2002 से 2025 तक वोटर का रिश्ता तलाश रहा ECI, बंगाल में प्रोजेनी मैपिंग ने बढ़ाई चुनाव आयोग की टेंशन
पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया अब निर्णायक मोड़ पर है. चुनाव आयोग का सबसे बड़ा फोकस प्रोजेनी मैपिंग पर है. 7.66 करोड़ मतदाताओं में से 3.84 करोड़ ने खुद को 2002 की वोटर लिस्ट में दर्ज मतदाताओं का रिश्तेदार बताया है. कई मामलों में माता-पिता के नामों में गंभीर विरोधाभास मिले हैं, खासकर उत्तर और दक्षिण 24 परगना में. इसी वजह से ECI ने घर-घर सत्यापन और सख्त जांच शुरू की है.;
पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया अब अपने सबसे संवेदनशील और निर्णायक चरण में पहुंच चुकी है. सभी एन्यूमरेशन फॉर्म जमा होने के बाद चुनाव आयोग ने आज यानी 16 दिसंबर को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी कर दी है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया का सबसे जटिल और चुनौतीपूर्ण हिस्सा प्रोजेनी मैपिंग बनकर उभरा है.
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि यही वह बिंदु है जहां से तय होगा कि कौन-सा मतदाता बिना अतिरिक्त जांच के वैध माना जाएगा और किसे दोबारा दस्तावेज़ी सत्यापन और सुनवाई की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. आयोग की भाषा में ‘मैपिंग’ का अर्थ है 2025 की वोटर लिस्ट में दर्ज मतदाता का संबंध 2002 की वोटर लिस्ट से स्थापित करना, क्योंकि बंगाल में आखिरी बार स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन 2002 में हुआ था और उसी सूची को आधार बनाया जा रहा है.
चुनाव आयोग की ‘मैपिंग’ प्रक्रिया आखिर है क्या?
चुनाव आयोग ने इस मैपिंग को तीन श्रेणियों में बांटा है - सेल्फ मैपिंग, प्रोजेनी मैपिंग और अनमैप्ड. जिन मतदाताओं का नाम 2002 और 2025 दोनों सूचियों में मौजूद है, उन्हें सेल्फ मैपिंग की श्रेणी में रखा गया है और उन्हें सबसे सुरक्षित माना जा रहा है. वहीं जिनका नाम 2002 की सूची में नहीं है, लेकिन वे खुद को उस सूची में दर्ज किसी व्यक्ति का रक्त संबंधी रिश्तेदार - जैसे पिता, माता या दादा-दादी - बताते हैं, उन्हें प्रोजेनी मैपिंग के तहत वर्गीकृत किया गया है. इसके अलावा वे मतदाता जिनका न तो नाम 2002 की सूची में है और न ही कोई पारिवारिक संबंध स्थापित हो पा रहा है, उन्हें अनमैप्ड माना गया है और ऐसे मतदाताओं को अनिवार्य रूप से सुनवाई और दस्तावेज़ी जांच के लिए बुलाया जाएगा.
आंकड़ों में पश्चिम बंगाल की SIR तस्वीर
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में कुल 7.66 करोड़ मतदाताओं में से 2.93 करोड़ ने सेल्फ मैपिंग के साथ फॉर्म जमा किए हैं, 3.84 करोड़ ने प्रोजेनी मैपिंग के तहत जानकारी दी है, जबकि करीब 30 लाख मतदाता ऐसे हैं जिनकी कोई मैपिंग नहीं हो सकी है. इसके अलावा लगभग 58 लाख मतदाताओं के एन्यूमरेशन फॉर्म ही जमा नहीं हुए, जिनमें 24.18 लाख मृत मतदाता, 12.01 लाख अनट्रेसेबल, 19.93 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित, 1.37 लाख डुप्लिकेट एनरोलमेंट वाले और 57,509 अन्य श्रेणी के मतदाता शामिल हैं. चुनाव आयोग की चिंता का केंद्र खासतौर पर प्रोजेनी मैपिंग बन गई है, क्योंकि इसी श्रेणी में सबसे ज्यादा अनियमितताएं सामने आई हैं.
किन जिलों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी?
एक वरिष्ठ ECI अधिकारी ने बताया कि कई मामलों में 2025 की वोटर लिस्ट में दर्ज मतदाता खुद को 2002 के किसी वोटर का बेटा या बेटी बता रहे हैं, लेकिन उनके माता-पिता के नाम मौजूदा रिकॉर्ड से मेल नहीं खाते. यानी रिश्ते का दावा तो किया गया है, लेकिन सरकारी दस्तावेज़ उस दावे की पुष्टि नहीं करते. आयोग के मुताबिक उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना जिलों में ऐसे मामलों की संख्या सबसे अधिक पाई गई है. उदाहरण के तौर पर हिंगलगंज विधानसभा क्षेत्र के एक बूथ पर 779 में से 705 मतदाताओं के माता-पिता संबंधी विवरण आपस में मेल नहीं खाते, जबकि हेमताबाद में 1,119 में से 977 मतदाताओं के डेटा में विरोधाभास पाया गया है. इसी तरह की विसंगतियां धूपगुड़ी, डाबग्राम-फूलबाड़ी, दिनहाटा, मुराराई, हबीबपुर और अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी सामने आई हैं. इन गड़बड़ियों को देखते हुए चुनाव आयोग ने अब घर-घर जाकर सत्यापन की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
चुनाव आयोग अब क्या कर रहा है?
ECI द्वारा नियुक्त एक ऑब्जर्वर ने बताया कि जिला निर्वाचन अधिकारी संदिग्ध मतदाताओं की सूची तैयार करेंगे, उन्हें सुनवाई के लिए बुलाया जाएगा और दस्तावेज़ों की जांच के बाद यह तय किया जाएगा कि उनका नाम फाइनल वोटर लिस्ट में शामिल रहेगा या नहीं. आयोग का मानना है कि मतदाता सूची लोकतंत्र की रीढ़ होती है और अगर इसमें गलत रिश्ते, फर्जी मैपिंग या दस्तावेज़ी ढील रह गई, तो चुनाव की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं. यही वजह है कि इस बार चुनाव आयोग डेटा-आधारित, सख्त और गहन सत्यापन पर जोर दे रहा है. पश्चिम बंगाल में SIR अब सिर्फ एक प्रशासनिक अभ्यास नहीं, बल्कि चुनावी विश्वसनीयता की परीक्षा बन चुका है और ड्राफ्ट व फाइनल वोटर लिस्ट के बीच का अंतर यह तय करेगा कि यह पूरी कवायद कितनी प्रभावी और भरोसेमंद साबित होती है.