क्यों बार-बार बदली बिहार विधानसभा में सीटों की संख्या, 30 से 331 और अब कितनी, क्या है वजह?
बिहार का सियासी इतिहास काफी समृद्ध रहा है.बिहार में विधानसभा की शुरुआत अंग्रेजी शासन में पहली बार हुई थी. उसके बाद से सीटों की संख्या समय-समय पर बदलती रही. विधायी सदन के लिए सीटों की संख्या भी सिर्फ 30 हुआ करती थी, फिर बढ़कर 331 तक पहुंची और अब मौजूदा समय में 243 है. इसी 243 सीटों पर नवंबर में चुनाव होना है, जिसकों लेकर राजनीति दलों के बीच सियासी घमासान चरम पर पहुंच गया है.;
बिहार विधानसभा चुनाव दो महीने के बाद होना है. इसलिए, सभी के लिए यह जानना जरूरी है कि बिहार में पहली बार विधानसभा या परिषद का गठन कब हुआ. पहली बार बंगाल से हटकर बिहार का अलग परिषद बना तो उसमें केवल 30 सदस्य ही चुने जाते थे, लेकिन राज्य के क्षेत्रफल, जनसंख्या और पुनर्गठन के साथ विधानसभा सीटों की संख्या कई बार बदली. सीटों की संख्या 30 से 331 तक पहुंची. वर्तमान में सीटों की संख्या कम होकर 243 है. आखिर विधानसभा सीटें क्यों बढ़ाई या घटाई जाती हैं? इसके पीछे जनसंख्या और परिसीमन आयोग की बड़ी भूमिका होती है.
सीट बदलने की वजह क्या है?
विधानसभा और परिषद में सदस्यों की संख्या प्रदेश की कुल जनसंख्या और भौगोलिक आधार पर बढ़ाई या घटाई जाती रही है. परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) ने समय-समय पर ने सीटों की नई सीमाएं तय की. झारखंड का अलग राज्य बनने से बिहार की कुल विधानसभा सीटें घटकर 243 हो गई. इससे पहले 1935 में बिहार से अलग होकर ओडिशा अलग राज्य बना. बिहार विधानसभा की शुरुआत केवल 30 सीटों से हुई थी. यह संख्या अधिकतम 331 और फिर 324 तक हुई. अब विधानसभा में सदस्यों की संख्या 243 है.
क्या है बिहार का सियासी इतिहास?
बिहार ने अपनी सभ्यता, ज्ञान और राजनीतिक समृद्धि, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परंपरा से पूरे विश्व को आलोकित किया. विश्व में गणतंत्र की जन्मस्थली बिहार वैशाली रही है. वज्जि संघ के नेतृत्व में दुनिया के पहले रिपब्लिक (गणराज्य) की स्थापना यहीं हुई थी. मगध, अंग, विदेह, वज्जि संघ, अंगुत्तराप, कौशकी एवं समूहोत्तर के रूप में चिन्हित भौगोलिक क्षेत्र को ही आज बिहार के रूप में जाना जाता है.
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में मगध साम्राज्य के तहत इस भू-भाग को राजनीतिक एकता प्राप्त हुई. पाटलिपुत्र मगध साम्राज्य का केन्द्र बिन्दु बना. 18वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजी शासन के दौरान बिहार का भू-भाग बंगाल प्रेसीडेंसी का अंग बना दिया गया. परंतु बिहार के लोग सियासी सक्रियता एवं कर्मठता के बल पर अगल पहचान उस दौर में भी बनाए रखने में सफल रहे.
बंगाल प्रेसीडेंसी अलग होने के बाद बिहार विधानसभा का इतिहास
बिहार विधानसभा की वेबसाइट https://vidhansabha.bihar.gov.in/ पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार प्रदेश में विधानसभा गठन और उसमें बदलाव से संबंधित तथ्य:
1. 12 दिसंबर, 1911 को ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में बिहार एवं उड़ीसा को मिलाकर बंगाल से पृथक राज्य बनाने की घोषणा की. राजधानी पटना तय किया गया.
2. 22 मार्च, 1912 को बंगाल से अलग होकर 'बिहार एवं उड़ीसा राज्य अस्तित्व में आया और सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली इस राज्य के पहले उपराज्यपाल बने. 43 सदस्यों वाली परिषद् का गठन किया गया. 24 सदस्य निर्वाचित एवं 19 सदस्य उप राज्यपाल द्वारा मनोनीत थे।
3. यही परिषद सदस्यों के संख्या बल में अनेक परिवर्तनों के बाद आज बिहार विधानसभा के रूप में अस्तित्व में है. विधायी परिषद की पहली बैठक 20 जनवरी, 1913 को पटना में हुई थी.
4. भारत सरकार अधिनियम 1919 के द्वारा बिहार एवं उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करते हुए उपराज्यपाल की जगह राज्यपाल की नियुक्ति की गई. लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न
सिन्हा पहले गवर्नर बने. बिहार एवं उड़ीसा प्रांतीय परिषद में निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ाकर क्रमश: 76 एवं 27 कर दी गई.
5. वर्ष 1920 में एक नए भवन का निर्माण कराया गया एवं परिषद का काम इसी भवन में होने लगा. यही परिषद भवन आज बिहार विधानसभा का मुख्य भवन है.
6. बिहार एवं उड़ीसा प्रांतीय परिषद की पहली बैठक 7 फरवरी, 1921 को सर वाल्टर मोरे की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई. इसे बिहार के प्रथम राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने संबोधित किया था.
7. भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत बिहार एवं उड़ीसा अलग-अलग स्वतंत्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आए. बिहार में द्विसदनीय विधायिका की शुरुआत हुई. बिहार में पूर्व से कार्यरत परिषद का नामकरण बिहार विधानसभा कर दिया गया. 30 सदस्यों वाली नई बिहार विधान परिषद की पहली बैठक राजीव रंजन प्रसाद की अध्यक्षता में 22 जुलाई, 1936 को हुई.
8. भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत बिहार विधानसभा के सदस्यों की संख्या 152 कर दी गई. इस आधार पर जनवरी, 1937 में बिहार विधान सभा के गठन हेतु चुनाव सम्पन्न हुए एवं 20 जुलाई 1937 को पहले मोहम्मद यूनुस पीएम बने और फिर डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में विधिवत प्रथम सरकार गठित हुई.
9. साल 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ के पश्चात् ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रांतीय उत्तरदायी सरकार की सहमति लिए बगैर ही भारतीयों को इस युद्ध में झोंक दिया गया. इसके विरोध में 31 अक्टूबर 1939 को प्रधानमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने इस्तीफा दे दिया. उसके बाद बिहार विधानसभा भंग कर दी गई.
10. 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् बिहार में एक बार फिर विधानसभा चुनाव कराए गए. डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में फिर सरकार बनी.
11. 1950 में भारतीय संविधान के लागू हो जाने के पश्चात् इसके प्रावधानों के अनुसार 1952 एवं 1957 में क्रमशः पहले एवं दूसरे आम चुनाव सम्पन्न हुए.
12. 1952 के चुनाव में 330 सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन हुआ था. एक सदस्य अलग से मनोनीत किए गए.
13. राज्य पुनर्गठन आयोग 1956 के प्रावधानों के आधार पर बिहार की सीमा में फिर परिवर्तन हुआ. बिहार विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 330 से घटकर 318 हो गई एवं एक सदस्य मनोनीत बच गए. कुल सदस्यों की संख्या 319 हो गई.
14. 1962, 1967, 1969 (मध्यावधि चुनाव ) एवं 1972 में हुए बिहार विधान सभा के विभिन्न चुनावों में इसके सदस्यों की संख्या 319 ही रही.
15. साल 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में बिहार विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या 318 से बढ़कर 324 हो गई तथा एक मनोनीत सदस्य पूर्ववत रहे. इस प्रकार बिहार विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 325 हो गई.
16. नवंबर 2000 में भारतीय संसद द्वारा 'बिहार पुनर्गठन विधेयक' पारित होने के बाद बिहार से अलग होकर झारखंड एक पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया.
17. बिहार विधानसभा के लिए निर्वाचित कुल 324 सदस्यों में से 81 सदस्य एवं 1 मनोनीत सदस्य अर्थात कुल 82 सदस्य दिनांक 15 नवम्बर, 2000 के बाद झारखंड विधानसभा के सदस्य हो गए. बिहार विधानसभा में कुल 243 सदस्य ही शेष रहे.
18. 1937 में बिहार विधान परिषद में सदस्यों की संख्या 30 थी. संविधान लागू होने के बाद यह 72 कर दी गई थी. 1958 में यह संख्या बढ़कर 96 हो गई और वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद बिहार विधान परिषद की संख्या घटकर 75 हो गई.