इजरायल-ईरान जंग न बन जाए एटमी बर्बादी की वजह! दुनिया को सता रहा Chernobyl या Fukushima जैसी तबाही का डर
इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते सैन्य तनाव ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी है, खासकर तब जब इज़राइल ने ईरान के परमाणु संवर्धन स्थलों पर मिसाइल हमले किए हैं. नैतांज, इस्फहान और फोर्डो जैसे ठिकानों पर हमलों के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय को डर सता रहा है कि कहीं यह संघर्ष चेर्नोबिल (1986) या फुकुशिमा (2011) जैसी परमाणु तबाही में न बदल जाए. हालांकि अभी तक कोई रिएक्टर नहीं टूटा है, लेकिन रेडियोधर्मी रिसाव और सुरक्षा तंत्र के फेल होने की आशंका गंभीर है.a अगर युद्ध तेज हुआ, तो इसका असर सिर्फ मिडिल ईस्ट नहीं, पूरी दुनिया झेलेगी.

पिछले कुछ दिनों में इज़राइल ने ईरान के परमाणु इंफ्रास्ट्रक्चर पर सर्जिकल हमला किया है. नैतांज, इस्फहान और फोर्डो जैसे संवेदनशील यूरेनियम संवर्धन केंद्र मिसाइलों की चपेट में आ चुके हैं. ये बिजलीघर नहीं, बल्कि वो स्थान हैं जहां यूरेनियम को उच्च स्तर तक संवर्धित किया जाता है. युद्ध के लिए नहीं, पर जंग की आहट इन दीवारों से टकरा चुकी है. इन हमलों ने एक खौफनाक सवाल को जन्म दिया है. क्या अगला मिडिल ईस्ट संकट चेर्नोबिल जैसी विकिरण त्रासदी में बदल सकता है? और क्या यह हमला सिर्फ टारगेटेड सैन्य कार्रवाई है या किसी बड़े परमाणु दुर्घटना का संकेत?
क्या बचा है अब तक सुरक्षित?
ईरान का बुशेहर न्यूक्लियर रिएक्टर और तेहरान स्थित अनुसंधान रिएक्टर इस हमले से अछूते हैं. ये अंतर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि परमाणु रिएक्टर संरचनात्मक रूप से बेहद नाजुक होते हैं. यदि इन पर सीधा हमला हो जाए, तो कंटेनमेंट स्ट्रक्चर टूट सकता है, कूलिंग सिस्टम फेल हो सकता है और फ्यूल पूल को नुकसान पहुंचने पर कोर मेल्टडाउन जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है. फुकुशिमा की त्रासदी आज भी मानवता के जेहन में ताजा है. जहां रेडिएशन लीक ने जमीन, पानी और लोगों की जिंदगी को पीढ़ियों तक प्रभावित किया था. फिलहाल, इस तरह की कोई स्थिति सामने नहीं आई है.
असली निशाने क्या थे?
इस बार हमला परमाणु हथियारों के भंडारगृहों पर नहीं, बल्कि संवर्धन केंद्रों पर हुआ. फोर्डो, नैतांज और इस्फहान में सेंट्रीफ्यूज लगे हैं, जहां यूरेनियम-235 और यूरेनियम-238 को एक खास स्तर तक संवर्धित किया जाता है. अभी तक यह प्रक्रिया विस्फोट की नहीं, बल्कि निर्माण की है और यही रेखा दोनों के बीच का बड़ा फर्क बनाती है.
हालांकि, इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने पुष्टि की है कि सेंट्रीफ्यूज को नुकसान पहुंचा है और इनसाइड प्लांट के भीतर रासायनिक और विकिरण संबंधी रिसाव की संभावना बनी हुई है. बाहरी रेडिएशन फिलहाल स्थिर है, लेकिन अगर कंटेनमेंट फेल होता है तो स्थानीय स्तर पर तबाही मच सकती है.
सेहत और पर्यावरण पर पड़ सकता है असर
यदि विकिरण लीक हुआ तो यह केवल तकनीकी नहीं, मानवीय त्रासदी भी बन सकता है. इसकी वजह से उल्टी, त्वचा जलना, कैंसर और दीर्घकालिक जैविक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं. इसके साथ ही आस-पास की जमीन और जलस्रोत भी प्रदूषित हो सकते हैं, जिसका असर पीढ़ियों तक रहेगा. यह पहली बार नहीं है जब इज़राइल ने क्षेत्रीय देशों के परमाणु कार्यक्रमों को निशाना बनाया हो. 1981 में इराक और 2007 में सीरिया के रिएक्टरों पर हुए हमलों की तरह इस बार भी इज़राइल ने ‘प्री-एम्पटिव स्ट्राइक’ की रणनीति अपनाई है.
मगर इस बार ईरान के ठिकाने कहीं ज्यादा पुराने, मजबूत और गहरे हैं. खासकर फोर्डो, जो एक पहाड़ के नीचे स्थित है. हमले की वजह एक हालिया IAEA रिपोर्ट रही, जिसमें तीन साइट्स पर ईरान की गतिविधियों को छिपाने का खुलासा हुआ था. जो पिछले दो दशकों में पहली गंभीर चेतावनी मानी जा रही है.
आगे क्या हो सकता है?
अभी तक स्थिति नियंत्रण में है. ईरान ने परमाणु हथियार विकसित नहीं किए हैं, और इन संवर्धन स्थलों पर किए गए पारंपरिक हमले किसी न्यूक्लियर विस्फोट को जन्म नहीं दे सकते. चेर्नोबिल जैसे दृश्य अभी दूर हैं. लेकिन यह भ्रम अब टूट चुका है कि परमाणु संयंत्र युद्ध से सुरक्षित रहते हैं. यदि हमले जारी रहे, तो सुरक्षा तंत्र कमजोर पड़ सकते हैं और तब रेडिएशन का असली खतरा सामने आएगा.
चेर्नोबिल (Chernobyl) के बारे में ..
26 अप्रैल 1986 को तत्कालीन सोवियत संघ (अब यूक्रेन) के चेर्नोबिल में स्थित न्यूक्लियर पावर प्लांट के रिएक्टर नंबर 4 में सेफ्टी टेस्ट के दौरान जबरदस्त विस्फोट हुआ, इस हादसे में रेडियोएक्टिव पदार्थ हवा में फैल गया, जिससे पूरे यूरोप में विकिरण का खतरा मंडराने लगा. नजदीकी शहर प्रिप्यात को तुरंत खाली कराया गया. इस त्रासदी में 30 से अधिक लोग तत्काल मारे गए, लेकिन लाखों लोग विकिरण की चपेट में आकर कैंसर और अन्य बीमारियों से ग्रसित हुए. चेर्नोबिल आज भी एक "रेड ज़ोन" है, जहां इंसानों का जाना प्रतिबंधित है.
फुकुशिमा आपदा क्या?
11 मार्च 2011 को जापान के फुकुशिमा में एक भीषण भूकंप और उसके बाद आई सुनामी ने तबाही मचा दी. इस प्राकृतिक आपदा से फुकुशिमा डाइइची न्यूक्लियर पावर प्लांट का कूलिंग सिस्टम फेल हो गया, जिससे तीन रिएक्टरों में मेल्टडाउन हुआ और भारी मात्रा में रेडियोएक्टिव लीक हो गया. इस विकिरण खतरे के चलते सैकड़ों किलोमीटर का इलाका खाली कराना पड़ा और लाखों लोग विस्थापित हो गए. समुद्र और आसपास की भूमि लंबे समय तक रेडिएशन से दूषित रही. यह हादसा मानव और पर्यावरण दोनों के लिए गहरा संकट लेकर आया.