Bronco Test क्या होता है, यो-यो टेस्ट से कैसे है अलग और टीम इंडिया को क्यों पड़ी इसकी ज़रूरत?
टीम इंडिया में खिलाड़ियों की फिटनेस जांचने के लिए अब ब्रोंको टेस्ट लागू किया गया है. यह टेस्ट पहले से ही रग्बी और फुटबॉल जैसे खेलों में उपयोग किया जाता है. इसमें खिलाड़ियों को 20, 40 और 60 मीटर की शटल रेस को लगातार पांच सेट तक पूरा करना होता है, कुल 1200 मीटर की दूरी को छह मिनट में खत्म करना अनिवार्य है. यह यो-यो टेस्ट से अलग है, जिसमें खिलाड़ी 20-20 मीटर की दूरी तय कर लेवल बढ़ाते हैं. नया टेस्ट गेंदबाजों की फिटनेस को परखने में अहम माना जा रहा है.
2019 के वर्ल्ड कप से पहले टीम इंडिया की फिटनेस को लेकर यो-यो टेस्ट बहुत चर्चा में था. तब सुरेश रैना और युवराज सिंह सरीखे खिलाड़ी इस टेस्ट में पास नहीं हुए थे और 2019 के वर्ल्ड कप के लिए उन्हें टीम में नहीं रखा गया था. तब वर्ल्ड कप के दौरान ही युवराज सिंह ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया था. तो सुरेश रैना ने उसके अगले साल यानी 2020 में 15 अगस्त को अपने संन्यास की घोषणा की थी.
हालांकि यो-यो टेस्ट तब नया नहीं था और उसका राष्ट्रीय खेल अकादमी में बहुत पहले से इस्तेमाल किया जा रहा था. रणजी ट्रॉफ़ी, अंडर-19 और यहां तक कि अंडर-17 के सभी खिलाड़ी भी तब इस टेस्ट से भली भांति परिचित थे. इस टेस्ट को टीम इंडिया में 2017 के श्रीलंका दौरे से पहले जोड़ा गया था. तब इसे भारत के श्रीलंका दौरे से पहले टीम इंडिया के तत्कालीन स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग कोच शंकर बाबू ने अनिवार्य फिटनेस टेस्ट के रूप में लागू किया था.
आठ साल बाद अब क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए ब्रोंको टेस्ट की शुरुआत की गई है. जून में टीम इंडिया के साथ जुड़ने के बाद स्ट्रेंथ ऐंड कंडीशनिंग कोच एड्रियन ली रॉक्स ने खिलाड़ियों की फ़िटनेस को लेकर टीम इंडिया में ब्रॉन्को टेस्ट कराने का सुझाव दिया था. ब्रोंको टेस्ट पहले से ही रग्बी और फ़ुटबॉल जैसे खेलों में खिलाड़ियों का फ़िटनेस लेवल टेस्ट करने के लिए इस्तेमाल में है. अब इसे क्रिकेट में भी पूरी तरह लागू करने की योजना है.
फ़िटनेस को लेकर चिंता के बीच उठाया गया बड़ा क़दम
मीडिया सूत्रों की मानें तो ब्रोंको टेस्ट को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट सिरीज़ के ख़त्म होने के बाद शुरू करने फ़ैसला लिया गया, उस सिरीज़ में कुछ तेज़ गेंदबाज़ों का फ़िटनेस स्तर माकूल नहीं पाया गया था. टीम इंडिया के खिलाड़ी, ख़ास कर तेज़ गेंदबाज़ पर्याप्त नहीं दौड़ रहे थे. वो मैदान में ट्रैक की जगह अपनी फ़िटनेस पर जिम में अधिक समय दे रहे थे. उस दौरान पांच टेस्ट मैचों की सिरीज़ में केवल मोहम्मद सिराज ही सभी मैच खेल पाए थे. इसके बाद ही टीम इंडिया के वापस लौटते ही इसे लागू करने का फ़ैसला किया गया जिसमें कोच गौतम गंभीर की पूरी सहमति भी बताई जा रही है. बताया जा रहा है कि यह टेस्ट शुरू भी किया जा चुका है. यह टेस्ट बेंगलुरु स्थित सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में लिया जाता है और बीसीसीआई के सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट में शामिल कुछ क्रिकेटर इस सेंटर पर जाकर यह टेस्ट दे भी चुके हैं. चलिए सबसे पहले जानते हैं कि ये ब्रोंको टेस्ट क्या है और यह यो-यो टेस्ट से कैसे अलग है कि इसे आज की तारीख़ में खिलाड़ियों के फ़िटनेस को मापने के सबसे बड़े पैमाने के रूप में देखा जा रहा है.
ब्रोंको टेस्ट क्या होता है?
ब्रोंको टेस्ट में खिलाड़ी 20 मीटर की शटल दौड़ से शुरुआत करते हैं. इसके बाद 40 मीटर और 60 मीटर की शटल रेस होती है. इन तीनों तरह की रेस जब पूरी हो जाती है तो इसे एक सेट माना जाता है. खिलाड़ियों को ये तीनों रेस एक बार में पूरी करनी होती है. और फिर बिना कोई ब्रेक लिए सभी खिलाड़ियों को ऐसे पांच सेट पूरे करने होते हैं. जब एक सेट पूरा होता है तो 240 मीटर और जब पांच सेट पूरे करने पर यह रेस ख़त्म होती है तब 1200 मीटर की यह दौड़ पूरी हो जाती है. इस रेस को सफलतापूर्वक वही पूरा करता है जो इसे केवल छह मिनट में पूरा कर पाता है.
फ़िटनेस का 2 किलोमीटर ट्रायल
टीम इंडिया के खिलाड़ियों का 2 किलोमीटर का एक ट्रायल टेस्ट भी होता है, जिसे गेंदबाज़ों को 8 मिनट 15 सेकेंड में पूरा करना होता है. हालांकि विकेटकीपर और बल्लेबाज़ों को 15 सेकेंड अतिरिक्त का समय दिया जाता है, यानी उन्हें यह रेस 8 मिनट 30 सेकेंड में पूरा करना अनिवार्य है. इसके अलावा यो-यो टेस्ट तो पिछले आठ सालों से हो ही रहा है.
यो-यो टेस्ट में क्या होता है?
यो-यो टेस्ट में खिलाड़ियों की 20 मीटर की दूरी पर दो पंक्तियां बनाई जाती हैं. सामने एक ख़ास ट्रैक होती है. जिसमें एक मुख्य लाइन और दो साइडलाइन होती है. खिलाड़ियों को टेस्ट शुरू करते हुए एक छोर से दूसरे छोर यानी 20 मीटर की साइडलाइन से वापस मुड़ कर अपनी सीमा रेखा में आना होता है. इस दौरान म्यूज़िक बजता है. जैसे ही निर्देश मिलते हैं खिलाड़ियों की दोनों पंक्तियों को दौड़ शुरू करनी होती है. म्यूज़िक की आवाज़ पर खिलाड़ियों को मुड़ना होता है. इसमें अलग-अलग लेवल होते हैं. इसमें खिलाड़ियों को हर 40 मीटर की दौड़ के बाद 10 सेकेंड का ब्रेक दिया जाता है. ब्रेक के बाद हर लेवल पर म्यूज़िक तेज़ होता जाता है और साथ ही खिलाड़ियों की तेज़ी भी बढ़ती है. खिलाड़ियों के लिए इसे पूरा करने का समय निर्धारित होता है और उनकी तेज़ी के आधार पर अंक दिए जाते हैं. यो-यो टेस्ट पास करने के लिए न्यूनतम स्कोर 17.1 है. बताया जाता है कि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी 21 का स्कोर बनाते हैं. वहीं जब विराट कोहली टीम में थे तब वो भी इतना ही स्कोर बनाते थे तो रविंद्र जडेजा और मनीष पांडेय भी 21 का स्कोर बनाने में कामयाब रहते थे. इसी यो-यो टेस्ट में सुरेश रैना और युवराज सिंह 16-16 का स्कोर कर पाए थे. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यही उनके टीम इंडिया से बाहर होने की मुख्य वजह भी थी.
कौन हैं ली रॉक्स?
एड्रियन ली रॉक्स को इसी साल जून में टीम इंडिया का स्ट्रेंथ ऐंड कंडीशनिंग कोच बनाया गया है. ली रॉक्स को खिलाड़ियों के व्यक्तिगत प्रदर्शन में सुधार और उनको उनकी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन करने में सहायता पहुंचाने के लिए फ़िट रखने के उद्देश्य से टीम इंडिया के साथ जोड़ा गया है. जनवरी 2002 से मई 2002 तक टीम इंडिया के अपने पहले कार्यकाल के दौरान रॉक्स ने एक ऐसा ट्रेनिंग कार्यक्रम बनाया था जिसका लक्ष्य खिलाड़ियों के प्रदर्शन को सुधारना था. तब जॉन राइट टीम इंडिया के कोच थे. उसी दौरान 2002 में भारतीय टीम ने इंग्लैंड में नट वेस्ट ट्रॉफ़ी जीती थी. भारतीय टीम के साथ पहले कार्यकाल के बाद ली रॉक्स जून 2003 से अगस्त 2007 तक दक्षिण अफ़्रीकी टीम के साथ इसी क्षमता में जुड़े. वहां उन्होंने क्रिकेट की बदलती मांगों के अनुसार खिलाड़ियों की शारीरिक क्षमताओं को अधिक मजबूत बनाने, शरीर की ताक़त और फूर्ती को और बढ़ाने पर फ़ोकस किया.





