फर्श पर सोते यात्री, हाथों में सूटकेस और आंखों में गुस्सा... आखिर कैसे ध्वस्त हुई IndiGo की व्यवस्था? CEO की कुर्सी भी खतरे में
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो इस समय अपने इतिहास के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है. बीते एक हफ्ते में 2,000 से ज्यादा उड़ानों के रद्द होने से देशभर के एयरपोर्ट्स पर अभूतपूर्व अव्यवस्था फैल गई. यात्रियों को रातें तक एयरपोर्ट पर गुजारनी पड़ीं, टिकटों के दाम 60,000 रुपये तक पहुंच गए और सामान्य विमानन व्यवस्था चरमरा गई. DGCA ने इंडिगो के CEO पीटर एल्बर्स को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और मंत्रालय के अंदर उनकी कुर्सी पर खतरे की चर्चा तेज है.;
IndiGo flight cancellations news: देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइन इंडिगो के खिलाफ अब केंद्र सरकार पूरी तरह एक्शन मोड में आ चुकी है. एयरलाइन के CEO पीटर एल्बर्स को कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के भीतर यह चर्चा भी तेज हो गई है कि उनकी कुर्सी खतरे में पड़ सकती है. देशभर के एयरपोर्ट्स पर कई दिनों से जारी अव्यवस्था के बाद अब सरकार का संदेश साफ है- इस संकट को अब जड़ से ठीक किया जाएगा.
एयरपोर्ट्स पर अराजकता का मंजर: फर्श पर सोते बुजुर्ग, सूटकेस पर पड़े बच्चे
यह संकट सिर्फ आंकड़ों का नहीं, बल्कि लोगों की आंखों के सामने बिखरती व्यवस्था की तस्वीर बन चुका है. देशभर के एयरपोर्ट्स पर दृश्य बेहद भयावह रहे;
- टर्मिनल यात्रियों से ठसाठस भरे रहे
- फ्लाइट डिस्प्ले बोर्ड लाल रंग में चमकते ‘Cancelled’ से भरे रहे
- बच्चे सूटकेस पर लेटे रहे
- बुजुर्ग फर्श पर सोते दिखे
- सुरक्षा कर्मी भीड़ को संभालने में नाकाम रहे
- हजारों बैग सिस्टम में गुम हो गए
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यह सब 2025 की भारतीय एविएशन व्यवस्था की तस्वीर है, जो न मौसम, न युद्ध, न प्राकृतिक आपदा, बल्कि एक निजी एयरलाइन की नाकामी से घुटनों पर आ गई.
2,000 से ज्यादा उड़ानें रद्द, पूरे देश में उड़ानें ठप
इंडिगो, जो भारत की 60% घरेलू उड़ानों का संचालन करती है, उसने इस हफ्ते 2,000 से ज्यादा फ्लाइट्स रद्द कर दीं. दिल्ली से चेन्नई, बेंगलुरु से श्रीनगर तक ऐसा एयर ट्रैफिक ठहराव पहले शायद ही कभी देखा गया हो. अब देश एक ही सवाल पूछ रहा है कि इतनी बड़ी एयरलाइन इतनी बुरी तरह कैसे फेल हो गई? और इससे भी बड़ा सवाल यह है कि सरकार, रेगुलेटर और एयरलाइन नेतृत्व इस तबाही को रोक क्यों नहीं पाए?
संकट की जड़: 2024 में बदले गए FDTL नियम
इस तबाही की जड़ें 2024 में जाकर मिलती हैं, जब सरकार ने Flight Duty Time Limitation (FDTL) नियमों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप बदलने का फैसला किया. इन नए नियमों के तहत:
- पायलट्स के रेस्ट समय को बढ़ाया गया
- नाइट लैंडिंग पर सख्ती
- लगातार रात की ड्यूटी की सीमा तय
- 'नाइट' की परिभाषा का दायरा बढ़ाया गया
दिल्ली हाई कोर्ट ने अप्रैल 2025 में इन नियमों को वैध ठहराया. इन्हें दो चरणों, 1 जुलाई और 1 नवंबर 2025, में लागू किया गया, यानी एयरलाइनों को लगभग दो साल का तैयारी समय मिला.
बाकी सबने तैयारी की… लेकिन इंडिगो ने नहीं
एयर इंडिया तैयार थी, अकासा और स्पाइसजेट तैयार थीं, छोटे ऑपरेटर्स भी नियमों के अनुरूप ढल गए, लेकिन इंडिगो, जिसकी सबसे ज्यादा नाइट फ्लाइट्स, रेड-आई रूट्स और सबसे टाइट शेड्यूल था, ने तैयारी नहीं की... और इसी लापरवाही ने इस हफ्ते पूरे सिस्टम को विस्फोट की तरह उड़ा दिया.
CEO का बयान बना नया विवाद
5 दिसंबर की देर रात, जब पूरा देश पहले ही संकट में डूब चुका था, तब CEO पीटर एल्बर्स का बयान सामने आया, जिसने एविएशन इंडस्ट्री को और चौंका दिया. उन्होंने कहा, “हमने क्रू की जरूरतों का गलत आकलन किया… पिछले कुछ दिनों में जो फैसले लिए गए, वे बेकार साबित हुए… अब हम पूरा सिस्टम रीबूट कर रहे हैं.” 2,300 रोजाना उड़ानें चलाने वाली कंपनी का CEO अगर ‘फ्यूटाइल’ और ‘रीबूट’ जैसे शब्द बोले, यह खुद में असफलता की स्वीकारोक्ति है.
DGCA का आरोप: चेतावनियां नजरअंदाज, प्लानिंग पूरी तरह फेल
DGCA के शो-कॉज नोटिस में एयरलाइन पर बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं:
- बार-बार के निर्देशों को नजरअंदाज करना
- क्रू उपलब्धता का गलत अनुमान
- रोस्टर का सही री-अलाइनमेंट नहीं
- ट्रेनिंग में देरी
- प्लानिंग व निगरानी में भारी खामियां
सबसे विवादास्पद फैसला: सुरक्षा नियमों में ढील सिर्फ इंडिगो के लिए
संकट अपने चरम पर था. एयरपोर्ट्स पर जगह खत्म हो गई. सरकार ने हाई-लेवल जांच शुरू की, लेकिन तभी DGCA ने एक अभूतपूर्व फैसला लिया- FDTL नियम अस्थायी रूप से ढीले कर दिए गए... सिर्फ IndiGo के A320 फ्लीट के लिए... नाइट पीरियड छोटा कर दिया गया, नाइट लैंडिंग लिमिट बढ़ाई और पायलट्स की साप्ताहिक छुट्टी की व्याख्या बदल दी... यानी जिस सुरक्षा नियम के लिए दो साल की मेहनत लगी, उसे एक निजी एयरलाइन को बचाने के लिए कमजोर कर दिया गया.
पायलट संगठनों में भारी गुस्सा
पायलट संगठनों में इसे लेकर भारी गुस्सा देखने को मिला. उन्होंने इसे खतरनाक मिसाल बताया और आरोप लगाया कि निजी एयरलाइन की गलती की कीमत अब यात्रियों की सुरक्षा से चुकाई जा रही है.
साजिश या संयोग? इंडस्ट्री में उठ रहे गंभीर सवाल
एविएशन सूत्रों का कहना है कि नए नियम लागू होने के ठीक 5 हफ्ते बाद इंडिगो का अचानक ढहना कई सवाल खड़े करता है.
- क्या यह सच में ऑपरेशनल फेल्योर था?
- या नियमों को कमजोर करवाने की रणनीति?
- क्या संकट को जानबूझकर इतना बड़ा बनने दिया गया?
इंडिगो गिरा, किराया आसमान छूने लगा
इंडिगो के ठप पड़ते ही किराया आसमान छूने लगे. दिल्ली–मुंबई का टिकट ₹50,000 पार हो गया, जबकि दिल्ली–बेंगलुरु का टिकट ₹55,000 से ज्यादा में मिल रहा था. वहीं, दिल्ली–गोवा की फ्लाइट का किराया तो ₹60,000 से भी ज्यादा रहा. एक एयरलाइन गिरी, लेकिन कीमत पूरे देश ने चुकाई. सरकार ने शनिवार (6 दिसंबर) को हस्तक्षेप कर फेयर कैप लगाया.
रिफंड, होटल, खाना… लेकिन भरोसा कौन लौटाएगा?
इंडिगो ने अब ऐलान किया है:
- फुल रिफंड
- होटल
- खाना
- वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट
- कैंसलेशन-रीशेड्यूल फीस पूरी तरह माफ
लेकिन यह भी सच है कि रिफंड छुट्टियां वापस नहीं ला सकता. मिस्ड वेडिंग, कैंसल सर्जरी, बिजनेस लॉस- ये सब कभी वापस नहीं मिलते.
असली सच्चाई: इंडिगो के पास पर्याप्त प्रशिक्षित क्रू ही नहीं था
अब जो सच सामने आया है, वह पायलट महीनों से कह रहे थे, इंडिगो ने नेटवर्क तो आक्रामक रूप से बढ़ाया, लेकिन क्रू नहीं बढ़ाया. पूरा ऑपरेशन था:
- अधिकतम उड़ान
- अधिकतम इस्तेमाल
- न्यूनतम बैकअप
एक छोटी सी गड़बड़ी, बीमारी, मौसम, नियम, और पूरा सिस्टम ढह गया... और वही हुआ.
यह सिर्फ इंडिगो की कहानी नहीं, यह सिस्टम की चेतावनी है
यह संकट सिर्फ एक एयरलाइन का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम का आईना है कि तबाही तय होती है;
- जब एक कंपनी Too Big To Fail बन जाती है
- जब रेगुलेटर नियम मोड़ देता है
- जब सुरक्षा समझौते का विषय बन जाती है
- जब देश की एविएशन व्यवस्था एक ही स्तंभ पर टिकी हो
इंडिगो का दावा: 15 दिसंबर तक सब सामान्य
इंडिगो कहती है कि 15 दिसंबर तक ऑपरेशन सामान्य हो जाएगा, लेकिन भरोसा वापस आने में वक्त लगेगा. अगर एयरलाइन, उसका नेतृत्व और रेगुलेटर, तीनों से जवाबदेही तय नहीं हुई, तो अगला संकट और भी खतरनाक होगा. क्योंकि यह सिर्फ ऑपरेशनल फेल्योर नहीं… यह एक चेतावनी है कि बिना प्लानिंग का विस्तार खतरनाक है कि डॉमिनेंस बिना जिम्मेदारी के विनाशकारी होता है... और कि देश की एविएशन व्यवस्था किसी एक कंपनी पर नहीं टिकी रह सकती... खासकर तब, जब वही स्तंभ अब दरकने लगा हो.