Daya Nayak: दबंग एनकाउंटर स्पेशलिस्ट 'दया नायक' का महज 2 दिन का ACP बनकर खामोशी से यूं रिटायर हो जाना...! Inside Story

मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक ने 31 जुलाई 2025 को खामोशी से रिटायरमेंट ले लिया. वे 30 साल की सेवा के बाद महज़ दो दिन के लिए सहायक पुलिस आयुक्त बने. दया नायक ने 80 से ज़्यादा गैंगस्टरों का एनकाउंटर किया और अंडरवर्ल्ड में खौफ का नाम बने. बचपन में होटल में काम कर पढ़ाई की, फिर पुलिस सेवा में आए. भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझते हुए भी वे हमेशा कानून के साथ खड़े रहे.;

नाम ‘दया’ मगर देश-समाज और कानून के दुश्मन का 'दुश्मन नंबर-1'. वह अंडरवर्ल्ड डॉन नहीं न ही किसी गैंग या गैंगस्टर से कभी कोई निजी दोस्ती रही. फिर भी वह अंडरवर्ल्ड-डॉन-अपराधियों की ‘बस्तियों’ में 'अकाल-मौत' के खौफ का पहला नाम रहा. खाकी वर्दी की भीड़ में एकदम 'अलग-थलग' मगर बेहद चर्चित पुलिस अफसर. चर्चित दो कामों के लिए, एक तो मुंबई अंडरवर्ल्ड की चूलें हिलाने को और, दूसरा खुद भी गिरफ्तार होकर जेल में डाले जाने को लेकर.

जिक्र कर रहा हूं मुंबई (महाराष्ट्र)) पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक (Encounter Specialist Daya Nayak) का. जिक्र इसलिए क्योंकि अब वही कल के चर्चित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक खाकी की नौकरी में, हर सुख-दुख-शोहरत-बदनामी-अच्छा-बुरा देखने-भोगने के बाद, खामोशी के साथ महाराष्ट्र राज्य पुलिस से सहायक पुलिस आयुक्त यानी एसीपी के पद से दबे पांव रिटायर होकर घर जा चुके हैं. एक दिन का एसीपी यानी सहायक पुलिस आयुक्त बनकर.

मां ने चौका-बर्तन करके पाला

वही दया नायक जिनकी मां ने उन्हें दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करके पाला-पोसा. दया नायक की मां ने जो कष्ट बेटे के उज्जवल भविष्य को बनाने के लिए उठाए वे तो उठाए ही. दया नायक ने भी मुंबई के होटलों में वेटर का काम किया और जमीन पर ही सोकर दुश्वारियों के दिनों की अनगिनत रातें गुजारीं. वह 1990 का दौर था जिसके मध्य में पुलिस की भीड़ से अलग ऐसे दया नायक ‘पुलिस का अहम हिस्सा’ बन गए. जब दुनिया सन् 1996 के दिसंबर महीने की 31 तारीख को अलविदा और 1 जनवरी 1997 की रात का वेलकम करने में जुटी थी. माया नगरी बॉलीवुड का मुंबई शहर नए साल के आगाज की चकाचौंध और जश्न में मदहोश था.

पहली बार छोटा राजन के शूटरों का 'शिकार'

तभी मुंबई के वीवीआईपी जुहू थाने को सूचना मिलती है कि अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन गैंग के शूटर शहर में कहर बरपाने वाले हैं. थाने में जिस थानेदार को छोटा राजन गैंग के शूटर्स की मुखबरी मिली, वह यही तब मुंबई पुलिस में नए-नए भर्ती हुए दया नायक थे. खाकी की नौकरी में पहली बार उस रात छोटे राजन गैंग के शूटर्स से आमने-सामने का मुकाबला हुआ. अंडरवर्ल्ड के खतरनाक शूटर्स को सरेंडर की हर कोशिश जब नाकाम रही, तो दोनों तरफ से मन-भर कर गोलियां एक दूसरे के ऊपर झोंकी गईं. उस रात दया नायक की सरकारी पिस्टल से निकली गोलियों ने छोटा राजन गैंग के दो शूटर्स को ढेर कर डाला. उस एनकाउंटर से हासिल शाबासी ने दया नायक को तब भविष्य में देश का सबसे चर्चित 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' बनाने की बात पर मुहर लगा दी थी.

31 जुलाई 2025 को खामोशी से हुए रिटायर

तब से साल 2004 तक दया नायक के लोडेड सरकारी पिस्टल की नाल हमेशा (करीब 21 साल) समाज के दुश्मन गुंडों-बदमाशों और अंडरवर्ल्ड डॉन के सिर और सीने की तरफ ही खुली रही. पुलिसिया नौकरी में दया नायक ने जीवन का अंतिम सफल एनकाउंटर साल 2004 में मुंबई के मलाड में किया था. उसके बाद जब हालातों के हिल्ले लग चुकी पुलिसिया जिंदगी ने दया के हाथों में मौजूद सरकारी पिस्टल की नाल एक बार जब जमीन की ओर झुकाई. तो वह नाल उनके 31 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र पुलिस से रिटायरमेंट वाले दिन तक फिर कभी दुबारा, गुंडा बदमाशों के सिर और सीने की ओर न उठ सकी.

2004 तक 80 से ज्‍याद गैंगस्‍टरों का एनकाउंटर

हालांकि वक्त और विपरीत हालातों के हाथों मजबूर दया नायक ने साल 2004 तक मुंबई पुलिस की सरकारी पिस्टल से 80 से ज्यादा गैंगस्टर-डॉन और, उनके गुर्गों को कानूनन हमेशा-हमेशा के लिए 'एनकाउंटर्स' में शांत कर दिया था. गंभीर और विचारणीय यह है कि 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक के कुछ साल तक मुंबई और भारत में सिनेमा से लेकर सियासदानों की दुनिया तक. हर जगह चर्चित रहने वाले सबके लाडले दया नायक के बुरे दिन 2000 के दशक के मध्य में शुरू हो गए. इसे विधि का विधान ही कहेंगे कि जब दया के विपरीत वक्त की हवा ने बहना शुरू किया तो उनसे मुंबई पुलिस और उनके अपनों ने ही ‘कन्नी’ काटकर, उन्हें अहसास करा दिया कि इस मृत्युलोक में हर कोई ‘अच्छे वक्त’ का साथी होता है. बुरे वक्त में तो इंसान का साया भी साथ छोड़ जाता है. यह अलग बात है कि मायावी दुनिया में इस कड़वे सच को मगर हर इंसान अमूमन अपने बेहतर वक्त में याद रखना तकरीबन भूल ही जाता है.

जब आतंकियों ने दया नायक पर फेंका बम...

विनोद मटकर, रफीक डब्बावाला, तौफीक कालिया जैसे 80 से ज्यादा खूंखार बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर और, 250 से भी ज्यादा खूंखार अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले ऐसे दबंग दया नायक का जब खराब वक्त शुरू हुआ तो, उनके हाथ में मौजूद सरकारी पिस्टल की नाल भी समय की नजाकत को भांपकर खुद-ब-खुद ही जमीन की ओर झुक गई. हालांकि इस बीच एक बार मुंबई के दादर में जब दया नायक ने तीन आतंकवादियों को एनकाउंटर में ढेर किया था, तब दया खुद भी आतंकवादियों की ओर से बम से किए गए हमले में बुरी तरह से जख्मी हुए थे.

9 साल की उम्र में रेस्‍टोरेंट में मारते थे पोछा

कर्नाटक के मैंगलोर में जन्मे यह उन्हीं दया नायक के जीवन के खट्टे-मीठे किस्से हैं जिन्हें महज 9 साल की छोटी सी उम्र में ही, मुंबई के रेस्तरां में खाने की मेजों पर पोछा लगाना पड़ा था. करीब दो दशक पहले एक इंटरव्यू में दया नायक ने खुद बताया था कि साल 1979 में वह जब गांव छोड़कर मुंबई पहुंचे, तो वह महज सातवीं तक एक कन्नड़ स्कूल में पढ़े हुए थे. वह तो भला हो मुंबई के उस होटल मालिक का जिसके यहां दया नायक झाड़ू-पोंछा की नौकरी करने पहुंचे उसने, बचपन के दया के भीतर मौजूद काबिलियत को पहचान कर उन्हें स्कूल में दाखिला दिलवा दिया.

होटल में नौकरी कर पूरी की पढ़ाई

8-9 साल तक मुंबई के उसी होटल में नौकरी करके ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. फिर एक प्लंबर के संग सुपरवाइजर की नौकरी शुरू कर दी. तनखा थी 3000 रुपए महीना. महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस परीक्षा के जरिए राज्य पुलिस में दारोगा की नौकरी पाने तक... दया नायक ने बचपन में बेरोजगारी-बदहाली में साथ देने वाले उस होटल और उसके मालिक का साथ नहीं छोड़ा था. ताकि उनके ऊपर अहसान फरामोश होने की तोहमत होटल मालिक न लगा सकें.

'अंडरवर्ल्ड की बस्ती' में खौफ का पहला नाम रहे ऐसे दया नायक बेहद खामोशी के साथ 31 जुलाई 2025 को पुलिस की 30 साल की सेवा के बाद, रिटायर होकर दबे पांव अपने घर चले गए.

आखिर रिटायरमेंट से ठीक पहले क्‍यों बनाए गए एसीपी?

सोचिए इस कदर के काबिल और नामी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक को सीनियर इंस्पेक्टर से सहायक पुलिस आयुक्त यानी एसीपी भी बनाया गया तो, उनके रिटायरमेंट से महज 40-48 घंटे पहले. आखिर क्यों? इस सवाल का जवाब महाराष्ट्र पुलिस, वहां की पॉलिटिक्स और दया नायक से बेहतर भला कौन जान-समझ सकता है? यह बेहद खामोश रिटायरमेंट की घटना उन दबंग दया नायक का रिटायरमेंट तो नहीं लगती है, जिन दया नायक की सरकारी पिस्टल के आग उगलने की लपटें पूरे मुंबई अंडरवर्ल्ड को झुलसा डालती थीं, जिसकी पिस्टल की कानफोड़ू आवाज कहिए या धमाका या आवाज अंडरवर्ल्ड के तमाम खतरनाक डॉन के कानों को बहरा कर डालती थी. जिस दया नायक के बहादुरी के कामों पर मुंबई ने 'अब तक 56' जैसी चर्चित फिल्म बनाई हो. क्या इस कदर की खामोशी के साथ रिटायरमेंट से दो दिन पहले उन्हीं दया नायक को, सहायक पुलिस आयुक्त पद पर प्रमोट करके घर भेज दिये जाने की घटना आसानी से गले उतरती है. कदापि नहीं.

30 साल की नौकरी में किसी भी अंडरवर्ल्ड डॉन पर नहीं की दया

कहीं ऐसा तो नहीं कि रिटायरमेंट से महज दो दिन पहले ही दया नायक को प्रमोशन देकर सीनियर इंस्पेक्टर से एसीपी बनाए जाने की जड़ में, उनकी बदकिस्मती के उस बुरे दौर का दंश रहा हो जब साल 2006 में दया नायक के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने, आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगाए. उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया. जब कोई सबूत नहीं मिले तो वे जैसे-तैसे खुद की इज्जत बचा सके. बहरहाल ऐसे बिरले खाकी वर्दी वाले दया नायक का जिक्र जब जब महाराष्ट्र पुलिस की आने वाली पीढ़ियां करेंगी तो, वे इतिहास में दया नायक द्वारा किए गए गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के गुंडों द्वारा एक्टर सलमान खान के घर पर हुई गोलीबारी में दया नायक द्वारा की गई तफ्तीश, एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी हत्याकांड की जांच, अभिनेता सैफ अली खान के घर में संदिग्ध चोर की घुसपैठ के मामले की पड़ताल को भी जरूर पढ़ेंगीं. और मुंबई पुलिस की आने वाली पीढ़ियां पढ़ेंगी कि कालांतर में कोई दबंग दारोगा था दया नायक, जिसने कभी भी 30 साल की मुंबई पुलिस की नौकरी में कभी भी किसी भी अंडरवर्ल्ड डॉन और बदमाशों पर ‘दया’ नहीं खाई.

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