नितिन एक, BJP के संदेश अनेक! कांग्रेस के लिए सिर्फ नीति या पीढ़ी नहीं, नई राजनीति गढ़ने की भी चुनौती
बीजेपी में ‘नितिन नबीन’ के उभार ने केवल एक चेहरे की चर्चा नहीं छेड़ी, बल्कि कई राजनीतिक संदेश भी दिए हैं. खासकर कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों को. यह संकेत कांग्रेस के लिए चेतावनी है कि चुनौती सिर्फ नीतियों या पीढ़ीगत परिवर्तन की नहीं, बल्कि संगठन और राजनीति को नया आयाम देने की भी है. अहम सवाल यह है कि 83 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे बीजेपी के 45 वर्षीय नवीन को कैसे देंगे टक्कर.
भारतीय राजनीति में कई बार एक नाम, एक चेहरा या एक नियुक्ति पूरे सियासी परिदृश्य को नए अर्थ दे देती है. बीजेपी में ‘नितिन नबीन ’ का उभार भी कुछ वैसा ही है. यह बदलाव केवल चेहरे या पीढ़ी का संकेत नहीं, बल्कि बीजेपी की उस रणनीति को दर्शाता है जिसमें संगठन, नेतृत्व और राष्ट्रीय राजनीति तीनों को एक साथ साधने की कोशिश साफ दिखती है. साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं इस भरोसे को बनाए रखना कि बीजेपी में कोई भी 'फर्श से अर्श' तक पहुंच सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस के लिए बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष महज एक राजनीतिक घटना नहीं बल्कि आत्ममंथन का अलार्म बन चुकी है.
भाजपा में इस तरह के फैसले सिर्फ व्यक्ति को देखकर नहीं किए जाते, बल्कि इसके पीछे कार्यकर्ताओं, सहयोगियों, विरोधियों और मतदाताओं तक पहुंचने वाला संकेत छिपा होता है. ऐसा बदलाव केवल नेशनल लेवल पर नहीं बल्कि प्रदेश स्तर पर भी किया है. कहा जा रहा है बीजेपी ने जनरेशन गैप को पाटकर कांग्रेस को भी चुनौती दी है. ऐसा इसलिए कि मल्लिकार्जुन खड़गे 83 साल के हैं जबकि बीजेपी अध्यक्ष नितिन नबीन 45 साल के हैं.
बीजेपी में ‘नितिन’ का उभार किसी एक व्यक्ति का प्रमोशन भर नहीं है. यह उस राजनीतिक सोच का संकेत है, जहां पार्टी यह दिखाना चाहती है कि नेतृत्व निरंतर विकसित हो रहा है.संगठन में विकल्प मौजूद हैं.सेकेंड लाइन की बात छोड़िए तीसरी लाइन भी इस स्थिति में है, जो बीजेपी की सर्वोच्च संगठनात्मक जिम्मेदारी का कभी भी और किसी भी समय निर्वहन कर सकता है. किसी भी स्थिति में बीजेपी सत्ता और संगठन के बीच संतुलन साधने में सक्षम है. यह संदेश न सिर्फ समर्थकों के लिए है, बल्कि विपक्ष के लिए भी.
BJP का बहुस्तरीय संदेश
नितिन नबीन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना बीजेपी कई स्तरों पर संदेश देती दिखाई देती है. पहला संगठन सबसे ऊपर व्यक्ति बाद में, नेतृत्व का चयन राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से और पुराने और नए चेहरों के बीच संतुलन. जनरेशन गैप को उभरने न देने भी बड़े संकेतों में से एक है. बीजेपी यह बताने में सफल रही है कि वह बदलाव को संकट नहीं, अवसर की तरह पेश कर सकती है.
कांग्रेस की चुनौती: सिर्फ नीति या पीढ़ी नहीं...
कांग्रेस लंबे समय से पार्टी में नीतिगत सुधार का जोखिम नहीं उठा पाई है. युवा नेतृत्व, वैचारिक बदलाव जैसे मुद्दों पर चर्चा भी करती रही है. इसके जवाब में बीजेपी का ‘नितिन’ प्रकरण यह सवाल खड़ा करता है कि क्या कांग्रेस संगठनात्मक ढांचे और राजनीतिक शैली पर उतना ही गंभीर मंथन कर रही है?
संगठनात्मक रीशेपिंग क्यों जरूरी?
संगठन फेरबदल कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है. जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर है और नेतृत्व केंद्रीयकृत है. राज्यों में स्पष्ट चेहरों की कमी हर स्तर पर है. बीजेपी इसके उलट संगठन को सत्ता से ऊपर रखती दिखती है. यही फर्क चुनावी नतीजों में भी झलकता है.
राजनीति की भाषा
नए दौर के भारत में राजनीति सिर्फ भाषण, घोषणापत्र या विचारधारा तक सीमित नहीं है.यह मैनेजमेंट, मैसेजिंग और माइक्रो-पॉलिटिक्स का खेल बन चुकी है. बीजेपी इस बदलाव को स्वीकार कर आगे बढ़ चुकी है. जबकि कांग्रेस अब भी इस ट्रांजिशन से जूझती नजर आती है.
कांग्रेस के सामने असली सवाल
अब सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस नई नीति कब लाएगी या युवा चेहरों को कब आगे बढ़ाएगी. असल सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपनी राजनीति की संरचना, संगठन की कार्यशैली और नेतृत्व के मॉडल को नए सिरे से गढ़ने के लिए तैयार है?
बीजेपी का संदेश क्या?
सबसे पहले यह पीढ़ीगत बदलाव का संकेत देती है. 45 वर्ष की उम्र में नितिन नवीन उस नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने भाजपा की राजनीति को उसके विस्तार और मजबूती के दौर में देखा है. उनकी नियुक्ति यह बताती है कि पार्टी नेतृत्व को उम्र या विरासत नहीं, बल्कि निरंतर मेहनत और संगठन में काम करने के आधार पर आगे बढ़ाया जा रहा है. भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि बदलाव जरूरी है, लेकिन वह व्यवस्था को तोड़कर नहीं, बल्कि उसे मजबूत करते हुए.
नितिन नवीन बिहार से आते हैं और बिहार लंबे समय से राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाता रहा है. इसके बावजूद, शीर्ष स्तर पर वहां के नेताओं की भागीदारी सीमित रही है. एक बिहारी नेता को राष्ट्रीय संगठन में अहम जिम्मेदारी देना इसका प्रतीक है कि भाजपा पूर्वी भारत और हिंदी पट्टी के राज्यों को गंभीरता से ले रही है. यह राज्यों के नेताओं को यह भरोसा भी देता है कि पार्टी का केंद्र सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है.
व्यक्ति नहीं कार्यकर्ता बेस्ड पार्टी
भाजपा ने इस नियुक्ति के जरिए खुद को एक कार्यकर्ता-आधारित पार्टी के रूप में फिर से स्थापित किया है. नितिन नवीन का राजनीतिक सफर (युवा मोर्चा से लेकर विधायक और मंत्री तक) पार्टी को यह कहने का अवसर देता है कि जो कार्यकर्ता जमीन पर काम करता है, वही आगे बढ़ता है.
नरेंद्र मोदी के दौर की बीजेपी का जब इतिहास लिखा जायेगा, तब उसकी तमाम खूबियों और खामियों के साथ यह याद किया जाएगा कि वह हर बार चौंकाने वाला फैसला लेना जानती है. नितिन नबीन को अपना कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया है. नितिन को भले ही पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है, पर ऐसा माना जा रहा है कि 2026 के जनवरी के आखिर तक उन्हें पूर्णकालिक अध्यक्ष के तौर पर चुन लिया जाएगा.
कभी सुषमा ने कांग्रेस से पूछा था...
यहां पर नितिन की ताजपोशी पर चर्चा से पहले बीजेपी से जुड़े अतीत के एक किस्से को याद करना भी जरूरी ळै. मई 1996 में तेरह दिन वाजपेयी सरकार के विश्वासमत पर चर्चा के दौरान सुषमा स्वराज ने कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व से पूछा था, कहां है आपकी सेकेंड लाइन ऑफ लीडरशिप. हमारी ओर देखिए, वेंकैया हैं, अनंत हैं, प्रमोद हैं. अटल-आडवाणी और जोशी के दौर की बीजेपी में बिना शक ये तीनों ही नाम शीर्ष नेतृत्व में शामिल थे. पार्टी की दूसरी पंक्ति में स्वयं सुषमा स्वराज का नाम भी शामिल था. कुछ समय बाद अरुण जेटली को भी इसी पंक्ति में शामिल कर लिए गए. लेकिन ये क्या, बीजेपी नेतृत्व ने तो इस बार तीसरी पीढ़ी को राजनीति में शीर्ष पर पहुंचने का मौका दे दिया.
फ्यूचर लीडर
ऐसा इसलिए कि नितिन नबीन पांच बार के विधायक हों, पर राष्ट्रीय स्तर पर उनका नाम इतना चर्चित नहीं रहा है. बीजेपी के मुख्य संगठन में छत्तीसगढ़ के प्रभार की जिम्मेदारी छोड़ दें, तो इसके पहले कोई बड़ी भूमिका भी नहीं सौंपी गई थी.ऐसे में नितिन के सामने बड़े और दिग्गज नेताओं से भरी बीजेपी को संभालना बड़ी चुनौती होगी. लेकिन यह भी माना जा सकता है कि उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी. पूछिए क्यों? इसका जवाब यह है कि बीजेपी ने नितिन को राष्ट्रीय भूमिका देकर पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत की है. इस बदलाव को पीएम मोदी ने तुरंत बधाई देकर स्वीकार किया है. उनके इस स्वीकारोक्ति ने पार्टी में एकजुटता, अनुशासन और स्पष्टता का संदेश दिया है.
कहने का मतलब यह है कि नितिन नबीन की नियुक्ति एक व्यक्ति की तरक्की से ज्यादा भाजपा की सोच का प्रतीक है. यह युवा नेतृत्व, क्षेत्रीय संतुलन, कार्यकर्ताओं का सम्मान और भविष्य की तैयारी है. यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने संगठन में बड़े बदलाव करते हुए बिहार इकाई की कमान अनुभवी नेता संजय सरावगी (Sanjay Sarawagi) को सौंप दी है.
जबकि कांग्रेस सीएम सिद्धारमैया की उम्र 77 साल, सुखविंदर सुक्खू 62 साल है. इसी तरह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का उम्र देखेंगे तो उनकी उर्म 60 साल से ज्यादा है. जबकि बीजेपी लगातार 60 से कम उम्र के लोगों को प्रदेश अध्यक्ष और सीएम के रूप में जिम्मेदारी दे रही है. पीएम मोदी कई बार कह चुके हैं कि बीजेपी में दरी बिछाने वाला सामान्य कार्यकर्ता भी मुख्यमंत्री, मंत्री या अन्य किसी पद पर बैठ सकता है. इस नजरिए से देखें तो कांग्रेस को अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है.





