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IND Vs US: ट्रंप बार-बार दे रहे टैरिफ की धमकी, लेकिन भारत पर क्‍यों नहीं हो रहा असर?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत को टैरिफ की धमकी दी, लेकिन भारत ने सख्ती से जवाब देते हुए इसे अनुचित बताया. भारत ने न सिर्फ रूस से सस्ते तेल की खरीद जारी रखी है, बल्कि BRICS करेंसी, रक्षा सौदे और ट्रेड डील पर भी अमेरिका के दबाव को ठुकराया है. भारत अब आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से सक्षम राष्ट्र बन चुका है.

IND Vs US: ट्रंप बार-बार दे रहे टैरिफ की धमकी, लेकिन भारत पर क्‍यों नहीं हो रहा असर?
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 5 Aug 2025 3:09 PM

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत अब इसकी कीमत चुकाएगा. उन्होंने धमकी दी कि भारत पर और टैरिफ लगाएगा. ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है और उसे रिफाइन करके वैश्विक बाजार में बेच रहा है. ट्रंप ने भारत पर यूक्रेन युद्ध की अनदेखी का आरोप भी लगाया.

भारत सरकार ने ट्रंप की इन धमकियों को सीधे खारिज करते हुए उन्हें 'अनुचित और अस्वीकार्य' बताया. विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि भारत की ऊर्जा नीति राष्ट्रीय जरूरतों और वैश्विक बाज़ार की यथार्थताओं पर आधारित है, न कि किसी तीसरे देश के दबाव पर. भारत ने यह भी उजागर किया कि अमेरिका और यूरोप स्वयं रूस से व्यापार कर रहे हैं, फिर भारत को नैतिकता का पाठ क्यों पढ़ाया जा रहा है? यह कोई पहला मौका नहीं है जब अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगाने की धमकी दी है.

भारत लगातार अमेरिका को ठेंगा दिखा रहा है, क्योंकि आज भारत सिर्फ एक बड़ा बाजार नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से सशक्त राष्ट्र बन चुका है. केवल जनसंख्या या क्षेत्रफल नहीं, बल्कि कूटनीतिक, सैन्य, आर्थिक और तकनीकी ताकत के बूते भारत अब किसी का मोहताज नहीं है. नीचे विस्तार से समझिए कि भारत के पास ऐसा क्या-क्या है, जिसके बल पर वह ट्रंप की टैरिफ धमकियों और अमेरिका के दबावों को नजरअंदाज कर पा रहा है.

ऊर्जा की वैकल्पिक पहुंच और रणनीतिक भंडारण

भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर ही निर्भर है. जाहिर की इस पर उसका खर्च भी सबसे ज्‍यादा होगा. ऐसे में उसके लिए अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत बनाए रखने के लिए सस्‍ती दरों पर तेल खरीद सुनिश्चित करना जरूरी है. भारत पहले ईरान से बड़ी मात्रा ने तेल की खरीद किया करता था लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ऐसा करना संभव नहीं रहा. लेकिन भारत के परंपरागत दोस्‍त रूस ने और भी कम दरों पर तेल देने का ऑफर किया जिसे भारत के लिए ठुकराना नामुमकिन था. एक तो अपनी इकोनॉमिक ग्रोथ की चुनौती, दूसरा सामने खड़ा पुराना दोस्‍त. भारत ने रूस से सस्ते तेल का विकल्प खोलकर अपनी ऊर्जा सुरक्षा को नई मजबूती दी है. इससे न केवल तेल की लागत घटी है, बल्कि भारत ने अपने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को भी बढ़ाया है. साथ ही, वह खाड़ी देशों, अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका से भी ऊर्जा संसाधन हासिल करता है, जिससे वह किसी एक देश पर निर्भर नहीं है.

बड़ी और विविध अर्थव्यवस्था

भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और 2030 तक तीसरे स्थान पर पहुंचने की ओर अग्रसर है. यहां टेक, फार्मा, स्टार्टअप, रक्षा, कृषि, डिजिटल पेमेंट, और स्पेस सेक्टर में तेज़ी से प्रगति हो रही है. इस आर्थिक ताकत ने भारत को टैरिफ या व्यापारिक धमकियों के आगे झुकने से रोक दिया है.

विशाल घरेलू बाजार और युवा जनसंख्या

भारत के पास 140 करोड़ की आबादी और दुनिया की सबसे युवा जनसंख्या है. यह बाजार विदेशी निवेशकों के लिए बेहद अहम है. अमेरिका अच्छी तरह जानता है कि भारत को खोना उसे व्यापारिक और रणनीतिक रूप से नुकसानदेह साबित हो सकता है. यही कारण है कि भारत टैरिफ जैसी धमकियों के बावजूद अपने हितों की रक्षा करने का आत्मविश्वास रखता है.

सैन्य शक्ति और सामरिक आत्मनिर्भरता

भारत अब रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. तेजस जैसे स्वदेशी लड़ाकू विमान, ब्रह्मोस मिसाइल, DRDO की तकनीक और रक्षा आयात में गिरावट इसे सैन्य रूप से आत्मनिर्भर बना रहे हैं. साथ ही भारत की तीनों सेनाओं की मौजूदगी हिंद महासागर से लेकर हिमालय तक मजबूत रणनीतिक संतुलन बनाए रखती है.

मजबूत कूटनीतिक स्थिति

भारत आज G20, QUAD, BRICS, SCO जैसे कई बहुपक्षीय मंचों का प्रभावशाली सदस्य है. वह अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, ईरान, सऊदी अरब, इजरायल और अफ्रीकी देशों – सबके साथ संतुलन बनाकर चलता है. वह किसी एक खेमे में न रहकर “मल्टी-अलाइनमेंट” की नीति पर चलता है. इससे वह अमेरिका के विरोध का असर झेलने में सक्षम है.

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अहम कड़ी

कोविड के बाद दुनिया को भारत की उत्पादन क्षमता, मेडिकल टेक्नोलॉजी और वैक्सीन डिप्लोमेसी की असली ताकत का एहसास हुआ. भारत "चाइना +1" रणनीति के तहत वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरा है, जिससे Apple, Foxconn, Samsung जैसी कंपनियां यहां शिफ्ट हो रही हैं. इससे भारत को वैश्विक व्यापार में मजबूती मिली है.

डिजिटल ताकत और टेक्नोलॉजी में बढ़त

UPI, डिजिटल इंडिया, ONDC, और AI में हो रहे निवेश ने भारत को टेक्नोलॉजी हब बना दिया है. 80 करोड़ इंटरनेट यूज़र, दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल पेमेंट नेटवर्क, और स्टार्टअप यूनिकॉर्न की बाढ़ ने उसे नवाचार की वैश्विक धुरी बना दिया है. अमेरिका को भारत के IT और डिजिटल टैलेंट की बेहद ज़रूरत है.

सार्वजनिक समर्थन और राष्ट्रीय गौरव

अमेरिका की टैरिफ धमकियों या पाकिस्तान झुकाव की नीति को भारत में केवल सरकार ही नहीं, बल्कि आम जन भी ठुकरा रहे हैं. राष्ट्रीय गर्व, स्वदेशी सोच और आत्मनिर्भर भारत के विचार ने जनता को भी मजबूती से सरकार के साथ खड़ा किया है. भारत आज राजनीतिक रूप से भी आंतरिक रूप से मज़बूत स्थिति में है.

अमेरिका किन किन मुद्दों पर बनाना चाहता है दवाब?

भारत पर अमेरिका कई अहम रणनीतिक और आर्थिक मुद्दों को लेकर दबाव बनाना चाहता है. ये सभी मुद्दे सीधे-सीधे अमेरिका के रणनीतिक हितों, व्यापारिक लाभ और वैश्विक प्रभुत्व से जुड़े हैं. अमेरिका की कोशिश है कि भारत को अपने खेमे में बनाए रखा जाए और वह ऐसे निर्णय न ले जो अमेरिका की आर्थिक और सामरिक नीतियों के विरोध में हों. नीचे विस्तार से समझिए कि अमेरिका किन-किन मुख्य मोर्चों पर भारत पर दबाव बनाना चाहता है.

खुद का तेल बेचने की कोशिश

अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदना बंद करे और अमेरिकी शेल ऑयल को ऊंचे दामों पर खरीदे. अमेरिका के पास भी बड़े ऑयल रिजर्व हैं, लेकिन उसकी तेल लागत रूस की तुलना में काफी ज्यादा है. रूस भारत को 30-35 डॉलर प्रति बैरल की दर से डिस्काउंट पर तेल बेचता है, जबकि अमेरिका का तेल 70-80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाता है. अमेरिका का दबाव है कि भारत इस “सस्ते रूसी तेल” से दूरी बनाए और अमेरिका से ऊंचे दाम में तेल खरीदे ताकि अमेरिकी ऑयल कंपनियों को लाभ हो. वहीं, भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और राष्ट्रीय हितों के आधार पर तेल खरीदता है. अमेरिका के इस दबाव को भारत ने खारिज कर दिया है क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था और महंगाई पर सीधा असर पड़ेगा.

डॉलर की बादशाहत बचाने की कोशिश

पिछले साल रूस ने BRICS देशों के लिए एक साझा करेंसी का प्रस्ताव रखा था, जिसका समर्थन भारत, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने भी किया. अमेरिका को डर है कि अगर यह करेंसी डॉलर के विकल्प के रूप में उभरी, तो उसकी वित्तीय प्रभुता को सीधी चुनौती मिलेगी. इसलिए ट्रंप प्रशासन भारत पर दबाव बना रहा है कि वह ब्रिक्स करेंसी से किनारा कर ले या इसमें सक्रिय भूमिका न निभाए. भारत सतर्कता से इस विचार को देख रहा है. वह डॉलर पर निर्भरता कम करने के पक्ष में है, लेकिन चीन के वर्चस्व वाली किसी भी करेंसी को लेकर सावधान भी है. अभी भारत ने संतुलन बनाए रखा है, लेकिन अमेरिकी दबाव लगातार बढ़ रहा है.

F-35 विमान और रक्षा बाजार में दखल

अमेरिका चाहता है कि भारत अपने रक्षा सौदों में रूस की बजाय अमेरिका को प्राथमिकता दे. खासकर F-35 जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को लेकर अमेरिका भारत पर दबाव डाल रहा है. भारत लंबे समय से फ्रांस, रूस और घरेलू कंपनियों से रक्षा सौदे कर रहा है. अमेरिका चाहता है कि वह रूस के साथ ब्रह्मोस या S-400 जैसे प्रोजेक्ट्स से दूरी बनाए और अमेरिका के हथियारों पर निर्भर हो जाए. भारत अब आत्मनिर्भर रक्षा नीति की ओर बढ़ रहा है. वह अमेरिका के हथियारों की तकनीक ट्रांसफर नहीं करने की नीति से असहमत है. भारत खुद के प्लेटफॉर्म जैसे तेजस, अरिहंत, INS विक्रांत, अग्नि सीरीज आदि को प्राथमिकता दे रहा है.

ट्रेड डील का दबाव

अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार को खासतौर पर कृषि, डेयरी और GM (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों के लिए खोले. भारत से कहा जा रहा है कि वह अमेरिकी डेयरी उत्पाद, सोयाबीन, कॉर्न, GM गेहूं और मांसाहारी चारे से बने डेयरी उत्पादों को बिना शुल्क के भारत में आने दे. साथ ही अमेरिका FDI नियमों में भी ढील चाहता है. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने टैरिफ को कम करे और अमेरिकी कंपनियों के लिए “अनुकूल व्यापारिक माहौल” बनाए. भारत के किसान और डेयरी सेक्टर के लिए यह आत्मघाती कदम हो सकता है. देश की लगभग 60% आबादी खेती और पशुपालन पर निर्भर है. भारत ने इन मुद्दों पर डब्ल्यूटीओ में भी विरोध जताया है और अमेरिका की इस मांग को अब तक नहीं माना है.

डोनाल्ड ट्रंपनरेंद्र मोदी
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