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खेला होबे! SIR से 56 लाख वोटरों पर संकट, बंगाल में बदले सियासी समीकरण, ममता बनाम BJP में किसे फायदा?

पश्चिम बंगाल में SIR रजिस्ट्रेशन को लेकर सियासी घमासान अब और तेज हो गया है. आदिवासी इलाकों की करीब 90 विधानसभा सीटों पर चुनावी समीकरण बदलने के संकेत हैं. जानिए, इस विवाद से ममता बनर्जी को फायदा होगा या बीजेपी पलटवार करेगी.

खेला होबे! SIR से 56 लाख वोटरों पर संकट, बंगाल में बदले सियासी समीकरण, ममता बनाम BJP में किसे फायदा?
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पश्चिम बंगाल में SIR (स्पेशल आइडेंटिफिकेशन रजिस्ट्रेशन) अब सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि बड़े सियासी हथियार में बदल चुका है. ‘खेला होबे’ के नारे के बीच आदिवासी बहुल इलाकों से लेकर सीमावर्ती क्षेत्रों तक इसका असर दिखने लगा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे ने राज्य की करीब 90 विधानसभा सीटों पर जातीय, सामाजिक और वोट बैंक का गणित बदल दिया है, जहां ममता बनर्जी की TMC और बीजेपी आमने-सामने हैं.

पश्चिम बंगाल में 2026 चुनाव से पहले 56 लाख नाम वोटर लिस्ट से कटना महज सफाई नहीं, बल्कि एक बड़ा सियासी 'खेला' है. समझिए, कैसे 7.5% वोटों का गायब होना उन 90 सीटों का पूरा गणित पलट देगा जहां जीत का अंतर बेहद कम है. क्या बिहार की तर्ज पर बंगाल में भी नतीजे वोटिंग से पहले तय हो रहे हैं?

दरअसल, पश्चिम बंगाल की सियासत में ‘खेला होबे’ का नारा बहुत मशहूर है, लेकिन 2026 के चुनाव से पहले जो ‘खेला’ हो रहा है, वह मैदान में नहीं बल्कि कागजों पर हो रहा है. चुनाव आयोग के एक आंकड़े ने बंगाल की राजनीति में हड़कंप मचा दिया है. राज्य में 56.37 लाख वोटर ‘अनकलेक्टिबल’ (Uncollectible) यानी संदिग्ध पाए गए हैं, जिन्हें लिस्ट से हटाया जा रहा है.

2 फीसदी स्विंग से बदल जाती है सरकार!

कुल मतदाताओं का करीब 7.5% है. चुनाव राजनीति का सीधा नियम है. दो प्रतिशत वोट स्विंग होने से सरकार बदल जाता है. यहां तो 7.5% वोट ही सिस्टम से बाहर हो रहे हैं. नाम कटने से बंगाल की 294 सीटों में से 90 से ज्यादा सीटों पर सियासी गणित बिगड़ने वाला है. अहम सवाल यह है कि इसका फायदा क‍िसे मिलेगा?

बंगाल में 7.66 करोड़ फॉर्म की जांच हुई, जिसमें से 56 लाख से ज्यादा नाम हटाने लायक मिले. अगर हम इसे बंगाल की कुल 294 विधानसभा सीटों में बराबर बांट दें, तो हर सीट पर औसतन करीब 19 हजार वोट हुए. साफ है जिस विधायक की जीत का अंतर 2021 में 5 या 10 हजार वोटों का था, अगर उसकी सीट से 19 हजार वोट गायब हो जाएं, तो उसकी जीत की क्या गारंटी बची? यह संख्या इतनी बड़ी है कि किसी भी उम्मीदवार की जमानत जब्त करवा सकती है. या फिर हारे हुए को जिता सकती है.

90 सीटों पर बदला समीकरण

चुनाव आयोग के एसआईआर (SIR) से सबसे ज्यादा असर उन सीटों पर होगा, जिन्हें ‘मार्जिनल सीट्स’ कहा जाता है. 2021 के नतीजों को देखें तो बंगाल में 80 से 90 सीटें ऐसी हैं, जहां हार-जीत का फैसला 15,000 वोटों से कम के अंतर से हुआ था. अगर किसी सीट पर तृणमूल या बीजेपी का उम्मीदवार 5,000 वोट से जीता. अब वहां लिस्ट पुनरीक्षण (Revision) में 19,000 नाम कट गए. गया कटने वाले वोट जीत के अंतर से 4 गुना ज्यादा हैं. अगर इन कटे हुए वोटों में थोड़ा भी झुकाव किसी एक पार्टी की तरफ था, तो उस सीट का रिजल्ट पलटना 100% तय है.

30 लाख लापता वोटर कौन?

असली पेंच यहां फंसा है. 56 लाख में से 23 लाख तो मृतक हैं, लेकिन बाकी के 30 लाख से ज्यादा वोटर ऐसे हैं जो ‘शिफ्टेड’ या ‘अनट्रेसेबल’ हैं. ये कौन हैं, क्या ये घुसपैठिए हैं, या प्रवासी बंगाली मतदाता. यहां पर इस बात का भी जिक्र कर दें कि बंगाली लोगों को प्रदेश से पलायन बिहार, यूपी, और राजस्थान जैसे राज्यों की तुलना में कम होता है.

क्या है बिहार कनेक्शन?

बिहार चुनाव में 69 लाख वोट कटे थे. इंडिया ब्लॉक ने आरोप लगाए थे कि ‘लापता’ बताकर विरोधी पार्टी के कोर वोटरों (खासकर गरीबों और अल्पसंख्यकों) को लिस्ट से बाहर कर दिया गया. बंगाल में भी विपक्ष को यही डर है कि ‘वेरिफिकेशन’ के नाम पर चुन-चुन कर नाम काटे जा रहे हैं. यह कितना सच है, ये तो चुनाव आयोग को पता है, लेकिन इसके परिणाम अब ममता बनर्जी को डराने लगा है.

सवाल - बंगाल में 7.5% कटौती का लाभ किसे मिलेगा? यह इस बात पर निर्भर करता है कि ‘कटने वाले’ कौन हैं. बीजेपी को फायदा कैसे? बीजेपी लंबे समय से आरोप लगाती रही है कि बंगाल में लाखों फर्जी वोटर, घुसपैठिए और रोहिंग्या वोटर लिस्ट में शामिल हैं, जो ममता बनर्जी का कोर वोट बैंक हैं. यदि चुनाव आयोग की सख्ती से ये बोगस या घुसपैठिए वोटर बाहर हो रहे हैं, तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा और तृणमूल को उन सीटों पर भारी नुकसान होगा जहां वह एकतरफा जीतती थी.

ममता बनर्जी को फायदा कैसे?

इसका दूसरा पहलू यह है कि बंगाल में बड़ी संख्या में लोग काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं या अपना पता बदलते हैं. अगर BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) ने स्थानीय प्रशासन के प्रभाव में आकर बीजेपी समर्थक वोटरों या एंटी-इंकंबेंसी (सरकार विरोधी) वाले वोटरों को ‘अनट्रेसेबल’ बताकर लिस्ट से बाहर कर दिया, तो इसका सीधा फायदा ममता बनर्जी को मिलेगा.

लेकिन इतना तय है कि अगर यह 30 लाख ‘लापता’ वोटर वाकई में असली नागरिक हैं और उन्हें सिस्टम से बाहर किया जा रहा है, तो समझिए कि बंगाल की 90 सीटों पर जनादेश को टेक्निकली ‘हैक’ हो गया. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह 7.5% की कैंची ममता के वोट बैंक पर चली है या बीजेपी के समर्थकों पर.

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