कौन है उल्फा चीफ परेशा बरुआ, चीन से निकालकर ढाका में बसाने का प्लान बना रहा पाकिस्तान?

भारत की NIA की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल ULFA-I के कमांडर-इन-चीफ परेश बरुआ को लेकर गंभीर इनपुट सामने आए हैं. खुफिया एजेंसियों के अनुसार, पाकिस्तान उसे चीन से निकालकर ढाका में बसाने की कोशिश कर रहा है. माना जा रहा है कि इसका मकसद पूर्वोत्तर भारत में एक बार फिर अस्थिरता पैदा करना है.;

( Image Source:  AI: Sora )
Edited By :  विशाल पुंडीर
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पिछले एक साल में बांग्लादेश की राजनीति में ऐसा उलटफेर देखने को मिला है, जिसने पूरे दक्षिण एशिया की रणनीतिक स्थिति को प्रभावित कर दिया है. लंबे समय तक सत्ता में रहीं शेख हसीना की सरकार का पतन हुआ और जन आंदोलन के बाद उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा. इसके बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ.

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शेख हसीना के शासनकाल में भारत-बांग्लादेश संबंध मजबूत माने जाते थे और उनकी सरकार उग्रवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती थी, लेकिन नई सत्ता व्यवस्था के बाद हालात बदलते नजर आ रहे हैं. भारत-विरोधी तत्वों की सक्रियता और पाकिस्तान-चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भारत में चिंता गहराने लगी है.

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन

राजनीतिक बदलाव के बाद बांग्लादेश में उग्रवाद और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे फिर से चर्चा में आ गए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यूनुस शासन के दौरान भारत-विरोधी ताकतों को खुलकर काम करने का मौका मिल सकता है. इसका सीधा असर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा पर पड़ सकता है.

परेश बरुआ को लेकर बढ़ती चिंता

इसी बीच भारत की NIA की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल ULFA-I के कमांडर-इन-चीफ परेश बरुआ को लेकर गंभीर इनपुट सामने आए हैं. खुफिया एजेंसियों के अनुसार, पाकिस्तान उसे चीन से निकालकर ढाका में बसाने की कोशिश कर रहा है. माना जा रहा है कि इसका मकसद पूर्वोत्तर भारत में एक बार फिर अस्थिरता पैदा करना है.

चटगांव हथियार मामला और सजा में राहत

भारत के लिए चिंता की एक और वजह बांग्लादेश की अदालत का हालिया फैसला है. चटगांव हथियार तस्करी मामले में परेश बरुआ को दी गई मौत की सजा को घटाकर 14 साल की कैद में बदल दिया गया है. सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से उग्रवादी नेटवर्क को नया मनोबल मिल सकता है.

कौन है उल्फा चीफ परेश बरुआ?

पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद के इतिहास में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) और उसके नेता परेश बरुआ का नाम दशकों से सुर्खियों में रहा है. असम की राजनीति और सुरक्षा हालात को प्रभावित करने वाले इस संगठन ने लंबे समय तक केंद्र और राज्य सरकारों के लिए गंभीर चुनौती खड़ी की. परेश बरुआ का जन्म 1956 में असम में हुआ था. युवावस्था में ही वह असम की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित हुआ और धीरे-धीरे उग्रवादी विचारधारा की ओर आकर्षित होता चला गया.

साल 1979 में उल्फा की स्थापना

साल 1979 में परेश बरुआ ने असम के शिवसागर में अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर ULFA की नींव रखी. संगठन का घोषित उद्देश्य असम को भारत से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाना था. इसी मकसद को हासिल करने के लिए संगठन ने हथियारबंद संघर्ष का रास्ता अपनाया.

परेश बरुआ के नेतृत्व वाले उल्फा गुट पर असम में बड़े पैमाने पर हिंसक गतिविधियों और उग्रवाद फैलाने के आरोप लगते रहे हैं. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, संगठन ने कई सालों तक ऐसी कार्रवाइयों को अंजाम दिया, जिससे राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित हुई. उग्रवादी गतिविधियों को देखते हुए केंद्र सरकार ने साल 1990 में ULFA पर प्रतिबंध लगा दिया था.

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