सचिन की हुई शानदार विदाई; पर गावस्कर, सौरव, कुंबले, द्रविड़, पुजारा जैसे कई क्रिकेटरों की रिटायरमेंट सम्मानपूर्वक क्यों नहीं हुई?

सचिन तेंदुलकर को मिली भव्य विदाई के बाद सवाल उठे कि क्यों गावस्कर, सौरव गांगुली, कुंबले, द्रविड़, पुजारा और अन्य दिग्गज खिलाड़ियों को सम्मानपूर्वक विदाई नहीं मिली. बीसीसीआई का यह रवैया आलोचना का विषय रहा है, क्योंकि कई खिलाड़ियों ने टीम के लिए वर्षों तक योगदान दिया. सोशल मीडिया पर प्रशंसकों ने पुजारा और अन्य खिलाड़ियों के लिए उचित विदाई की मांग की.;

भारत में क्रिकेट एक खेल नहीं इसके करोड़ों चाहने वाले लोगों की रगों में बहने वाला ख़ून है और यही कारण है कि इससे जुड़ी कोई भी ख़बर तेज़ी से लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाती है. ख़ासकर, जब वो ख़बर इस महान खेल से जुड़े खिलाड़ियों की हो और वो भी वैसे खिलाड़ी की जिन्होंने अपने लंबे करियर में देश के लिए बहुत पसीना बहाया हो, विषम परिस्थितियों में संकटमोचक बन कर उभरते हुए टीम को उबारने का काम किया हो.

ठीक ऐसा ही अभी हाल में एक बार फ़िर देखने को मिला जब चेतेश्वर पुजारा ने क्रिकेट के सभी फ़ॉर्मेट से संन्यास की घोषणा की. पुजारा के संन्यास के घोषणा से लोगों का एक पुराना गुस्सा क्रिकेट की नियामक संस्था बीसीसीआई पर भड़का और सवाल उठा कि आख़िर बीसीसीआई अपने क्रिकेटरों को सम्मानपूर्वक रिटायर होने का मौक़ा क्यों नहीं देती?

पुजारा के अचानक संन्यास लेने के बाद सोशल मीडिया पर बीसीसीआई के ख़िलाफ़ कई प्रतिक्रियाएं आईं और कहा गया कि क्रिकेट से जैसी विदाई उनकी हुई है वैसी किसी और की न हो.

सोशल मीडिया पर अपनी तीखी प्रतिक्रियाओं में लोगों ने क्या लिखा?

अवनीश मिश्रा नाम के एक यूज़र ने लिखा, "पुजारा को उस तरह से सम्मान नहीं मिला जिसके वह हक़दार थे." वहीं जावेद अली ने लिखा, "पुजारा अभी 2 साल टेस्ट खेल सकते थे. उनको पूरा सम्मान नहीं मिला." तो विजय द्विदी लिखते हैं, "ये ग़लत है, सम्मान मिलना चाहिए था. ऐसी विदाई न हो किसी की." एक यूज़र ने लिखा, "पुजारा के साथ बीसीसीआई मैं बहुत बुरा व्यवहार किया इस महान खिलाड़ी को एक टेस्ट मैच खिलाकर अलविदा कहना था. एक बहुत ही नम्र और लो प्रोफ़ाइल वाला क्रिकेटर जिसने भारत की बहुत सेवा की उससे बीसीसीआई ने अच्छा व्यवहार नहीं किया."

क्रिकेटरों की विदाई सम्मानपूर्वक क्यों नहीं?

दरअसल, इस साल अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके छह भारतीय क्रिकेटरों ने संन्यास लेने की घोषणा कर दी है. इनमें विराट कोहली, रोहित शर्मा, रविचंद्रन अश्विन जैसे क्रिकेटरों के साथ-साथ सबसे ताज़ा नाम चेतेश्वर पुजारा का जुड़ा है. इन सभी क्रिकेटर्स की एक लंबी फ़ैन फ़ॉलोइंग है, यानी इनके प्रशंसकों की संख्या लाखों में है. और न केवल फ़ैन्स बल्कि इन खिलाड़ियों के मन भी कहीं न कहीं ये टीस है कि काश उन्हें अपना आख़िरी टेस्ट मैच ठीक उसी तरह खेलने को मिलता जैसा कभी सचिन तेंदुलकर को मौक़ा दिया गया था. चलिए सबसे पहले बात करते हैं उन परिस्थितियों की जब इन खिलाड़ियों को टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के लिए मजबूर होना पड़ा और क्या इतने लंबे समय तक टीम इंडिया के लिए योगदान दे चुके इन दिग्गजों को सम्मानपूर्वक विदाई नहीं दी जानी चाहिए थी?

कैसे हुई थी दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की विदाई?

पुजारा हों या विराट दोनों ही कुछ और खेलते, ऐसा तो सभी प्रशंसकों का मानना ही है पर आश्चर्य ये है कि किसी भी पूर्व क्रिकेटर ने ये आवाज़ नहीं उठाई कि भारत को इतनी कामयाबी दिलाने वाले इन दिग्गजों को विदाई मैच का सम्मान दिया जाना चाहिए था. बीसीसीआई को इन्हें सम्मानपूर्वक संन्यास लेने का ठीक उसी तरह मौक़ा देना चाहिए था जैसे सचिन तेंदुलकर को दिया गया था. वह एकमात्र ऐसा आयोजन था जिसे बीसीसीआई ने किसी क्रिकेटर की विदाई के सम्मान में आयोजित किया था. बीसीसीआई ने तब नवंबर 2013 में वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ सचिन के होमग्राउंड वानखेड़े स्टेडियम में उनकी विदाई टेस्ट मैच का आयोजन किया था. यह सचिन का 200वां टेस्ट मैच भी था. बीसीसीआई ने उसे ख़ास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मैच के अंत में सचिन ने एक भावुक भाषण दिया था, जिसमें उनकी ओर से कोच रमाकांत आचरेकर, परिवार, टीम और देश को उन्होंने धन्यवाद दिया था. यह भारतीय क्रिकेट इतिहास में किसी खिलाड़ी को सम्मानपूर्वक विदा करने का अनूठा उदाहरण बना.

टेस्ट में रिकॉर्ड 10 हज़ार रन बनाने वाले पहले क्रिकेटर गावस्कर की विदाई कैसे हुई?

दिग्गज क्रिकेटर सुनील गावस्कर जब मार्च 1987 में टेस्ट और नवंबर 1987 में वनडे से रिटायर हुए थे तब बीसीसीआई ने उन्हें भी उचित विदाई नहीं दी थी. टेस्ट क्रिकेट में 10 हज़ार रन बनाने वाले गावस्कर ने टेस्ट मैच से संन्यास का एलान अंतिम टेस्ट मैच के दौरान रेस्ट वाले दिन टीम के अपने साथियों को बता कर किया था. उनके टेस्ट और वनडे से विदाई के बीच आठ महीनों का फ़ासला था और जब रिलायंस वर्ल्ड कप के दौरान वो अपना आख़िरी वनडे मैच खेल रहे थे तो यह पूरी दुनिया को ख़बर थी कि वो संन्यास ले रहे हैं. फ़िर भी बीसीसीआई गावस्कर को उचित विदाई देने में नाकाम रहा.

सौरव गांगुली को धोनी ने दिया उचित सम्मान, पर बीसीसीआई...

2008 में जब पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने क्रिकेट से संन्यास लिया तो बीसीसीआई उन्हें भी सम्मानपूर्वक विदा नहीं कर सका. कोई आधिकारिक समारोह नहीं मनाया गया बल्कि तब बोर्ड के साथ उनके रिश्ते भी ठीक नहीं चल रहे थे. उनके अंतिम मैच में कप्तानी महेंद्र सिंह धोनी कर रहे थे और उन्होंने अपने पूर्व कप्तान को मैदान पर भरपूर उचित सम्मान देने की कोशिश की. उस टेस्ट के दौरान धोनी ने गांगुली को फ़िर से कप्तान बनने और टीम को कुछ देर लीड करने के लिए कहते हुए उन्हें उचित सम्मान दिया. पर बीसीसीआई ने आधिकारिक तौर पर कोई समारोह आयोजित नहीं किया.

कुंबले को साथी खिलाड़ियों ने कंधे पर उठा लिया, लेकिन बीसीसीआई ने...

उसी तरह जब अनिल कुंबले ने नवंबर 2008 में क्रिकेट से संन्यास लिया तो वो ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ घरेलू सिरीज़ के बीच में ही लिया गया फ़ैसला था और वो नागपुर में अंतिम टेस्ट नहीं खेले. उनके अंतिम मैच में जब वो आख़िरी बार गेंदबाज़ी के लिए उतरे तब टीम के साथियों ने गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया और जब मैच ख़त्म हो गया तो उन्हें कंधे पर उठा कर विदा किया गया लेकिन बीसीसीआई की ओर से कुंबले को भी विदाई मैच का सम्मान नहीं हासिल हो सका.

द्रविड़, सहवाग के साथ बीसीसीआई ने क्या किया?

ठीक इसी तरह द्रविड़ और सहवाग के साथ भी हुआ. 2012 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर द्रविड़ का प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा तो उन्होंने ने भी अपने संन्यास की घोषणा कर दी पर बीसीसीआई की ओर से उनके लिए एक विदाई मैच आयोजित नहीं किया जा सका. जब 2013 में वीरेंद्र सहवाग को भारतीय टीम से ड्रॉप किया गया तो उन्होंने दो साल के इंतज़ार के बाद अक्टूबर 2015 में अपने 37वें जन्मदिन पर संन्यास की घोषणा की. बताया जाता है कि सहवाग बीसीसीआई से एक फ़ेयरवेल मैच की मांग करते रहे पर टेस्ट क्रिकेट में दो तिहरा शतक जमाने वाले एक मात्र क्रिकेटर वीरु की एक नहीं सुनी गई. सहवाग ये कहते भी रहे हैं कि उन्हें इस बात का मलाल है कि उन्हें मैदान पर खेलते हुए रिटायर होने की अनुमति नहीं दी गई.

धोनी समेत इन्हें भी नहीं मिली सम्मानजनक विदाई

बताया जाता है कि महेंद्र सिंह धोनी के लिए बीसीसीआई एक फ़ेयरवेल मैच आयोजित करना चाहता था जिसे आईपीएल से उनके रिटायरमेंट के बाद किया जाना था. हालांकि यह बहुत हद तक धोनी के उसमें शामिल होने पर भी निर्भर करता है. क्योंकि धोनी को एक अलग तरह की शख़्सियत माना जाता है जो तड़क-भड़क से दूर शांति से बाहर निकलने वाले खिलाड़ी के तौर पर सम्मानित किए जाते हैं. ठीक ऐसा ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास के दौरान भी किया. भले ही फ़ेयरवेल जैसी बातें सुनने को मिलीं पर बीसीसीआई की ओर से ऐसा कोई आयोजन नहीं किया गया. टीम इंडिया के अन्य दिग्गजों के साथ भी ऐसा ही दोहराया जाता रहा है. इस फ़ेहरिस्त में वीवीएस लक्ष्मण, ज़हीर ख़ान, हरभजन सिंह, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, सुरेश रैना, इरफ़ान पठान सरीखे कई नाम मौजूद हैं.

बीसीसीआई अपने इस चलन को बदले

तो क्रिकेटरों के योगदान को नज़रअंदाज करते हुए उन्हें उचित विदाई मैच नहीं दिया जाना महज एक संयोग नहीं, बीसीसीआई का चलन है. उचित सम्मान नहीं दिए जाने वाले खिलाड़ियों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है लेकिन हम इस गिनती पर यहीं विराम लगाते हुए बीसीसीआई से यह आग्रह करना चाहते हैं कि भले ही यह आपका नियम है कि आप किसी भी क्रिकेटर को संन्यास कब लेना है यह नहीं कहते, जैसा कि बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने हाल ही में कहा भी है. लेकिन अच्छा होगा कि एक क्रिकेटर जिसने देश के लिए खेल के मैदान में इतना योगदान दिया है, जिसके प्रदर्शन से देश का मान बढ़ा है वो जब संन्यास ले रहा हो तो उससे बात करें और उसकी विदाई को यादगार बनाएं. उम्मीद है कि बीसीसीआई सोशल मीडिया के जमाने में उठ रही इन आवाज़ों को सुने और एक व्यवस्था बनाए ताकि आने वाले वक़्त में जो क्रिकेटर संन्यास लेना चाहते हैं उन्हें मैदान पर आख़िरी बार उतरने का मौक़ा देते हुए विदाई दी जा सके जो उनके योगदान का उचित सम्मान भी है और बेशक इसके वो हक़दार भी हैं.

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