‘मेरे ऊपर कर्ज रहेगा’ - बहुगुणा ने क्यों कही थी देवीलाल से पूर्व CM कर्पूरी के लिए ये बात?
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर भारतीय राजनीति के ऐसे नेता थे, जिन्हें जनता ने 'जननायक' की उपाधि दी थी. उनका जीवन संघर्ष, सादगी और समाजवादी सोच की मिसाल थी. उन्होंने कभी सत्ता को अपने लिए आगे बढ़ने या फिर पैसा कमाने का साधन नहीं बनाया, बल्कि उसे जनता की भलाई का जरिया माना. मंडल कमीशन लागू करने से लेकर शिक्षा, आरक्षण और श्रमिक वर्ग के हक की लड़ाई में उनका योगदान आज भी बिहार की राजनीति का अहम अध्याय है.

बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता है. वे केवल मुख्यमंत्री नहीं बल्कि गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए उम्मीद की किरण बने. उन्होंने राजनीति में ईमानदारी और पारदर्शिता की ऐसी मिसाल पेश की, जिसे आज के समय में ढूंढना मुश्किल है. उनका सफर साधारण परिवार से शुरू होकर ‘जननायक’ तक पहुंचने का रहा. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत नेता कर्पूरी ठाकुर से जुड़े तमाम किस्से भी हैं. लोगों को कभी उनके रिक्शे पर चलने वाली कहानी सुनाई जाती है तो कभी फटा कोट पहनकर ऑस्ट्रिया जाने वाला किस्सा. आइए, जानते हैं उनसे जुड़े तमाम किस्से.
गरीबों के मसीहा कर्पूरी ठाकुर के सियासी किस्से
1. सादगी की मिसाल
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कर्पूरी ठाकुर ने कभी आलीशान बंगले या ऐशो-आराम का जीवन नहीं अपनाया. सामान्य कपड़े, चप्पल और सादा भोजन उनकी पहचान थी. कहा जाता है कि वे अपने मुख्यमंत्री आवास में खुद हाथ से चाय बनाकर मेहमानों को पिलाते थे.
2. मंडल कमीशन और आरक्षण की नींव
कर्पूरी ठाकुर को ‘आरक्षण के जनक’ के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने 1978 में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का फैसला किया, जो बाद में मंडल कमीशन की सिफारिशों की आधारशिला बना.
3. जीवन भर रहा उनका जनता से लगाव
समाजसेवी कर्पूरी ठाकुर ने कभी भी कुर्सी को प्राथमिकता नहीं दी. जब-जब उन्हें लगा कि जनता के हितों से समझौता हो रहा है, उन्होंने सत्ता छोड़ने में एक पल की भी देर नहीं की.
4. गांधी, नेहरू और लोहिया के करीब
पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे. देश की आजादी की लड़ाई में शामिल होने की वजह से वह जेल भी गए. आजादी के बाद राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर समाजवादी सोच को प्रश्रय दिया. वह गांधी और नेहरू से भी प्रभावित थे.
5. मेरे ऊपर कर्ज रहेगा
एक बार हरियाणा के नेता देवीलाल ने उन्हें कहा था कि- “अगर कर्पूरी ठाकुर 5-10 हजार रुपये मांग लें, तो मैं दे दूं, क्योंकि वह मेरे ऊपर कर्ज रहेगा.” यह किस्सा उनकी ईमानदारी और लोगों के बीच विश्वास की गवाही देता है.
6. 'देवीलाल ने हरियाणवी मित्र से कहा था उधार दे देना'
यूपी के दिग्गज नेताओं में शामिल रहे हेमवती नंदन बहुगुणा ने कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी के मद्देनजर देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और हरियाणा के सीएम रहे देवीलाल से कहा था, "कर्पूरी कभी आपसे पांच-दस हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा. बाद में देवीलाल ने मित्र से कई बार पूछा- भाई कर्पूरी ने कुछ मांगा. हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं."
7. विदेश जाने के लिए उधार मांगने पड़े थे कपड़े
बीबीसी के मुताबिक कर्पूरी ठाकुर 1952 में विधायक बने थे. एक प्रतिनिधिमंडल ऑस्ट्रिया जा रहा था, जिसमें कर्पूरी ठाकुर भी थे. उनके पास कोट ही नहीं था. सारे लोग सूट-बूट में थे, इसलिए कर्पूरी ठाकुर को भी दोस्त से कोट उधार मांगना पड़ा. इतना ही नहीं, जब वह विदेश पहुंचे तब भी उनकी सादगी पर वहां के मार्शल टीटो फिदा हो गए. कर्पूरी ठाकुर ऑस्ट्रिया से यूगोस्लाविया भी गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा है और इसके बाद उन्हें एक कोट भेंट किया था."
8. पत्नी चराती थीं बकरी
बात तबकी है जब पहली बार कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. उस समय समस्तीपुर के उस अनुमंडल में जी कृष्णन एसडीओ हुआ करते थे. बाद में वह सहरसा के डीएम भी बने. एक बार वह फील्ड विजिट में अपनी जीप पर निकले हुए थे. स्थानीय अंचलाधिकारी भी जीप पर सवार थे. अचानक सीओ साहब ने एसडीओ साहब को कहा- "सर, खेत में वह महिला जो बकरी लिए जा रहीं हैं, वह सीएम कर्पूरी ठाकुर की पत्नी हैं. एसडीओ साहब को यकीन तो नहीं ही हुआ वह गुस्सा गए. सीओ को कहा कि अगर तुम्हारी बात गलत हुई तो खैर नहीं. सीओ साहब सहम गए. गाड़ी रोकी गई और एसडीओ साहब ने खुद उस महिला का परिचय पूछा. बात सही निकली."
9. पितौझिया नहीं, अब 'कर्पूरीग्राम
भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर का जन्म तत्कालीन दरभंगा जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. 1972 में समस्तीपुर को अलग जिला बना दिया गया. कालांतर में पितौझिया गांव का नाम भी बदल कर 'कर्पूरीग्राम' कर दिया गया.
10. 26 महीने तक जेल में रहे
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और 26 महीने तक जेल में रहे. स्वतंत्रता के बाद वह अपने गांव में मिडिल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत हुए और बाद में बिहार विधानसभा के सदस्य बने. कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया.
11. हाथों से पीसा जाता था गेहूं
कर्पूरी ठाकुर ने अपनी सुरक्षा को लेकर कभी कोई विशेष चिंता नहीं की और हमेशा आम लोगों के बीच रहने की कोशिश की. उनका मानना था कि एक नेता को जनता के बीच रहकर ही उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. यही कारण था कि जब वह मुख्यमंत्री थे, तो अपने सुरक्षा गार्ड को निर्देश देते थे कि वह आम लोगों से मिलने के दौरान उनके बीच न आएं.
12. स्कूल फी के लिए भरना पड़ा 27 बाल्टी पानी
जननायक कर्पूरी ठाकुर से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है. पढ़ाई के दौरान वह स्कूल की फीस जमा नहीं कर पा रहे थे. वह गांव के एक जमींदार के पास फीस के पैसे के लिए गए. जमींदार ने कहा कि पैसे चाहिए तो उसके लिए मेहनत करने होंगे. पैसे देने के बदले जमींदार ने उनसे 27 बाल्टी पानी से नहाने के बाद पैसे दिए.
13. पुआल में छुपकर पढ़ते थे ट्यूशन
कर्पूरी ठाकुर के गांव पितौझिया में एक शिक्षक थे जो सवर्ण जाति से आते थे. राजा गुरु जी सिर्फ सवर्ण जाति के लड़कों को पढ़ाते थे. कर्पूरी ठाकुर ने उनसे पढ़ने का अनुरोध किया. राजा गुरु जी सामाजिक दबाव के चलते पढ़ा नहीं सकते थे लेकिन उन्होंने बीच का रास्ता निकाला और उनसे जहां मैं पढ़ाता हूं वहां तुम खलिहान में आ जाना और पुआल में बैठकर चुपचाप सुनना. मैं जोर-जोर से बोलूंगा. इससे तुम्हारी पढ़ाई भी पूरे हो जाएगी. कर्पूरी ठाकुर ने इसी तरीके से बचपन में पढ़ाई पूरी की.
14. चंद्रशेखर ने दी थी जननायक की उपाधि
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर को जननायक की उपाधि दी थी. कर्पूरी ठाकुर ने अपने राजनीतिक जीवन में जनता के लिए ढेरों ऐसे काम किया जो आज माइलस्टोन की तरह है.
15. पांच कर्पूरी मिल जाए तो देश बदल देंगे
कर्पूरी ठाकुर के आदर्श थे डॉ. राम मनोहर लोहिया. जननायक कर्पूरी ठाकुर के लेखक संतोष सिंह कहते हैं कि 1952 तक डॉ. राम मनोहर लोहिया कुछ नहीं कर पा रहे थे. 1964 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया. कर्पूरी ठाकुर जब लोहिया के साथ जुड़े, तब डॉक्टर लोहिया की सियासत को धार मिला. डॉ. लोहिया के आदर्शों को जमीन पर लाने का काम कर्पूरी ठाकुर ने किया. डॉक्टर लोहिया कहते थे कि अगर मुझे पांच कर्पूरी ठाकुर मिल जाए तो हम देश बदल देंगे.
16. तुम्हारी खुशबू दूर-दूर तक फैलेगी
12वीं तक कर्पूरी ठाकुर का नाम कपूरी ठाकुर हुआ करता था. इससे जुड़ी हुई एक दिलचस्प कहानी है. कर्पूरी ठाकुर आठवीं में पढ़ते थे. समस्तीपुर के कृष्णा टॉकीज के पास स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान रामनंदन मिश्रा का भाषण चल रहा था. कर्पूरी ठाकुर ने भी वहां भाषण दिया. भाषण सुनकर रामनंदन मिश्र बहुत प्रभावित हुए और कर्पूरी ठाकुर से नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम कपूरी ठाकुर बताया. रामनंदन मिश्रा ने कहा कि तुम कर्पूरी हो तब से कपूरी ठाकुर कर्पूरी ठाकुर कहे जाने लगे.
17. सीएम के पिता को जमींदार ने लठैत से उठवाया
साल 1970 के दिसंबर में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने. उस समय समस्तीपुर दरभंगा का हिस्सा हुआ करता था. गांव के एक जमींदार ने कर्पूरी ठाकुर के पिता को बाल-दाढ़ी बनाने के लिए बुलावा भेजा, लेकिन वह तबीयत खराब होने के चलते नहीं गए. तब जमींदार ने अपने लठैत को यह कह कर भेजा कि गोकुल ठाकुर को पकड़ कर लाओ. लठैत जबरदस्ती उन्हें पकड़ कर जमींदार के पास ले गए. बात जब पुलिस प्रशासन तक पहुंची तो पुलिस ने जमींदार को गिरफ्तार करने पहुंची. यह बात जब कर्पूरी ठाकुर को पता चला तो उन्होंने पुलिस को फोन किया, उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाए, क्योंकि वह हमारे ग्रामीण हैं.
18. अब पता चला कि भ्रष्टाचार कहां है?
जब कर्पूरी ठाकुर अपने 600 रुपये के बिल के लिए विधानसभा में क्लर्क के पास गए. क्लार्क ने कहा कि 600 में क्या होगा, इसे 1300 कर दीजिए. कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अब मुझे पता चला कि भ्रष्टाचार कहां है. क्लार्क को कहा कि चुपचाप ₹600 का बिल दीजिए.
19. चंदा 50 हजार नहीं, सिर्फ 5000 लिए
चुनाव के समय एक बार कर्पूरी ठाकुर एक बड़े बिजनेसमैन के पास गए और उनसे चुनाव में चंदे के लिए कहा. सामने वाले ने पूछा कि कितना चंदा चाहिए? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि मुझे 5000 चंदा चाहिए. सामने वाले ने 50000 निकाल कर दिए. तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि 5000 चंदा है लेकिन 50000 घूस है और 5000 लेकर वहां से चल दिए. इसी तरह कर्पूरी ठाकुर ने दिल्ली में अपने मित्र प्रोफेसर से से 500 की मांग की. मित्र जबरदस्ती 1000 देने लगे, लेकिन बहुत जबरदस्ती के बाद कर्पूरी ठाकुर ने 750 रुपए लेना स्वीकार किया.
20. जननायक रिश्तेदारों को देते थे उस्तूरा
जननायक कर्पूरी ठाकुर के पास उनके कई रिश्तेदार नौकरी के लिए जाते थे. एक करीबी रिश्तेदार जब उनके पास गए और नौकरी दिलाने की बात कही तो उन्होंने उन्हें ₹50 निकाल कर दिए और कहा कि कैंची और उस्तूरा खरीद लीजिए और नाई का कम कीजिए.