागीदारी चाहते हैं और यह मांग अब महागठबंधन के लिए एक कठिन समीकरण बन गई है.

कांग्रेस की बढ़ी हुई दावेदारी

महागठबंधन में दूसरी चुनौती कांग्रेस की ओर से सामने आई है. पिछली बार 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस अब भी 55-62 सीटों की मांग कर रही है. साथ ही उसने उपमुख्यमंत्री पद पर दावा ठोका है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वे कम सीटों पर समझौता तो कर सकते हैं, लेकिन राजनीतिक प्रभाव में कमी नहीं आने देंगे.

दलित और मुस्लिम डिप्टी सीएम की मांग

कांग्रेस ने अपनी रणनीति को सामाजिक न्याय के नए एंगल से जोड़ा है. पार्टी का कहना है कि बिहार की राजनीति लंबे समय से ऊंची जातियों और ओबीसी नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है. इसलिए इस बार एक दलित और एक मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाए जाने की मांग की गई है. यह कदम न केवल चुनावी समीकरण बदल सकता है बल्कि महागठबंधन को विविध सामाजिक समूहों में गहराई तक ले जा सकता है.

सीपीआईएमएल की 30 सीटों की मांग

लेफ्ट पार्टियां भी इस बार किसी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं. सीपीआईएमएल ने आरजेडी के 19 सीटों के प्रस्ताव को ठुकराकर 30 सीटों की मांग रख दी है. बीते चुनावों में उनका प्रदर्शन प्रभावशाली रहा था और उनका वोट बैंक कई सीटों पर निर्णायक साबित हुआ था. तेजस्वी यादव और लेफ्ट नेताओं की हालिया बैठक ने बातचीत को आगे बढ़ाया है, लेकिन अंतिम सहमति अभी बाकी है.

पहले सीट बंटवारा, फिर सीएम फेस

महागठबंधन की बड़ी पार्टियां चाहती हैं कि पहले सीट शेयरिंग तय हो, तभी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के नामों का ऐलान किया जाए. हालांकि इतना साफ है कि मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में 125 से ज्यादा सीटों पर दावेदारी कर रही है, जबकि छोटे दल अपने सामाजिक और भौगोलिक प्रभाव के आधार पर हिस्सेदारी तय करना चाहते हैं.

एनडीए में भी फंसा पेंच

एनडीए के खेमे में भी तस्वीर साफ नहीं है. लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान 25 से 30 सीटों की मांग पर अड़े हैं. वे 2024 के लोकसभा प्रदर्शन और 2020 के विधानसभा नतीजों के आधार पर सीट वितरण चाहते हैं. उनका मानना है कि जिन पांच लोकसभा क्षेत्रों में एलजेपी ने जीत दर्ज की थी, वहां विधानसभा सीटों में भी उनकी पार्टी को प्रमुख हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.

सीटों के साथ शर्तें

सूत्र बताते हैं कि एनडीए ने एलजेपी (रामविलास) को 22-25 सीटें देने पर सहमति जताई है, लेकिन चिराग की अतिरिक्त शर्तों ने बात अटका दी है. वे अपने वरिष्ठ नेताओं के लिए भी टिकट की गारंटी चाहते हैं. उनके लिए यह चुनाव सिर्फ प्रतिनिधित्व का नहीं, बल्कि अपनी पार्टी की साख और ‘रामविलास पासवान की विरासत’ को जिंदा रखने का सवाल है.

जीतन राम मांझी की 22 सीटों की मांग

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) प्रमुख जीतन राम मांझी एनडीए के सबसे नाराज़ सहयोगी माने जा रहे हैं. बीजेपी ने उन्हें मात्र 7 सीटों का ऑफर दिया, जबकि मांझी 22 सीटों की मांग कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक धर्मेंद्र प्रधान और सम्राट चौधरी के साथ उनकी बैठक सिर्फ 15 मिनट में खत्म हो गई. यह संकेत है कि गठबंधन में असंतोष गहराता जा रहा है.

मांझी का लक्ष्य- 'राज्य स्तरीय पार्टी' का दर्जा

मांझी की इस आक्रामकता के पीछे राजनीतिक गणित है. उनकी पार्टी अब तक चार से अधिक सीटें नहीं जीत पाई है, जबकि राज्यस्तरीय पार्टी बनने के लिए सात विधायक जरूरी हैं. इसलिए वे इस बार हर हाल में अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारना चाहते हैं ताकि अपनी राजनीतिक पहचान को स्थायी बनाया जा सके.

सीट से ज्यादा पहचान की लड़ाई

एनडीए के भीतर एक और चुनौती उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा है. उन्हें सात सीटों का प्रस्ताव मिला है, जबकि वे 12 से 15 सीटों की मांग पर कायम हैं. पिछले चुनाव में हारने के बावजूद उन्हें राज्यसभा में जगह दी गई थी, लेकिन अब वे खुद को “फैसला बदलने वाले” वोट बैंक के रूप में पेश कर रहे हैं. उनके लिए यह चुनाव राजनीतिक पुनर्स्थापन का मौका है.

कौन बनेगा 'किंगमेकर'?

बिहार का यह चुनाव सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं बल्कि अस्तित्व और पहचान की जंग बन चुका है. महागठबंधन और एनडीए दोनों ही सामाजिक समीकरणों के नए संतुलन की तलाश में हैं. छोटे दल अपने समुदायों की आवाज़ बनकर बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं. सवाल अब यह है कि क्या इन गठबंधनों में सहमति बन पाएगी या फिर ये चुनाव बिहार की राजनीति में “तीसरी ताकत” के लिए रास्ता खोल देंगे.

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