हम भी देश को रिप्रेज़ेंट... विपक्ष को नज़रअंदाज़ करना लोकतांत्रिक, पुतिन से नहीं होगी मुलाकात; सरकार पर बरसे राहुल गांधी
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के भारत आने से पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाया कि विदेशी नेताओं को विपक्ष से मिलने नहीं दिया जाता. उन्होंने कहा कि विपक्ष भी देश का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन सरकार उन्हें विदेशी गणमान्यों से दूर रखती है. प्रियंका गांधी और शशि थरूर ने भी राहुल का समर्थन किया और इसे प्रोटोकॉल तोड़ने वाला फैसला बताया. पुतिन के दौरे से पहले यह विवाद राजनीति को और गरम कर रहा है.;
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन का भारत दौरा वैश्विक भू-राजनीति के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अहम घरेलू राजनीति के लिए भी साबित हो रहा है. दिल्ली में तैयारियों की हलचल के बीच अचानक एक नया विवाद खड़ा हो गया नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह विदेशी नेताओं को विपक्ष से मिलने नहीं देती. पुतिन की यात्रा शुरू होने से ठीक पहले उठे इस राजनीतिक सवाल ने केंद्र सरकार की प्रोटोकॉल नीति पर गर्मा-गर्म बहस छेड़ दी है.
राहुल गांधी का आरोप सिर्फ एक औपचारिकता को लेकर नहीं था. उनका कहना था कि लोकतांत्रिक परंपराएं सिर्फ दस्तावेज़ों में नहीं, बल्कि व्यवहार में जिंदा रहती हैं. और जब विपक्ष को देश के प्रतिनिधि मानकर उसके साथ विदेशी नेताओं की बैठकें तय नहीं की जातीं, तो यह परंपरा टूटती है. पुतिन के आगमन से पहले उठाया गया यह सवाल अब भारत की विदेश नीति और आंतरिक राजनीति दोनों को एक साथ केंद्र में ले आया है.
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राहुल गांधी का बड़ा हमला
दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कई दशकों से यह परंपरा रही है कि जब भी कोई बड़ा विदेशी नेता भारत आता है, तो वह नेता प्रतिपक्ष से भी मिलता है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक “नई नीति” अपनाई गई है. जिसके तहत सरकार विदेशी मेहमानों को यह सलाह देती है कि विपक्ष के नेताओं से मुलाकात न करें. राहुल गांधी के अनुसार, पुतिन के साथ भी ऐसी किसी मीटिंग की पहल नहीं की गई.
हम भी देश को रिप्रेज़ेंट करते हैं: राहुल
राहुल गांधी ने कहा कि विपक्ष सिर्फ आलोचना करने के लिए नहीं, बल्कि देश की आवाज़ का दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा है. “सरकार अकेली देश का प्रतिनिधित्व नहीं करती,” उन्होंने कहा. उनका दावा था कि यह लगातार हो रहा है. विदेश यात्राओं से लेकर भारतीय दौरे तक, विदेश नेताओं को विपक्ष से दूर रखने की कोशिश होती है. राहुल के अनुसार, इस रवैये के पीछे “असुरक्षा की भावना” है.
विपक्ष को दिया जाता था सम्मान
राहुल गांधी ने उदाहरण देते हुए कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भी विपक्ष को सम्मान दिया जाता था. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी यही परंपरा जारी रही कि किसी भी बड़े विदेशी मेहमान से नेता प्रतिपक्ष की बैठक होती थी. लेकिन अब, राहुल गांधी का आरोप है कि सरकार स्वयं ही विदेशी नेताओं को निर्देश देती है कि “एलओपी से न मिलें.”
प्रोटोकॉल उल्टा चल रहा है: प्रियंका गांधी
इस विवाद में प्रियंका गांधी वाड्रा भी कूद पड़ीं. उन्होंने कहा कि विदेश नीति और प्रोटोकॉल सिर्फ सरकार के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए होते हैं. प्रियंका ने आरोप लगाया कि सरकार ने सारी नीतियों को एक ही दिशा में मोड़ दिया है. जहां किसी और आवाज़, राय या संवाद की जगह नहीं है. “यह प्रोटोकॉल तोड़ने की राजनीति है.”
सरकार को साफ जवाब देना चाहिए: शशि थरूर
कांग्रेस सांसद और पूर्व राजनयिक शशि थरूर ने भी राहुल गांधी के आरोपों का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विदेशी नेताओं को विपक्ष से मिलने से रोकना न सिर्फ गलत है बल्कि यह भारत की बहुलतावादी छवि के खिलाफ है. थरूर ने कहा, “सरकार को बताना चाहिए कि आखिर LoP से मिलने में डर किस बात का है?”
शशि थरूर ने कहा कि भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन की जरूरत है. चाहे वह रूस हो, चीन हो या अमेरिका. इस संतुलन में विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि अगर विदेशी नेता केवल सरकार से ही मिलते रहेंगे, तो यह भारत की बहु-आयामी राजनीति का सही प्रतिनिधित्व नहीं होगा.
पुतिन की यात्रा
पुतिन का यह दौरा रूस-भारत रिश्तों के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है. क्योंकि यह यूक्रेन युद्ध के बाद उनका पहला भारत दौरा है. लेकिन ठीक इसी समय विपक्ष द्वारा उठाया गया यह मुद्दा संदेश देता है कि घरेलू राजनीति अब विदेश नीति के दायरे में भी खुलकर दखल दे रही है. इससे यह दौरा सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील बन गया है.
क्या यह विवाद आगे बढ़ेगा?
सरकार की ओर से अभी तक औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में बड़ा सवाल यही है. क्या सरकार जानबूझकर विपक्ष को विदेशी नेताओं से दूर रख रही है, या यह सुरक्षा प्रोटोकॉल का मुद्दा है? पुतिन की यात्रा के बाद यह विवाद और तूल पकड़ सकता है. विपक्ष इसे लोकतंत्र के “संवाद पर प्रतिबंध” की तरह पेश कर रहा है, जबकि सरकार इसे अनदेखा करने की कोशिश में है.