क्या प्रॉपर्टी हड़पने के लिए की गई जुबीन गर्ग की हत्या? असम पुलिस ने खोले शराब, उकसावे और साजिश के राज

सिंगापुर में गायक जुबीन गर्ग की मौत को लेकर असम पुलिस की चार्जशीट ने सनसनीखेज खुलासे किए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक जुबीन को नशे की हालत में समुद्र में उतरने के लिए उकसाया गया और समय पर बचाने के प्रयास नहीं किए गए. डॉक्टर की सलाह की अनदेखी, 75 मिनट की देरी और आर्थिक फायदे के शक ने इस केस को हत्या की दिशा में मोड़ दिया है. ट्रायल 22 दिसंबर से शुरू होगा.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  नवनीत कुमार
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असम की आवाज़ कहे जाने वाले जुबीन गर्ग की मौत ने न सिर्फ संगीत जगत को झकझोर दिया, बल्कि पूरे देश में यह सवाल छोड़ दिया कि क्या यह वाकई एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा था या किसी सुनियोजित साजिश का नतीजा. सिंगापुर में हुई इस मौत को लेकर शुरुआती रिपोर्ट्स ने भले ही इसे दुर्घटना बताया हो, लेकिन असम पुलिस की जांच ने इस कहानी की बुनियाद हिला दी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जुबिन गर्ग को पानी में उतरने के लिए उकसाया गया और उसे बचाने की कोशिश नहीं की गई.

अब दाखिल की गई चार्जशीट ने उस शक को और मजबूत कर दिया है, जिसे मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा पहले ही सार्वजनिक मंचों से दोहरा चुके थे. यह हत्या का मामला है. शराब, मेडिकल लापरवाही, उकसावे, जानबूझकर देरी और आर्थिक हित जैसे पहलुओं ने इस केस को एक साधारण मौत से कहीं आगे पहुंचा दिया है.

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सिंगापुर यात्रा: जहां से कहानी ने खतरनाक मोड़ लिया

19 सितंबर को जुबीन गर्ग नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल के सांस्कृतिक ब्रांड एंबेसडर के रूप में सिंगापुर पहुंचे थे. फेस्टिवल शुरू होने से पहले उन्हें असम एसोसिएशन सिंगापुर के कुछ सदस्यों द्वारा आयोजित एक यॉट पार्टी में ले जाया गया. यही वह जगह थी, जहां से हालात बिगड़ते चले गए और कुछ ही घंटों में एक सुपरस्टार की जान चली गई.

डूबना ही मौत की वजह या सिर्फ आधा सच?

सिंगापुर अधिकारियों द्वारा जारी मृत्यु प्रमाणपत्र में मौत का कारण डूबना बताया गया. लेकिन असम पुलिस की चार्जशीट में कहा गया है कि जुबीन उस समय नशे में थे और उनकी शारीरिक स्थिति पहले से ही कमजोर थी. जांच में यह भी सामने आया कि उन्हें तैराकी के लिए पूरी तरह सुरक्षित हालात में नहीं उतारा गया.

डॉक्टर की चेतावनी को क्यों किया गया नजरअंदाज?

चार्जशीट के अनुसार, जुबीन के निजी डॉक्टर ने उन्हें साफ तौर पर पानी और आग से दूर रहने की सलाह दी थी. इसकी वजह उनकी मेडिकल हिस्ट्री बताई गई, जिसमें मिर्गी (एपिलेप्सी) का जिक्र भी है. इसके बावजूद उन्हें शराब पिलाई गई और बिना लाइफ जैकेट समुद्र में उतरने दिया गया जो पुलिस के मुताबिक घोर लापरवाही ही नहीं, बल्कि जान को खतरे में डालने जैसा कदम था.

मैनेजर पर सबसे गंभीर आरोप क्यों?

जुबीन के मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा पर चार्जशीट में बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं. पुलिस का कहना है कि उन्होंने जानबूझकर जुबीन की नशे की हालत को बढ़ाया, जिससे उनके रिफ्लेक्स और संतुलन पर असर पड़ा. आरोप है कि उन्होंने डॉक्टर की सलाह को नजरअंदाज किया और जुबीन को ऐसे हालात में तैरने दिया, जहां हादसे की आशंका साफ थी.

किसने समुद्र में उतरने को कहा?

ड्रमर शेखर ज्योति गोस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने जुबीन को समुद्र में जाने के लिए उकसाया. चार्जशीट के मुताबिक, वह मौके पर मौजूद थे और जुबीन को बचाने की सबसे बेहतर स्थिति में भी थे, लेकिन उन्होंने समय रहते प्रभावी कोशिश नहीं की. इसी तरह अमृतप्रभा महंता पर भी अत्यधिक शराब सेवन को बढ़ावा देने और हालात की गंभीरता को नजरअंदाज करने का आरोप है.

ऑर्गनाइज़र की भूमिका: लापरवाही या साजिश?

फेस्टिवल आयोजक श्यामकानु महंता पर आरोप है कि उन्होंने डॉक्टर की मनाही के बावजूद जुबीन को व्हिस्की की बोतल दी. इसके अलावा उन्होंने यॉट पार्टी के आयोजकों को जुबीन की मेडिकल स्थिति की जानकारी नहीं दी और न ही किसी तरह की मेडिकल इमरजेंसी की तैयारी की. पुलिस का दावा है कि इसी वजह से जुबीन ‘गोल्डन ऑवर’ खो बैठे.

75 मिनट की देरी और ‘गोल्डन ऑवर’ का नुकसान

चार्जशीट के सबसे चौंकाने वाले बिंदुओं में से एक यह है कि घटना के बाद जुबीन को करीब 75 मिनट बाद एंबुलेंस में अस्पताल ले जाया गया. पुलिस का कहना है कि अगर समय रहते मेडिकल मदद मिल जाती, तो उनकी जान बचाई जा सकती थी. इस देरी को जांच एजेंसी ने जानबूझकर की गई घातक लापरवाही करार दिया है.

क्या इसके पीछे आर्थिक वजह थी?

जांच में यह भी सामने आया है कि मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा हाल के समय में होटल, ट्रांसपोर्ट और एक्वा बिजनेस में निवेश कर चुके थे. चार्जशीट में आरोप है कि वह जुबीन को ‘रिटायर’ करने की योजना बना रहे थे और आर्थिक लाभ की दिशा में अपने हित सुरक्षित कर रहे थे. पुलिस इस पहलू को संभावित मकसद के तौर पर देख रही है.

विश्वासघात का आरोप

जुबीन के चचेरे भाई और असम पुलिस सेवा के अधिकारी संदीपन गर्ग पर आरोप है कि उन्होंने भी तैरने के लिए उकसाया और बचाव में देर की. वहीं जुबीन के दो PSO नंदेश्वर बोरा और परेश बैश्य पर आपराधिक साजिश और विश्वासघात का मामला दर्ज किया गया है. आरोप है कि उन्हें सौंपी गई जुबीन की चल संपत्ति को उन्होंने अपने उपयोग में ले लिया.

394 गवाह और लंबी कानूनी लड़ाई की शुरुआत

चार्जशीट में कुल 394 गवाहों का हवाला दिया गया है. इनमें सिंगापुर में मौजूद असमिया नागरिक, भारतीय उच्चायोग के अधिकारी, डॉक्टर, पुलिस अधिकारी, परिवार के सदस्य और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं. यह मामला अब सेशंस कोर्ट में ट्रांसफर हो चुका है और 22 दिसंबर से ट्रायल शुरू होगा. जुबीन गर्ग की मौत अब सिर्फ एक दुखद घटना नहीं, बल्कि न्याय, जवाबदेही और सच्चाई की लंबी लड़ाई बन चुकी है. अदालत में यह तय होगा कि यह लापरवाही का चरम था या एक सोची-समझी साजिश लेकिन इतना तय है कि इस केस ने सिस्टम और रिश्तों, दोनों की कठोर परीक्षा लेनी शुरू कर दी है.

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