CAA के बाद सबसे बड़ा आंदोलन बना Zubeen Garg की मौत, क्या ‘न्याय’ के नारे से हिल सकती है सीएम सरमा की सरकार?
गायक जुबिन गर्ग की सिंगापुर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद असम में भारी आक्रोश है. लोग सड़कों पर उतरकर न्याय की मांग कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि सिंगर की मौत सीएम सरमा की सरकार को हिला सकती है, क्योंकि अब लोग उनके वादों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं.;
असम एक बार फिर उबाल पर है, लकिन इस बार वजह कोई राजनीतिक कानून नहीं, बल्कि राज्य के सबसे फेमस कलाकार जुबिन गर्ग की रहस्यमयी मौत है. सिंगापुर में डूबने से हुई उनकी मृत्यु ने पूरे असम को शोक में डुबो दिया, लेकिन अब यह शोक धीरे-धीरे आक्रोश और आंदोलन में बदल रहा है.
कामरकुची, जहां जुबिन का अंतिम संस्कार हुआ था, आज एक ‘जनतीर्थ’ बन चुका है. जहां हर दिन सैकड़ों लोग न्याय की मांग लेकर पहुंच रहे हैं. 'जॉय जुबिन दा' और 'जस्टिस फॉर जुबिन दा' के नारे अब असम की गलियों से लेकर सोशल मीडिया तक गूंज रहे हैं. लोगों का आरोप है कि सरकार इस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है, जबकि मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की छवि पर भी सवाल उठ रहे हैं. स्थिति इतनी गंभीर है कि कई विश्लेषक इसे सीएए के बाद असम का सबसे बड़ा जनआंदोलन बता रहे हैं.
BJP सरकार पर जनता का गुस्सा
जुबिन गर्ग की मौत का मामला असम में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. सरमा ने हाल ही में फेसबुक लाइव में कहा था कि अगर बीजेपी सत्ता में लौटती है तो रसोई गैस, दाल, चीनी और सरसों के तेल पर सब्सिडी देंगे. लेकिन फैंस इसे न्याय की मांग से ध्यान हटाने की चाल मान रहे हैं. बिहारी और अन्य छोटे शहरों के नागरिकों में नाराज़गी बढ़ रही है. सोशल मीडिया पर भी लोग सरकार के प्रति प्रश्न उठा रहे हैं और नेपाल जैसी स्थिति की आशंका जता रहे हैं.
जातीय समुदायों और संगठन भी न्याय की मांग में शामिल
ताइ अहोम स्टूडेंट्स यूनियन ने 17 अक्टूबर को चाराईदेउ में प्रदर्शन किया. हजारों लोगों ने जुबिन गर्ग के गाने गाए और न्याय की मांग की. इस प्रदर्शन में न्याय की मांग और सामाजिक अधिकारों की मांग को जोड़कर राजनीतिक दबाव बनाया गया. विश्लेषकों के अनुसार, पिछले पांच सालों में बीजेपी को इस स्तर की जनता की नाराज़गी का सामना नहीं करना पड़ा. 2019 में CAA के विरोध प्रदर्शन के समय भी जुबिन गर्ग की मौत के मामले जैसी एकता और व्यापक गुस्सा नहीं दिखा.
राजनीतिक असर और चुनावी समीकरण
बीजेपी ने घोषणा की है कि 22 से 30 अक्टूबर के बीच प्रत्येक जिला कार्यालय में 'तत्काल जांच की मांग' के लिए रैली आयोजित की जाएगी. पार्टी के विधायक भी अपने क्षेत्रों में जुबिन गर्ग की मूर्तियां स्थापित करेंगे. बीजेपी प्रवक्ता ने कहा 'हमें जनता की भावनाओं के साथ रहना है. जुबिन की न्याय की मांग सीएए विरोध जैसी राजनीति नहीं है, यह सभी लोगों की मांग है.' लेकिन विपक्षी नेताओं ने सरकार पर आरोप लगाया कि श्यामकानु महंत और सरमा परिवार के बीच संबंध थे. बता दें कि श्यामकानु वह शख्स हैं, जिन्होंने नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल ऑर्गेनाइज किया था.
अर्थव्यवस्था और विकास पर असंतोष
विशेषज्ञों ने बताया कि जुबिन गर्ग के मामले ने अब तक अनकहे सामाजिक और आर्थिक असंतोष को भी सामने ला दिया है. कई लोग महसूस कर रहे हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं हुई, और सरकार की कल्याण योजनाएं केवल दिखावा हैं. इस पर तेजपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर चंदन कुमार शर्मा ने कहा कि 'यह चुनौती सीएए से भी बड़ी है क्योंकि यह पूरे समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित करती है.'
जुबिन गर्ग की मौत बनी परेशानी
जुबिन गर्ग की मौत ने न केवल फैंस को शोक में डुबो दिया है, बल्कि असम में सरकार के प्रति नाराज़गी और न्याय की मांग को भी बढ़ा दिया है. कामरकुची और अन्य स्थानों पर प्रदर्शन, सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं और जातीय समुदायों की भागीदारी ने यह साफ कर दिया है कि जनता का गुस्सा बीजेपी सरकार के लिए गंभीर चुनौती बन गया है. असमी समाज में जुबिन गर्ग की मौत के कारण पैदा हुई राजनीति, न्याय की मांग और सामाजिक असंतोष अब असामाजिक और आर्थिक मुद्दों से जुड़े व्यापक जन आंदोलन का रूप ले चुका है. आगामी विधानसभा चुनाव में इस गुस्से और नाराज़गी का असर राजनीतिक समीकरण बदल सकता है.