यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार भारत आएंगे पुतिन, दोस्ती मजबूत होगी या पश्चिम से टकराव गहरा होगा? PM Modi से इन मुद्दों पर होगी चर्चा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा को यूक्रेन युद्ध के बाद एक बड़े कूटनीतिक घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है. यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब भारत रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है और अमेरिका उस पर लगातार दबाव बना रहा है. रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है और भारत की करीब 60–70% रक्षा प्रणाली अब भी रूसी तकनीक पर निर्भर है. भुगतान व्यवस्था से लेकर रक्षा सौदों, ऊर्जा सुरक्षा, परमाणु सहयोग और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट तक कई अहम मुद्दे एजेंडे में हैं.;
Vladimir Putin India Visit 2025: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस हफ्ते होने वाली भारत यात्रा को पूरी दुनिया बेहद बारीकी से देख रही है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यह पुतिन का पहला भारत दौरा होगा, जिसे एक बड़े कूटनीतिक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है. इस यात्रा का असर सिर्फ भारत-रूस संबंधों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका सीधा असर भारत-अमेरिका व्यापार, तेल आयात और रक्षा सौदों पर भी पड़ सकता है.
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत रूस से कच्चे तेल (Crude Oil) की खरीद कम करेगा? या फिर वह अमेरिकी दबाव के बावजूद अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखेगा? इस सवाल का जवाब आसान नहीं है, क्योंकि इसके पीछे भू-राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्रतिबंध, रक्षा जरूरतें और वैश्विक संतुलन जुड़े हुए हैं. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, “रियायती रूसी कच्चे तेल ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया है, लेकिन इससे भारत की भू-राजनीतिक जोखिम और प्रतिबंधों के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ी है.”
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अमेरिका का दबाव और रूस के साथ मजबूरी
यह दौरा ऐसे समय हो रहा है जब भारत पर अमेरिका लगातार दबाव बना रहा है कि वह रूस से तेल आयात घटाए और अमेरिकी उत्पादों व रक्षा उपकरणों के लिए अपने बाजार खोले. वहीं दूसरी तरफ रूस भारत के लिए सस्ता तेल, हथियारों की सप्लाई और रणनीतिक सुरक्षा का बड़ा स्रोत बना हुआ है.
GTRI के मुताबिक, “पुतिन की यह यात्रा शीत युद्ध की याद में की जा रही कोई औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि यह जोखिम, सप्लाई चेन और आर्थिक सुरक्षा को लेकर सीधी बातचीत है. यह किसी एक पक्ष को चुनने की नहीं, बल्कि टूटती वैश्विक व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने की रणनीति है.”
भारत-रूस रिश्तों की ऐतिहासिक मजबूती
भारत और रूस की दोस्ती की जड़ें शीत युद्ध के दौर तक फैली हैं. 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया और USS एंटरप्राइज भेजा. तब सोवियत संघ ने भारत को हथियार, कूटनीतिक सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र में समर्थन दिया. 1962 के चीन युद्ध के बाद भी रूस भारत के साथ खड़ा रहा. 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद जब पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए, तब भी रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार बना रहा. आज भी भारत के 60 से 70% सैन्य प्लेटफॉर्म रूसी तकनीक पर आधारित हैं।
तीन स्तंभों पर टिका भारत-रूस रिश्ता
GTRI के अनुसार, आज भारत-रूस संबंध तीन मुख्य स्तंभों पर टिके हैं—
1- ऊर्जा (Energy)
- रूस अब भारत का सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है.
- 2024 में रूस से भारत की कुल तेल खरीद का हिस्सा 37% से ज्यादा रहा.
- 2021 में जहां भारत ने रूस से सिर्फ 2.3 अरब डॉलर का तेल खरीदा था.
- वहीं 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 52.7 अरब डॉलर पहुंच गया.
- यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल सस्ते दामों पर एशियाई बाजारों की ओर मुड़ गया, जिससे भारत को भारी फायदा हुआ.
2- रक्षा (Defence)
भारत की वायुसेना, नौसेना और थलसेना की बड़ी ताकत अब भी रूसी हथियारों पर आधारित है.
- S-400 एयर डिफेंस सिस्टम
- फाइटर जेट्स
- पनडुब्बियां
- टैंक और मिसाइल सिस्टम
इस दौरे में भारत S-400 की तेज डिलीवरी, मेंटेनेंस और अपग्रेड को लेकर रूस से ठोस आश्वासन मांग सकता है. साथ ही Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट को लेकर भी बातचीत संभव है, हालांकि यह फिलहाल दीर्घकालिक योजना के रूप में देखा जा रहा है.
3- कूटनीति (Diplomacy)
भारत और रूस BRICS, SCO, Eastern Economic Forum जैसे मंचों पर भी साथ काम करते हैं. इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, उर्वरक और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट जैसे क्षेत्रों में सहयोग जारी है.
भुगतान संकट और मुद्रा का नया खेल
रूस को SWIFT सिस्टम से आंशिक रूप से बाहर किए जाने के बाद भुगतान का तरीका पूरी तरह बदल गया है. अब तेल का भुगतान 60–65% यूएई दिरहम, 25–30% भारतीय रुपये और 5–10% चीनी युआन में हो रहा है. करीब ₹60,000 करोड़ रूस के भारतीय खातों में फंसा हुआ है, जिसे रूस इस्तेमाल नहीं कर पा रहा. इसी वजह से अब रूस दिरहम को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है.
भारत-रूस व्यापार में भारी असंतुलन
भारत रूस से सालाना करीब 5 अरब डॉलर का निर्यात करता है, जबकि रूस से 60 अरब डॉलर से ज्यादा का आयात करता है, जिसमें ज्यादातर हिस्सा तेल का है. भारत के प्रमुख निर्यात मशीनरी, दवाइयां और केमिकल्स हैं, जबकि रूस से आयात का बड़ा हिस्सा कच्चा तेल, कोयला, उर्वरक, हीरा और सूरजमुखी तेल से आता है. इससे साफ है कि यह व्यापारिक रिश्ता ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भर और असंतुलित बना हुआ है.
पुतिन की यात्रा के दो संभावित नतीजे
पहला: सीमित लेकिन मजबूत समझौता
- रक्षा उपकरणों की तेज सप्लाई
- लंबे समय के तेल समझौते
- नए परमाणु संयंत्र
- नया भुगतान तंत्र (दिरहम आधारित)
- यह रास्ता रिश्तों को स्थिर रखेगा, बिना अमेरिका को ज्यादा नाराज किए.
दूसरा: बड़ा रणनीतिक मोड़
- भारतीय कंपनियों का रूसी LNG और आर्कटिक प्रोजेक्ट्स में निवेश
- संयुक्त रक्षा उत्पादन
- चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री कॉरिडोर
- इंटर्नैशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को गति
- यह रास्ता भारत-रूस को और करीब ला सकता है, लेकिन इससे पश्चिमी देशों की नाराजगी भी तेज हो सकती है.
GTRI का कहना है कि यह दौरा सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि ईंधन, हथियार और भुगतान सुरक्षा की लड़ाई है. भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह अमेरिका के दबाव और रूस पर निर्भरता के बीच अपनी रणनीतिक आज़ादी कैसे बनाए रखता है.