Begin typing your search...

Arun Gawli: अंडरवर्ल्ड की दुनिया में ‘दोस्त’ ही जब ‘दुश्मन’ बना तो गली के डरपोक गुंडे दाऊद इब्राहिम को देश छोड़कर भागना पड़ा था

मुंबई अंडरवर्ल्ड के दो दिग्गज, अरुण गवली और दाऊद इब्राहिम, कभी दोस्त थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी दोस्ती खूनी दुश्मनी में बदल गई. गवली के बड़े भाई पर दाऊद का शक और उसकी हत्या ने रिश्ते को तोड़ दिया. 1990 के दशक में गैंगवार और 1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद गवली ने दाऊद को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया. शुरुआती दिनों में दोनों ने मुंबई की गलियों में अपराध की नींव रखी थी, लेकिन सत्ता और विश्वासघात ने उन्हें विरोधी बना दिया.

Arun Gawli: अंडरवर्ल्ड की दुनिया में ‘दोस्त’ ही जब ‘दुश्मन’ बना तो गली के डरपोक गुंडे दाऊद इब्राहिम को देश छोड़कर भागना पड़ा था
X
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Published on: 5 Sept 2025 12:42 PM

अंडरवर्ल्ड (Underworld) में दिलचस्पी रखने वालों को अब तक यही पता है कि भारत और अमेरिका के मोस्ट वॉन्टेड, दाऊद इब्राहिम से बड़ा हाल-फिलहाल दूसरा कोई आतंकवादी पैदा नहीं हुआ है. दूसरे, दुनिया यही जानती है कि1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद भारतीय एजेंसियों के शिकंजे में फंसने के डर से दाऊद इब्राहिम देश छोड़कर भाग गया. नहीं ऐसा नहीं है. यह सब मिथ यानी सरासर हवा में उड़ाई गई ‘आसमानी’ या कहूं कि ‘बे-सिर-पैर’ की कहानियां’ हैं.

ऐसे में ‘स्टेट मिरर हिंदी’ के पाठकों के दिमाग में सवाल कौंधना लाजिमी है कि अगर यह सब झूठ है तब फिर ‘सच’ क्या है? इसी सवाल का जवाब देने के लिए हमारे एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने अतीत में कई बार बेबाक-बात की 1976 बैच के पूर्व आईपीएस दिल्ली के रिटायर्ड पुलिस कमिश्नर और सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक नीरज कुमार से. जिन्होंने अपनी किताब ‘डायल डी फॉर डॉन’ में भी मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में अरुण गवली और दाऊद इब्राहिम की यादगार 'दोस्ती' और खतरनाक-खूनी 'दुश्मनी' का जिक्र किया था. नीरज कुमार भारत के वही आईपीएस अधिकारी हैं, दिल्ली पुलिस में नौकरी करने के दौरान जिनके सामने टेलीफोन पर दाऊद इब्राहिम सा मोस्ट-वॉन्टेड आंतकवादी, रहम की ‘भीख’ या कहिए ‘पनाह’ मांगते हुए 'गिड़गिड़ाया' और 'मिमियाया' था, “साहब अब तो बहुत हो गया है. काहे को पीछे पड़े हो. अब तो मेरा पीछा छोड़ दो.”

अपनी शर्तों पर भारत लौटना चाहता था दाऊद

कहते तो यह भी हैं कि दाऊद इब्राहिम का नीरज कुमार के पास यह संदेश भी आया था कि वह वापिस भारत आने को राजी है मगर, अपनी शर्तों पर. शर्तें भी ऐसी बेतुकी कि जिन्हें मान लेने की कल्पना करना भी भारत के साथ गद्दारी होता. सीबीआई के पूर्व दबंग अफसर और 1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट की जांच के लिए भारत सरकार द्वारा गठित की गई सीबीआई की स्पेशल टास्क फोर्स के खास पड़ताली अफसर रहे नीरज कुमार ने उसकी मांगें स्वीकार करने इनकार कर दिया. तो दाऊद के भारत वापिसी की उम्मीदें पनपने से पहले ही ज़मींदोज हो गईं.

अपराध की दुनिया में एक साथ उतरे थे गवली और दाऊद

अंडरवर्ल्ड की दुनिया से जुड़े और छोटा राजन-दाऊद इब्राहिम व 17 जुलाई 1955 को कोपरगांव, अहमदनगर जिला (महाराष्ट्र) में जन्मे, अरुण गुलाब गवली उर्फ अरुण गुलाब अहीर उर्फ अरुण गवली के कभी राइटहैंड रहने के बाद उनसे दूर हो चुके, अब अपनी जिंदगी की चाह में यहां-वहां छिपे फिर रहे कुछ पूर्व बदमाशों की मानें तो, “अरुण गवली और दाऊद इब्राहिम ने अपराध की दुनिया में एक समय में साथ-साथ ही कदम रखा था. शुरुआती दिनों में दोनों ही मुंबई की मलिन-बस्तियों यानी गली के गुंडों के रूप में बदनाम हुए. धीरे-धीरे जब आमजन में इनकी बदमाशी की धमक जमने लगी तो लोग अपने छोटे-मोटे विवाद सुलझवाने के लिए, इन दोनों की देहरियों पर पहुंचने लगे. यहां तक तो कोई खास बात नहीं थी. दोनों ही अपने अपने इलाके में हराम का खाने-कमाने की काली-कारस्तानियों में जुट गए थे. बाद में जैसे ही दाऊद इब्राहिम को लगा कि अरुण गवली आने वाले वक्त में उसकी जरायम की दुनिया की जड़ें खोद सकता है. तो इस आशंका से भयभीत दाऊद इब्राहिम ने अरुण गवली की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. ताकि दाऊद इब्राहिम की ‘गुंडई’ के रास्ते का कोई ‘रोड़ा’ बाकी ही न बचे. छोटा राजन (अब दाऊद इब्राहिम का दुश्मन नंबर वन और कई साल से तिहाड़ जेल की काल कोठरी में कैद) पहले से ही दाऊद का राइटहैंड था. यह बात है 1980 के दशक के मध्य की.

गुंडागर्दी से पहले भाई के साथ मजदूरी करता था गवली

यहां जिक्र करना जरूरी है कि अंडरवर्ल्ड और दाऊद इब्राहिम की दुनिया में पांव रखने से पहले अरुण गवली और उसका भाई पप्पा, चिंचपोकली में मौजूद सिम्प्लेक्स मिल में मजदूरी करते थे. बाद में उन्होंने विक्रोली में स्थित गोदरेज एंड बॉयस कंपनी में छोटी-मोटी नौकरी भी की. चूंकि कंपनी में मेहनत बहुत और दाम कम था. सो दोनों भाई रातों रात शॉर्टकट से धन्नासेठ बनने के लिए गैंगस्टर पारसनाथ पांडे के जुए के अड्डे पर पहुंच कर वहां ‘जम’ गए. अरुण गवली ने कालांतर में जिस जुबैदा मुजावर नाम की लड़की से शादी की वही बाद में नाम बदलकर आज आशा गवली बन चुकी है. उसके खिलाफ भी तमाम मुकदमे दर्ज हैं. आशा गवली महाराष्ट्र विधानसभा की विधायक भी बनीं. गवली दंपति के पांच संतान दो बेटे और तीन बेटियां हैं.

जब ‘गुंडा-गवली ब्रदर्स’ पर पड़ी गैंगस्टर रामा नाइक और बाबू रेशिम की नजर

बहरहाल, मुंबई की गलियों के ‘गुंडा-गवली ब्रदर्स’ पारसनाथ पांडे के भायखला में मौजूद मटका-अड्डा (विशेष किस्म का जुआ) पर दादागिरी करने वाले गवली ब्रदर्स के ऊपर साल 1977 के करीब तब के महाराष्ट्र के इकलौते गैंगस्टर रामा नाइक और बाबू रेशिम की नजर पड़ी, तो उन्होंने दोनों भाइयों को खुद ही गैंग में शामिल होने का प्रस्ताव दे दिया. “भायखला कंपनी” के नाम से उस जमाने में संचालित रामा नाइक और बाबू रेशिम गैंग की उन दिनों मुंबई के सात-रास्ता, लाल-बाग, मझगांव, भायखला इलाके में तूती बोलती थी. तब तक दाऊद इब्राहिम का कहीं कोई नाम-ओ-निशान नहीं था. यह वही भायखला कंपनी या गैंग थी जिसमें तब मुंबई अपराध जगत के बड़े नाम या कहिए गुंडा-शूटर्स गणेश भोसले, सदा पावले, किरण वालावलकर, चंद्रशेखर मिराशी, छोटा बाबू उर्फ अशोक चौधरी शामिल थे. इन सबने मिलकर अपने प्रतिद्वंदी गैंगस्टर्स कुंदन दुबे, मोहन सरमालकर और कोबरा गैंग के लीडर शशि रसम जैसे कुख्यात गैंगस्टर्स को सबसे पहले रास्ते से ‘साफ’ किया था.

गवली के भाई पर दाऊद को था शक

मुंबई अंडरवर्ल्ड के जानकारों के मुताबिक करीब 4-5 साल तक मुंबई के गली के गुंडों (दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली और छोटा राजन) की ‘तिकड़ी’ ने अपराध की गलियों में खूब धमा-चौकड़ी मचाई. अब तक यह तीनों अपनी छिछोरी हरकतों के चलते मुंबई पुलिस की नजरों में भी धीरे-धीरे ही सही मगर आने लगे थे. जब यह तीनों पुलिस की नजरों में चढ़ने लगे तो इन्हें भी ‘पुलिस’ को कैसे सेट करके रखना है, इसकी अकल आने लगी. कुछ साल में तीनों ने मुंबई पुलिस में गहरी पैठ बना ली. 1990 के दशक में एक दिन दाऊद इब्राहिम को शक हुआ कि उसके गैंग में शामिल अरुण गवली का बड़ा भाई किशोर गवली उर्फ पप्पा, मुंबई पुलिस से उसके गैंग की गतिविधियों की मुखबरी करने में जुटा है. दाऊद द्वारा मंगवाई गईं ड्रग और हथियारों की कुछ कीमती खेपें जब मुंबई में जब्त कर ली गईं, तब तो दाऊद का अरुण गवली के भाई के ऊपर शक और भी पुख्ता हो गया.

एनकाउंटर में रामा नाइक हुआ ढेर तो गवली ने किया गैंग पर कब्‍जा

अपराध जगत के नए-नए गुंडे बने मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम को अपना गैंग मजबूत करने के लिए अरुण गवली और छोटा राजन दोनों की ही बराबर की जरूरत थी. वह किसी भी कीमत पर अरुण गवली को गैंग से अलग करना नहीं चाहता था. हर वक्त मगर आंख में चुभने वाला अरुण गवली का बड़ा भाई और गैंग मेंबर किशोर गवली उर्फ पप्पा से दाऊद मगर, जल्दी से जल्दी दूर होने को बेताब था. सो दाऊद इब्राहिम ने अरुण गवली को इस बात की कानो-कान भनक नहीं लगने दी कि उसका बड़ा भाई पप्पा, दाऊद गैंग की मुखबरी मुंबई पुलिस से करता है. यह बात है 1970 और 1980 के दशक की. यहां इस बात का भी जिक्र करना जरूरी है कि दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली, उसका बड़ा भाई किशोर गवली उर्फ पप्पा और छोटा राजन अपराध जगत के दलदल में सबसे पहले, 1970 के दशक में बेहद कम उम्र में ‘भायखला गुंडा कंपनी’ में भर्ती हुए थे. जिसका तब कुख्यात गैंगस्टर रामा उर्फ राम नाइक और बाबू रेशिम उर्फ बाबू राशम सर्वे-सर्वा हुआ करते थे. इस गुंडा कंपनी का मुंबई के भायखला और परेल इलाकों में आतंक था. 1988 में गैंग लीडर रामा नाइक को मुंबई पुलिस ने एनकाउंटर में गोलियों से भूनकर ढेर कर दिया. तो उस गैंग या कहिए गुंडा कंपनी की कमान अरुण गवली व उसके भाई पप्पा ने अपने हाथ में ले ली. और दोनों गवली बदमाश ब्रदर ने गैंग-गुंडा कंपनी का मुख्यालय बनाया 'दगड़ी-चाल' मलिन-स्लम बस्ती को.

दाऊद ने करवाया गवली के भाई का मर्डर

चूंकि अरुण गवली तब तक दाऊद का राइटहैंड-जिगरी-विश्वासपात्र दोस्त था. साथ ही गैंग के हर काम की सफलता के लिए जिस तरह के तेज दिमाग का इस्तेमाल अरुण गवली करता था, वैसी तीव्र बुद्धि तब छोटा राजन में भी नहीं थी. अब दाऊद के सामने समस्या यह थी कि वह अपने ऐसे विश्वास-पात्र गैंगस्टर अरुण गवली को खोना भी नहीं चाहता था, मगर अरुण गवली को भनक लगाए बिना वह उसके बड़े भाई (जिस पर दाऊद को पक्का शक हो चुका था कि वह गैंग की मुखबरी मुंबई पुलिस से करता है) को निपटाना भी चाहता था. कुछ इस तरह से ताकि सांप (अरुण गवली का बड़ा भाई और दाऊद गैंग की मुखबरी पुलिस से करने वाला) भी मर जाए और लाठी भी टूटे न. एक दिन मौका पाकर दाऊद इब्राहिम के शूटर्स ने बेहद गुपचुप तरीके से अरुण गवली के भाई को कत्ल कर डाला. यह बात जैसे ही बाद में अरुण गवली को पता चली तो उसका खून खौल उठा. चूंकि तब वह दाऊद और छोटा राजन से अलग होने की कुव्वत नहीं रखता था. इसलिए भाई के कत्ल का खून पीकर खामोश रह गया. हां, दाऊद इब्राहिम उसी दिन से उसका “दुश्मन” नंबर-1 जरूर बन चुका था. मगर इसकी भनक उसने दाऊद इब्राहिम को नहीं लगने दी.

दाऊद इब्राहिम-अरुण गवली हुए एक दूसरे के खून के प्यासे

दाऊद के इशारे पर उसके गुंडों द्वारा किए गए भाई के कत्ल से बौखलाए बैठे अरुण गवली को साल 1993 में दाऊद इब्राहिम से आगे-पीछे का हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया. तब जब दाऊद ने 1993 में मुंबई में सीरियल बम धमाकों को अंजाम देकर सैकड़ों बेकसूर हिंदुओं को कत्ल करवा डाला. तब अरुण गवली को यह भी लगा कि दाऊद इब्राहिम एक गैंगस्टर ही नहीं बल्कि देशद्रोही और हिंदुओं का दुश्मन नंबर वन भी है. लिहाजा जैसे ही दाऊद इब्राहिम को भनक लगी कि अरुण गवली उससे खार खाए बैठा है. तो वह (दाऊद) समझ गया कि अब उसका भारत में जिंदा रहना मुश्किल है. और अरुण गवली के हाथों अपनी अकाल-मौत की आशंका से कांपा दाऊद इब्राहिम विदेश में जाकर छिप गया. मतलब, शुरूआती दौर में जो दाऊद इब्राहिम-अरुण गवली ‘हम-प्याला’ थे वे ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे.

1990 के दशक में छिड़ गई गैंगवार

इन तमाम तथ्यों की पुष्टि बीते कल में कई बार दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार भी स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से कर चुके हैं. उनके मुताबिक, “अगर मुंबई में गुंडा कंपनियों का अंडरवर्ल्ड में बदलने का चलन 1980 के दशक में शुरू हुआ तो, गैंगवार का जन्म भी 1980 के मध्य से ही शुरू हो चुका था. जोकि 1990 आते-आते चरम पर पहुंच चुका था. कई छोटे-छोटे गैंग बन चुके थे. इन छोटे गैंग्स से बड़े-बड़े गैंगस्टर्स अपने काम निकलवाते थे. दुश्मनी शुरू हुई तो अरुण गवली और दाऊद इब्राहिम गैंग के बीच छिड़ी गैंगवार में दोनों तरफ के कई कुख्यात शार्प-शूटर मार डाले गए.”

सीबीआई और मुंबई पुलिस की फाइलों में दर्ज इतिहास के मुताबिक “भायखला कंपनी को 1981 में सबसे बड़ा झटका तब लगा जब दाऊद इब्राहिम के बड़े भाई साबिर को पठान गैंग के शार्प शूटर्स अमीरजादा, आलमज़ेब और समद खान ने कत्ल कर डाला. बदला लेने के लिए दाऊद ने रामा नाइक गैंग के मुखिया (यही गैंग रामा की मौत के बाद अरुण गवली और उसके भाई ने हथिया लिया) से मदद मांगी. दाऊद के कहने पर बाद में रामा नाइक, अरुण गवली की भायखला कंपनी ने 1984 में करीम लाला के भतीजे व पठान गैंग के शूटर वारिस समद खान को मार डाला.”

26 जुलाई 1992 को जब मुंबई के नागपाड़ा इलाके में दाऊद इब्राहिम के बहनोई इस्माइल पारकर को अरुण गवली गैंग के शूटर्स द्वारा गोलियों से भून डाला गया. तब दाऊद इब्राहिम का खून खौल उठा. बौखलाए दाऊद इब्राहिम ने अपने शूर्टस के जरिए बहनोई की हत्या में शामिल अरुण गवली गैंग के चार शूटर्स में से एक शैलेश हलदनकर को मुंबई के जे.जे. हास्पिटल के भीतर कत्ल करवा डाला. 12 सितंबर 1992 को अस्पताल के भीतर घटी उस घटना में दाऊद्र इब्राहिम के बहनोई का कातिल और गवली गैंग का गजब का शार्प शूटर शैलेष हलदनकर तो मारा ही गया. दाऊद गैंग के एके-47 से लैस मेन शूटर्स सुभाष ठाकुर और श्यामकिशोर गरिकपट्टी द्वारा अस्पताल के भीतर घुसकर किए गए उस हमले में दो पुलिसकर्मी भी भून डाले थे. कई लोग जख्मी हुए थे. मतलब साफ है कि कालांतर में जो दाऊद इब्राहिम और अरुण गवली अपराध की जिस काली-दुनिया में दूसरों का नुकसान करने की मैली मंशा से उतरे थे. उन दोनों को उनकी उसी मैली मंशा ने एक दूसरे से न केवल अलग किया. अपितु एक दूसरे के खून का प्यासा तक बना डाला.

स्टेट मिरर स्पेशलcrime
अगला लेख