Begin typing your search...

ढाका-8 सीट से निर्दलीय उम्मीदवार, शेख हसीना के खिलाफ किया प्रोटेस्ट; जानें कौन था उस्मान हादी

बांग्लादेश की राजनीति में ढाका-8 सीट उस वक्त चर्चा में आ गई, जब एक निर्दलीय उम्मीदवार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ खुलकर विरोध दर्ज कराया. इस विरोध ने न सिर्फ चुनावी माहौल को गर्माया, बल्कि आम लोगों के बीच भी जिज्ञासा बढ़ा दी कि आखिर यह शख्स कौन है, जो सत्ता के सबसे ताकतवर चेहरे के सामने खड़ा हो गया. ढाका-8 से निर्दलीय प्रत्याशी रहे उस्मान हादी का नाम अचानक सुर्खियों में आ गया, जिसकी अब मौत हो चुकी है.

ढाका-8 सीट से निर्दलीय उम्मीदवार, शेख हसीना के खिलाफ किया प्रोटेस्ट; जानें कौन था उस्मान हादी
X
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 19 Dec 2025 9:50 AM IST

गुरुवार दोपहर ढाका की व्यस्त सड़क पर जब गोलियां चलीं, तो यह महज एक वारदात नहीं थी. इस हमले में 34 साल के शरीफ उस्मान हादी को दिनदहाड़े गोली मारे जाने की खबर कुछ ही घंटों में पूरे बांग्लादेश में फैल गई. गुरुवार देर रात से लेकर शुक्रवार सुबह तक ढाका सहित देश के कई बड़े शहरों में हालात तनावपूर्ण हो गए.

स्‍टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्‍सक्राइब करने के लिए क्लिक करें

हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए, जगह-जगह प्रदर्शन हुए और कई इलाकों में हिंसा भी देखने को मिली. प्रदर्शनकारी हादी की मौत को एक साजिश बता रहे हैं और लगातार न्याय की मांग कर रहे हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं कौन था शरीफ उस्मान हादी?

कौन था शरीफ उस्मान हादी?

शरीफ उस्मान हादी कोई पारंपरिक राजनेता नहीं था. ढाका यूनिवर्सिटी से पढ़े-लिखे, छात्र राजनीति से निकले हादी उन युवाओं की आवाज बने, जो सालों से सत्ता और सिस्टम से खुद को बाहर महसूस कर रहे थे. जुलाई 2024 के जनउभार के दौरान उनकी पहचान एक ऐसे नेता के रूप में बनी, जो सड़कों पर उतरे गुस्से, दर्द और उम्मीदों को साफ शब्दों में सामने रख सकता था.

शेख हसीना के खिलाफ प्रदर्शन से मिली पहचान

बांग्लादेश में जुलाई 2024 का आंदोलन सिर्फ सत्ता विरोधी प्रदर्शन नहीं था. यह 16 साल के शेख हसीना शासन के खिलाफ युवाओं और आम नागरिकों का साझा विद्रोह था. भ्रष्टाचार, दमन और राजनीतिक बंदिशों से तंग आई एक पूरी पीढ़ी सड़कों पर उतर आई. यह आंदोलन खास इसलिए भी था, क्योंकि इसमें पारंपरिक दलों से जुड़े लोग कम और नए, गैर-दलीय चेहरे ज्यादा थे. इसी आंदोलन में एक नाम उस्मान हादी का भी था, जिसके भाषण सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए थे.

इंक़िलाब मंच की शुरुआत

जुलाई आंदोलन के बाद जब पुरानी सत्ता तो गिरी, लेकिन नई व्यवस्था साफ नजर नहीं आई, तब हादी और उनके साथियों ने ‘इंक़िलाब मंच’ की शुरुआत की. यह मंच राजनीति और सांस्कृतिक प्रतीकों का मेल था, जहां आंदोलन में मारे गए लोगों की याद को जिंदा रखा जाता और यह कहा जाता कि उनकी कुर्बानी एक जिम्मेदारी है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता.

ढाका-8 सीट से निर्दलीय चुनौती

हादी ने जब ढाका-8 सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया, तो यह एक बड़ा राजनीतिक संकेत था. बांग्लादेश की राजनीति में जहां ताकतवर दल और मजबूत नेटवर्क हावी रहते हैं, वहां सड़क से निकला एक युवा नेता सीधे संसद में जाने की कोशिश कर रहा था. भले ही लोगों को हादी की जीत को लेकर संदेह था, लेकिन कोशिश ने व्यवस्था को चुनौती जरूर दी.

चुनाव तारीखों के ऐलान के तुरंत बाद हादी पर हमला हुआ. इस टाइमिंग ने लोगों के शक और गुस्से को और बढ़ा दिया. कई लोगों ने इसे सुधारवादी आवाजों को डराने की कोशिश माना. राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर लगभग हर तबके से इस हमले की निंदा हुई, क्योंकि यह लोकतांत्रिक बदलाव की प्रक्रिया पर सीधा हमला था.

भारत पर सवाल और संप्रभुता की बात

उस्मान हादी की पहचान का एक अहम पहलू उसका खुला और तीखा रुख था. उसने बांग्लादेश की राजनीति में विदेशी दखल, खासकर भारत की भूमिका पर सवाल उठाए. हादी का कहना था कि सच्चा लोकतंत्र सिर्फ घरेलू तानाशाही से नहीं, बल्कि बाहरी दबाव से भी आजादी मांगता है. समर्थकों के लिए यह राष्ट्रीय स्वाभिमान की बात थी, जबकि आलोचकों को इसमें उग्र राष्ट्रवाद का खतरा दिखा.

वर्ल्‍ड न्‍यूज
अगला लेख