Bihar Chunav: कुशवाहा वोट बैंक पर किसका दावा दमदार, किसके लिए बनेगा गेम चेंजर?
Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में 'कुशवाहा' मतदाताओं की अहमियत हमेशा से बनी रही है. इस समाज के लोग 'वोट बैंक' इस्तेमाल करने में हमेशा जमीनी हवा के साथ रहे हैं. यही वजह है कि हर चुनाव के दौरान कुशवाहा समाज की अहमियत को कोई भी दल इग्नोर नहीं कर सकता. प्रदेश की कुल आबादी में लगभग 6 से 7 फीसदी लोग कुशवाहा समाज से हैं. इस समाज से जुउ़े मतदाता कई सीटों पर हार-जीत तय करने की ताकत रखते हैं. इस बार किसका दावा भारी पड़ेगा और यह वोट बैंक किसके लिए 'गेम चेंजर' साबित होगा, इसको लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है.;
Bihar Assembly Election 2025: बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक यादव, कुर्मी, मुसलमान, राजपूत और दलित वोट बैंक की चर्चा खूब होती है, लेकिन कुशवाहा (कोयरी) समाज का राजनीतिक महत्व भी किसी से कम नहीं है. इतिहास गवाह है कि जब-जब कुशवाहा वोटर एकजुटता दिखाई, बिहार में सत्ता की तस्वीर बदल गई. 90 के दशक में लालू यादव के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण के साथ कुशवाहा वोट बैंक भी था. नीतीश कुमार भी इसे अपना पारंपरिक आधार मानते रहे हैं. इस बार एनडीए, महागठबंधन और उपेंद्र कुशवाहा जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप इस समाज के वोट पर दावा ठोक रहे हैं.
इस बीच बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, एनडीए, महागठबंधन और छोटे दल सभी इस वोट बैंक को साधने की कोशिशों में जुट गए हैं. सवाल यही है कि आखिर 6 से 7 प्रतिशत वोट किसके खाते में जाएगा.
1. कुशवाहा वोट बैंक का आकार
- बिहार की कुल आबादी में कुशवाहा समाज की हिस्सेदारी 6 से 7 फीसदी मानी जाती है.
- 243 विधानसभा सीटों में से करीब 35 से 40 सीटों पर इनकी निर्णायक पकड़ है.
- पटना, नालंदा, भोजपुर, समस्तीपुर, वैशाली, सीवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, दरभंगा, जहानाबाद और गया जिलों में इनकी अच्छी खासी संख्या है.
2. कब किसके पक्ष में रहा कुशवाहा वोट का झुकाव
- लालू प्रसाद यादव का शासनकाल (1990–2005) के दौर में शुरुआत में यादवों के साथ रहा. इसका बड़ा हिस्सा आरजेडी को पक्ष में मतदान करता रहा.
- नीतीश कुमार दौर में (2005 से अब तक) कुर्मी जाति और OBC वोटों का बड़ा हिस्सा उन्होंने अपनी ओर खींच रखा है. कुशवाहा समाज का एक बड़ा वर्ग भी जेडीयू के साथ है.
3. उपेंद्र कुशवाहा का उभार
लोकसभा चुनाव 2014 में एनडीए के साथ रहते हुए उपेंद्र कुशवाहा (आरएलएसपी) ने इस वोट बैंक को बीजेपी गठबंधन की ओर मोड़ने में अहम भूमिका निभाई. यही वजह है नरेंद्र मोदी सरकार में वो मंत्री भी बने. उन्होंने पार्टी का विस्तार भी किया, लोकसभा चुनाव 2019 और उसके बाद तेजी से आगे बढ़ने के चक्कर में उनका सियासी दांव कमजोर पड़ गया और पिछड़ गए. वर्तमान में राष्ट्रीय लोक मंच के नाम से बिहार विधानसभा में एक बार जोर आजमाइश में जुटे हैं.
4. अब किसके पक्ष में है माहौल
- जेडीयू प्रमुख और सीएम नीतीश कुमार के पास परंपरागत OBC समीकरण में कुशवाहा वोट मेन आधार रहा है. नालंदा–पटना बेल्ट में अब भी नीतीश कुमार का असर असर है.
- साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने भी कुशवाहा वोटों के एक बड़े हिस्से को अपने पक्ष में करने में कामयाबी हासिल की थी. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी एनडीए इस समाज को साधने की रणनीति में जुटा है.
- आरजेडी तेजस्वी यादव एम-वाई समीकरण के साथ कुशवाहा वोट जोड़ने की कोशिश में हैं. तेजस्वी कई सीटों इस समाज के नेताओं को टिकट देने की योजना है.
- उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से अलग होकर नया समीकरण बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन संगठनात्मक कमजोरी और लगातार पाले-बदल से उनकी विश्वसनीयता कम हुई है.
- वामदल, कांग्रेस व अनरू का प्रभाव इस समाज पर बहुत कम है, लेकिन कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले में कुशवाहा वोट ‘किंगमेकर’ साबित होने की क्षमता है.
5. कुशवाहा वोट बैंक गेमचेंजर क्यों?
बिहार में जातीय समीकरण की राजनीति में 6-7% वोट बेहद निर्णायक साबित हो सकते हैं। 35-40 सीटों पर सीधे असर और 60 प्लस सीटों पर अप्रत्यक्ष असर डालने की भी क्षमता इस कम्युनिटी में है. यदि कुशवाहा वोट एकमुश्त किसी खेमे की ओर झुकता है तो सत्ता परिवर्तन की चाबी इस बार भी इसी समाज के हाथ में होना तय है. फिर कुशवाहा समाज का वोट बैंक बिहार की राजनीति का ‘साइलेंट गेमचेंजर’ है.