Kisse Netaon Ke: अपने बालों को 'साधना' कट बताने वाले लालू यादव का देसी ह्यूमर वाला अनसुना किस्सा
Laloo Ke Kisse: लालू यादव का यह ‘बाल' वाला किस्सा सिर्फ उनकी हाजिरजवाबी नहीं, बल्कि उनके करिश्माई व्यक्तित्व की झलक भी देता है. राजनीति में जब बाकी नेता गंभीर भाषणों में डूबे रहते थे, आरजेडी प्रमुख और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव जनता से हंसी-मजाक में खोए रहते थे. जैसे कभी ट्रेन के डिब्बे में, तो कभी मंच पर, तो कभी विमान में, उनके बालों से लेकर बोलने के लहजे तक में एक ‘लालूपन’ समाया हुआ था जो उन्हें दूसरे नेताओं से अलग बनाता था. यही वो राज है, जो आज भी लालू यादव के किस्से को बिहार की सियासी चाय-चौपालों का सबसे मजेदार टॉपिक बनाते हैं.;
Laloo Ki Ankahee Kahani: बात 1991 की है. लालू यादव पटना से बिहार के मधेपुरा विमान से जा रहे थे. विमान में उनके आगे पीछे बैठे एक सहयोगी ने पूछ लिया, “लालू जी, आपके बाल हमेशा इतने सधे-संवरे कैसे रहते हैं? आपकी ये हेयरस्टाइल तो हमेशा एक जैसी रहती है, कौन सा कट है ये?”
लालू ने अपनी मशहूर मुस्कान के साथ जवाब दिया, ”अरे भाई, ये तो 'लालू' कट है. नेता बनना है, तो बालों में भी करिश्मा होनी चाहिए. गलत बात नहीं हैं न, बालों को भी नेता बनना चाहिए, सीधा नहीं, थोड़ा टेढ़ा-मेढ़ा चले तो पहचान बनती है!”
बस, उनका जवाब सुनते ही विमान ठहाके से गूंज उठा. उनके साथ विमान में बैठे लोग, इसलिए हंस पड़े कि लालू के जवाब में वही देसी ह्यूमर था, जिसने उन्हें जनता के दिलों में जगह दिलाई.
ये तो बहुत कम को है पता
पुस्तक 'बंधु बिहारी: कहानी लालू यादव व नीतीश कुमार की' के लेखक संकर्षण ठाकुर कहते हैं, "लालू यादव का यह जवाब सिर्फ हंसी का पल नहीं था, बल्कि उनकी सोच का आईना भी था. वो जानते थे कि राजनीति में केवल भाषण नहीं, स्टाइल और सिंपल कनेक्शन भी मायने रखता है. उनके बाल, उनकी चाल और उनका बोल, सब मिलकर 'लालू ब्रांड' बनाते थे. यही कारण है कि लालू यादव अपनी सियासत के साथ-साथ अपने किस्सों से भी लोगों के दिलों में ऐसे बसे कि उससे बाहर का निकलने का नाम तक नहीं लेते."
फैंसी सैलून में नहीं कटवाते थे बाल
उनके करीबियों का कहना है कि लालू कभी अपने बाल किसी फैंसी सैलून में नहीं कटवाते थे. वे कहते थे, “गांव का नाई ही बढ़िया है, वही असली नजरिया रखता है.” यही वजह थी कि उनके बाल, उनके राजनीतिक करियर की तरह, हमेशा अपने ढंग से सधे और अलग दिखते रहते हैं.
राजनीति के साथ-साथ अपने अंदाज से भी सुर्खियों में रहने वाले लालू प्रसाद यादव के ये किस्से बिहार की गलियों में आज भी उतनी ही गर्मजोशी और भावपूर्ण तरीके से सुनाए जाते हैं, जितनी उनसे जुड़े 'जोक्स' और 'तंज', लेकिन एक किस्सा ऐसा है जो कम ही लोगों को मालूम है.
देसी ह्यूमर पर आधारित 'हेयर कट' वाला किस्सा उस समय की है, जब वह मधेपुरा लोकसभा उपचुनाव में शरद यादव के पक्ष में सियासी माहौल बनाने या यूं कहें कि उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए विमान से मधेपुरा जा रहे थे.
लालू सिर्फ नेता नहीं, किस्सा भी हैं
बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक किस्सा हैं. उनके बोलने का तरीका, हाव-भाव, देसी मजाक और जनता से सीधा जुड़ाव, सब कुछ उन्हें आम नेताओं की भीड़ से अलग बनाता है, लेकिन उनके बालों से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है, जो बहुत कम लोगों को पता है.
ये किस्से लालू यादव के उन दिनों के हैं जो समय उनके लिए बहुत मादक हुआ करते थे. उनका निर्वाचन क्षेत्र उनके सशक्तिकरण के वादे के नशे में होता था. वह अति उत्साह में कुछ लापरवाह हो गया था. लालू स्वयं भी सत्ता के नशे में चूर थे. आज के दिन उन पलों को पुस्तकों के जरिए पीछे मुड़कर देखों तो वो दौर विडंबनाओं से भरी एक यात्रा थी.
लालू यादव मधेपुरा जिस शरद यादव के लिए चुनाव प्रचार करने जा रहे थे, वो उस समय जनता दल के महासचिव थे. वह एक उप-चुनाव था और लालू यादव ने जड़हीन शरद यादव को वहां से चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया था. वे मूल रूप से मध्य प्रदेश के थे, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक निर्वाचन क्षेत्र से दूसरे में झूलते रहे. आखिरकार एक सुरक्षित सीट की तलाश में उत्तर प्रदेश के एक निर्वाचन क्षेत्र से दूसरे में झूलते रहे और एक सुरक्षित सीट की तलाश में बिहार आए, चुनाव लड़ने के लिए.
राजनीति में लालू, शरद से बड़े कैसे?
लालू के सीएम होने की वजह से उनकी जीत पहले से तय थी, जिस दिन उन्हें अपना नामांकन पत्र भरना था, उसके अलावा, एक दिन भी वे खुद अपना चुनाव प्रचार करने नहीं आए. दौड़-भाग लालू यादव ने ही की थी. जबकि आने वाले वर्षों में मधेपुरा दोनों यादवों के लिए एक द्वंद्व युद्ध का मैदान बनने वाला था, लेकिन इससे दोनों अनजान थे. पहले लालू यादव, शरद से जीतने वाले थे और फिर शरद हिसाब बराबर करने वाले थे. लेकिन वर्ष 1991 में वे करीबी यादव भाई लालू यादव, कम-से-कम राजनीतिक रूप से, शरद यादव से बड़े थे.
बाद में पता चला कि लालू के इन भाव भंगिमाओं को उनके साथ विमान में सफर रहे लोग विडंबना समझ रहे थे, जिसके कारण हमारी यात्रा यादगार बना, जबकि वो एक स्वभाषण था, जिसने उस आदमी के दिल व दिमाग में हटा दिया और उसमें भिनभिना रही मधुमक्खियों की गूंज को प्रकट कर दिया. इस बातचीत के क्रम में हम लोग मधेपुरा का आधा रास्ता तय कर चुके थे.
बालों में कंघी करने पर साहेब पीटते थे
इस बीच लालू यादव विमान की खिड़की से बाहर देख रहे थे. शायद उन्होंने कांच में अपना फीका सा प्रतिबिंब देखा और वह अचानक मे मुड़कर बोले, "आप सब जानते हैं, जब मैं बच्चा था तो मुझे बालों में कंघी करते साफ-सुथरे कपड़े पहनने का बहुत शौक था और जब मैं अपनी भैंसें चराने जाता था तो मेरे गांव के बाबू साहेब लोग मुझे पकड़कर पीटने लगते थे."
वे लोग कहते थे, "यादव के नीच कुल का बेटा होने के बावजूद मैं साफ कपड़े पहनने और बालों में कंघा करने का दुस्साहस कैसे कर सकता था? मैं अपनी घृष्टता के लिए नियमित रूप से पीटा जाता था. उस समय यादव या किसी भी ऐसी जाति में पैदा होना, जो ऊंची जाति नहीं थी, भयावह होता था. मेरा परिवार गरीब था. हमारे पास पेट भरने के पर्याप्त साधन नहीं थे."
ऊँची जाति के लोगों भूखा सोते नहीं देखा
"पिताजी और भाइयों ने मेरे लिए बहुत मेहनत की और मुझे पढ़ाया-लिखाया. मैं जब छोटा था तो कभी दिन में दो समय खाना नहीं खाया और यह सब सिर्फ इसलिए था क्योंकि हम एक जाति विशेष में पैदा हुए थे. मैंने कभी ऊँची जाति के लोगों को भूखा रहते नहीं देखा. गांव में गरीब ब्राह्मण भी थे, लेकिन वे कटोरा लेकर किसी के भी घर पहुंच जाते और उन्हें खाना मिल जाता था. हमें वे लोग भगा देते थे."
लोग इसे 'साधना' कट कहते हैं
फिर उनका उदास स्वर अचानक बदल गया और वे मुस्कराते हुए बोले, "लेकिन अब अब देखिए. देखिए, मेरे बाल कितने बढ़िया कटे हैं. लोग इसे साधना कट कहते हैं. अच्छे हैं न? और मेरे गालों की चमक देखिए. यह उन मधुमक्खियों का शहद खाने आई है, जो जाड़े के मौसम में सरसों के फूलों पर बैठती हैं. और मेरे गुलाबी गालों को देखिए, सवर्णो के खिलाफ मेरे विद्रोह का रंग है. क्या मैंने अपने लिए और अपनों के लिए चीजें बदल नहीं दी हैं? मैं इस विमान में उड़ रहा हूं."
अब वो ऐसा नहीं कर सकते, मैंने...
"देखिए, मैं, देश की सबसे बढ़ियां चॉकलेट खा रहा हूं. मैंने कलफ लगा सफेद मलमल पहना हुआ है. मैं जो चाहूं, कर सकता हूं. मैंने हालात बदले हैं और मैं उन्हें और बदलूंगा. सवर्ण मुझसे छुटकारा पाना चाहते हैं, लेकिन मैं अगले बीस साल और उनकी छाती पर बैठूंगा. मेरी बात याद रखिए, बीस साल और. मैंने चीजों को हमेशा के लिए बदल दिया है. ऊंची जातिवाले जब वह सब नहीं कर पाएंगे, जो वे हजारों सालों से करते आ रहे हैं. अब वे गरीबों पर अत्याचार नहीं कर पाएंगे. मैंने उनमें आत्मसम्मान की भावना जगा दी है. अब उन्हें कोई कुछ करने से रोक नहीं सकता. अब वे जैसे चाहें, अपने बाल बना सकते हैं, मेरी तरह."
साफ है, लालू यादव का ‘बाल' वाला किस्सा, उनकी शख्सियत की तरह ही देसी, मजाकिया और यादगार है, जो बताता है कि एक नेता सिर्फ भाषणों से नहीं, बल्कि अपनी अनोखी पहचान से भी लोगों का दिल जीतता है.