कर्नाटक हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, अगर लिव-इन पार्टनर ने महिला के साथ की ये हरकत; IPC की धारा 498A के तहत होगा केस

कर्नाटक हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट के अनुसार धारा 498A लिव-इन रिलेशनशिप, वैध न होने वाले विवाह और पति-पत्नी की तरह साथ रहने वाले संबंधों पर भी उतनी ही मजबूती से लागू होगी जितनी वैध विवाह पर.;

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Edited By :  विशाल पुंडीर
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े एक बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि धारा 498A अब केवल कागजों पर दर्ज वैध पति-पत्नी संबंध तक सीमित नहीं रहेगी. अदालत ने साफ किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A लिव-इन रिलेशनशिप, वैध न होने वाले विवाह और पति-पत्नी की तरह साथ रहने वाले संबंधों पर भी उतनी ही मजबूती से लागू होगी जितनी वैध विवाह पर.

यह फैसला महिलाओं के लिए बड़ा सुरक्षा कवच माना जा रहा है, क्योंकि अदालत ने साफ कहा कि किसी पुरुष द्वारा विवाह का भरोसा देकर महिला के साथ रहने, फिर उसके साथ हिंसा, दहेज मांग या क्रूरता करने पर वह कानून से बच नहीं सकता भले ही शादी कानूनी रूप से वैध न हो.

हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

18 नवंबर को जस्टिस सूरज गोविंदराज की बेंच द्वारा दिया गया यह फैसला उस याचिका पर आधारित था, जिसमें एक व्यक्ति ने 498A के तहत दर्ज केस को रद्द करने की मांग की थी. अदालत ने कहा कि पति शब्द अब केवल वैध विवाह तक सीमित नहीं माना जाएगा. अगर कोई व्यक्ति विवाह जैसे संबंध में है या वह लिव-इन रिलेशनशिप में पत्नी की तरह रहने का भरोसा देता है तो भी धारा 498A लागू होगी.

मामला कैसे शुरू हुआ?

याचिकाकर्ता की पहली शादी से एक बेटी थी. इसके बावजूद उसने 2010 में दूसरी महिला से शादी कर ली. साल 2016 में यह रिश्ता टूट गया और दूसरी पत्नी ने उसके खिलाफ धारा 498A के तहत शिकायत दर्ज करवाई. जिसमें दहेज मांग, शारीरिक हिंसा, मानसिक क्रूरता और पहली शादी छुपाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए. आरोपी ने तर्क दिया कि उसकी पहली शादी वैध थी, इसलिए दूसरी शादी कानूनन मान्य नहीं मानी जा सकती. इस वजह से 498A लागू ही नहीं हो सकती क्योंकि शिकायतकर्ता कानूनी पत्नी नहीं थी.

कागजी शादी जरूरी नहीं

हाईकोर्ट ने आरोपी की दलील को खारिज करते हुए कहा कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा के लिए 498A एक सामाजिक सुरक्षा कवच है. कागजी वैधता नहीं, बल्कि संबंध का वास्तविक स्वरूप मायने रखता है.

अदालत ने साफ लिखा कि यदि कोई पुरुष पहली शादी छुपाकर किसी महिला के साथ पति-पत्नी की तरह रहता है और फिर क्रूरता करता है, तो उसे सिर्फ इसलिए छूट नहीं दी जा सकती कि संबंध कानूनी रूप से वैध नहीं था.जज ने कहा संबंध का सार महत्वपूर्ण है. अगर महिला को विश्वास दिलाया गया कि वह विवाह में है और क्रूरता के सबूत मौजूद हैं, तो 498A पूरी तरह लागू होगी.

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