बिहार के किस जिले में है सबसे ज्यादा अवारा कुत्ते? जमीन के बाद जानवरों का हुआ सर्वे तो बढ़ गई टेंशन
बिहार में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. जिसको लेकर पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने एक सर्वे कराया. सर्वे के मुताबिक, बिहार के 37 जिलों में आवारा कुत्तों की कुल संख्या 6.84 लाख से ज्यादा हो चुकी है. यह तेजी से बढ़ती आबादी अब लोगों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और दैनिक जीवन के लिए गंभीर खतरा बन गई है.;
बिहार में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या अब एक गहरे संकट में बदलती जा रही है. पशुपालन एवं डेयरी विभाग की नई सर्वे रिपोर्ट ने राज्य में फैली इस समस्या की भयावह तस्वीर सामने रखी है. सर्वे के मुताबिक, बिहार के 37 जिलों में आवारा कुत्तों की कुल संख्या 6.84 लाख से ज्यादा हो चुकी है. यह तेजी से बढ़ती आबादी अब लोगों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और दैनिक जीवन के लिए गंभीर खतरा बन गई है.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
रिपोर्ट बताती है कि शहरी क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन की कमी, तेजी से बढ़ता शहरीकरण और पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम (ABC) के प्रभावी ढंग से न चलने के कारण यह समस्या लगातार बढ़ रही है. एक्सपर्ट का कहना है कि यदि स्थिति पर तत्काल नियंत्रण नहीं किया गया तो अगले 5 सालों में यह संख्या दोगुनी हो सकती है.
गया में सबसे अधिक आवारा कुत्ते
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार गया जिला सबसे अधिक प्रभावित है, जहां 57,920 आवारा कुत्तों की गणना की गई है. इसके बाद रोहतास (31,668), नालंदा (31,976) और पूर्वी चंपारण (30,006) आते हैं. मुजफ्फरपुर सूची में सातवें स्थान पर है, जहां 28,146 कुत्ते पाए गए हैं. सबसे कम संख्या शिवहर (3,270) और लखीसराय (5,260) में दर्ज हुई है. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कई जिलों में स्थिति बेहद गंभीर होती जा रही है.
रेबीज का बढ़ा खतरा
आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या के साथ ही कुत्ते द्वारा काटने की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है. मुजफ्फरपुर में रोज 40–50 लोग कुत्ता काटने का शिकार हो रहे हैं. इस साल जिले में एक बच्ची की कुत्ते के हमले में मौत भी हो चुकी है. गंभीर रूप से घायल मरीजों को बाहर से महंगे इंजेक्शन खरीदने पड़ रहे हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि सबसे बड़ा खतरा रेबीज का है, जिसके संक्रमण के बाद बच पाना बेहद मुश्किल होता है.
नगर निगम की योजनाएं फेल
रिपोर्ट बताती है कि नगर निगमों द्वारा कुत्तों की नसबंदी के लिए बनाई गई योजनाएं जमीन पर लागू ही नहीं हो पा रही हैं. कई निगमों ने कुत्ता पकड़ने का काम शुरू किया, लेकिन कुछ ही दिनों में अभियान रोक दिया गया. ABC कार्यक्रम नियमित न चलने से कुत्तों की आबादी तेजी से बढ़ती गई. गया, रोहतास, नालंदा, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, औरंगाबाद और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में स्थिति सबसे चिंताजनक है.
क्या बिहार सरकार बनाएगी ठोस रणनीति?
आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और इसके स्वास्थ्य संबंधी खतरे को देखते हुए विशेषज्ञों ने ABC कार्यक्रम को मजबूती से लागू करने, कचरा प्रबंधन सुधारने और जिलों में व्यापक अभियान चलाने की जरूरत बताई है. सवाल यह है कि क्या सरकार इस बढ़ते संकट को गंभीरता से लेते हुए कोई व्यापक नीति लागू करेगी, या हालात यूं ही बिगड़ते रहेंगे?