'ख्याल' नहीं रख सकते तो एक से ज्यादा बीवियां नहीं रख सकते मुस्लिम पुरुष, केरल HC का बड़ा फैसला
केरल हाईकोर्ट ने शनिवार को अहम फैसले में साफ कहा है कि मुस्लिम पुरुषों को कई शादियां करने का अधिकार है, लेकिन यदि वह अपनी पत्नियों का भरण-पोषण और देखभाल नहीं कर सकते तो यह अधिकार उसके लिए मान्य नहीं होगा. अदालत ने स्पष्ट किया कि बहुपत्नी प्रथा धार्मिक आजादी का हिस्सा हो सकती है. मगर यह पत्नी के अधिकारों और उनके सम्मान से ऊपर नहीं हो सकती.;
केरल हाईकोर्ट ने शनिवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा एक बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि अगर कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है तो वह एक से अधिक शादी नहीं कर सकता. कोर्ट ने इस टिप्पणी के जरिए महिलाओं के अधिकारों और उनके आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा को प्राथमिकता देने पर जोर दिया. इसमें गलत कुछ नहीं है.
इस बात का खुलासा उस समय हुआ, जब केरल हाईकोर्ट में पेरिंथलमन्ना की एक 39 वर्षीय महिला ने भीख मांगकर गुजारा करने वाले अपने पति से 10 हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता मांग को लेकर अदालत के सामने याचिका दाखिल की. जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने यह फैसला तब सुनाया जब एक भिखारी के उसकी पत्नी ने अदालत में याचिका दायर कर गुजारा भत्ते की मांग की.
केरल हाईकोर्ट के जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने तंज कसते हुए कहा कि एक मलयालम मुहावरे का जिक्र किया. उनका कहना था कि 'दानपात्र में हाथ मत डालो.' उन्होंने कहा, "पति कोई संत नहीं होता. इस मामले में पति अंधा और भिखारी है." जज ने कहा कि याची पत्नी के मुताबिक वह उसकी दूसरी पत्नी है. फिर भी पति उसे धमकी दे रहा है कि वह जल्द ही किसी दूसरी महिला से तीसरी शादी कर लेगा."
पति को है 25 हजार की मासिक आय
अदालत ने याचिका सुनवाई के दौरान यह पाया कि प्रतिवादी यानी भीख मांगने सहित विभिन्न स्रोतों से 25,000 रुपये की आय है. याचिकाकर्ता ने गुजारा भत्ता के रूप में 10 हजार रुपये प्रति माह की मांग की थी. प्रतिवादी वर्तमान में अपनी पहली पत्नी के साथ रहता है. अदालत ने यह भी कहा कि वह पत्नी के इस तर्क को स्वीकार नहीं कर पा रही है कि उसका अंधा पति नियमित रूप से उसके साथ मारपीट करता था.
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि वह एक मुस्लिम पुरुष की कई शादियों को स्वीकार नहीं कर सकता. जब वह अपनी पत्नियों का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है और उनमें से एक ने गुजारा भत्ता मांगने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया. इससे पहले, याचिकाकर्ता ने एक पारिवारिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने उसकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि पलक्कड़ के कुम्बाडी निवासी उसके 46 वर्षीय पति, जो भीख मांगकर गुजारा कर रहे हैं, को गुजारा भत्ता देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता.
अदालत ने कुरान की आयतों का दिया हवाला
कुरान की आयतों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि पवित्र ग्रंथ एक विवाह का प्रचार करता है और बहुविवाह को केवल एक अपवाद मानता है. अदालत ने कहा, "अगर कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी, दूसरी पत्नी, तीसरी पत्नी और चौथी पत्नी को न्याय दे सकता है, तो एक से ज्यादा बार शादी करना जायज है."
अदालत के अनुसार, ज्यादातर मुसलमान एकपत्नीत्व का पालन करते हैं, जो कुरान की सच्ची भावना को दर्शाता है, जबकि अल्पसंख्यकों का एक छोटा समूह की कई शादी करता है. ऐसे लोग कुरान की आयतों को भूल जाते हैं. अदालत ने कहा कि उन्हें धार्मिक नेताओं और समाज द्वारा शिक्षित किया जाना चाहिए.
भीख मांगना कमाई का जरिया नहीं
प्रतिवादी की स्थिति पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि भीख मांगना आजीविका का साधन नहीं माना जा सकता और यह सुनिश्चित करना राज्य, समाज और न्यायपालिका का कर्तव्य है कि कोई भी इसका सहारा न ले. अदालत ने जोर देकर कहा कि राज्य को ऐसे व्यक्तियों को भोजन और वस्त्र प्रदान करना चाहिए.