अमीरों का शहरी फोबिया: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, पैकेटबंद खाने पर कहा - 'पहले देश के... जहां पानी नहीं मिलता'
गुरुवार को पैकेटबंद खाने के मानकों को लेकर दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. अदालत ने याची को फटकार लगाते हुए कहा कि पहले उन इलाकों की चिंता करें, जहां लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिलता. इसके लिए जरूरी है कि याची गांधी की तरह देश की पिछले इलाकों की यात्रा कर भारत को समझे.;
पैकेटबंद खाने के लेबल और मानकों को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. अदालत ने न सिर्फ याचिका खारिज की, बल्कि याची की मंशा पर भी सवाल उठाते हुए टिप्पणी की कि देश की प्राथमिक समस्याएं शहरी मध्यम और अमीर वर्ग तक सीमित नहीं हैं.
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पैकेटबंद खाने के मानकों को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए उसे गुरुवार को खारिज कर दिया. अदालत ने याचिका को अमीरों का शहरी फोबिया करार दिया. सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता को दो टूक कहा कि देश की प्राथमिक समस्याएं शहरी इलाकों और संपन्न वर्ग की चिंताओं तक सीमित नहीं हैं. कोर्ट ने टिप्पणी की कि पहले उन हिस्सों पर ध्यान देने की जरूरत है, जहां आज भी लोगों को पीने का साफ पानी तक नसीब नहीं है.
याचिका में क्या है?
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले शख्स ने शीर्ष अदालत से मांग की कि पैकेटबंद खाद्य पदार्थों पर चेतावनी, पोषण संबंधी जानकारी और मानकों को और सख्त किया जाए. याची का तर्क था कि ऐसे खाद्य पदार्थ शहरी आबादी के स्वास्थ्य के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. इन्हें डब्लूएचओ (WHO) के मानकों के अनुरूप किया जाए.
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सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को 'अभिजात्य चिंता' करार देते हुए कहा कि देश में आज भी ऐसे इलाके हैं, जहां लोगों को पीने का साफ पानी तक उपलब्ध नहीं है. अदालत ने स्पष्ट किया कि संसाधनों और न्यायिक समय का उपयोग प्राथमिक जरूरतों पर होना चाहिए.
‘अमीरों का शहरी फोबिया’ क्यों कहा गया?
कोर्ट की टिप्पणी का मतलब यह है कि पैकेट बंद खाने जैसे मुद्दे मुख्य रूप से शहरी और संपन्न वर्ग की चिंता हैं. जबकि ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में आज भी बुनियादी सुविधाओं जैसे पानी, स्वच्छता और पोषण की भारी कमी है.
खाद्य सुरक्षा बनाम जमीनी हकीकत
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि खाद्य सुरक्षा एक अहम विषय है, लेकिन इसे देश की व्यापक सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से अलग नहीं देखा जा सकता. जब बड़ी आबादी कुपोषण और जल संकट से जूझ रही हो, तब केवल पैकेटबंद खाने पर फोकस करना संतुलित दृष्टिकोण नहीं माना जा सकता.
याचिका खारिज, लेकिन बहस कायम
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन पैकेटबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मानकों पर बहस खत्म नहीं हुई है. अदालत ने संकेत दिया कि इस मुद्दे पर नीति निर्माण और नियामक संस्थाओं की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है.