दशकों बाद पाकिस्तान फिर बंटवारे की ओर? एक्सपर्ट बोले: देश और बंटेगा, लेकिन सुधरेगा नहीं
पाकिस्तान एक बार फिर नए प्रांत बनाने की योजना के कारण राजनीतिक और प्रशासनिक भूचाल के केंद्र में है. संघीय संचार मंत्री अब्दुल अलीम खान ने घोषणा की है कि पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा को बांटकर कुल 12 प्रांत बनाए जाएंगे, दावा करते हुए कि इससे प्रशासन और सेवा वितरण में सुधार होगा. यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब बलूचिस्तान और KP में अलगाववाद और हिंसा तेज़ है. योजना को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ की गठबंधन सरकार की कई पार्टियों, जिनमें MQM-P भी शामिल है, का समर्थन मिला है - लेकिन सिंध की PPP ने इसे सख्ती से खारिज करते हुए चेतावनी दी है कि प्रांत का विभाजन किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं होगा.
पाकिस्तान और “डिविजन” शब्द साथ आते ही दिमाग तुरंत 1971 की ओर चला जाता है - जब देश दो हिस्सों में बंटा था और पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बना. लेकिन इस बार जो बंटवारे की बात हो रही है वह भौगोलिक या राजनीतिक विघटन का नहीं, बल्कि प्रांतों को तोड़कर नए छोटे-छोटे प्रांत बनाने की है. पाकिस्तान की मौजूदा सरकार इसे प्रशासनिक सुधार का नाम दे रही है, लेकिन विशेषज्ञों की नजर में यह कदम देश को और गहरे संकट की ओर धकेल सकता है.
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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, बीते रविवार को पाकिस्तान के संघीय संचार मंत्री अब्दुल अलीम खान ने घोषणा की कि छोटे-छोटे प्रांत “हर हाल में बनाए जाएंगे” क्योंकि इससे गवर्नेंस और सेवा वितरण बेहतर होगा. यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के भीतर बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा (KP) में अलगाववाद की भावनाएं और आतंक-संबंधी हिंसा लगातार बढ़ रही हैं. सरकार का दावा है कि बड़े प्रांत प्रशासन को कमजोर बनाते हैं और छोटे प्रांत समाधान हैं - लेकिन देश के कई वरिष्ठ प्रशासक और विशेषज्ञ इससे असहमत दिखाई देते हैं.
आजादी के समय पाकिस्तान में थे पांच प्रांत
आजादी के समय पाकिस्तान में पांच प्रांत थे - ईस्ट बंगाल, वेस्ट पंजाब, सिंध, नॉर्थ- वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस (NWFP) और बलूचिस्तान. 1971 में पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बना. वेस्ट पंजाब नया पंजाब बना, NWFP का नाम बदलकर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा किया गया और सिंध व बलूचिस्तान जस के तस रहे. तब से लेकर आज तक पाकिस्तान में नए प्रांत बनाने का मुद्दा समय-समय पर गरमाता रहा है लेकिन हर बार राजनीतिक असहमति या संघीय विवाद में फंसकर खत्म हो जाता है.
शहबाज सरकार को बड़े राजनीतिक दलों का खुला समर्थन
इस बार मामला इसलिए अलग है क्योंकि नए प्रांतों के प्रस्ताव को कई थिंक-टैंक, बड़ी राजनीतिक पार्टियां और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ की गठबंधन सरकार के प्रमुख घटक खुलकर समर्थन दे रहे हैं. अब्दुल अलीम खान के मुताबिक, पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और KP - चारों को मिलाकर कुल बारह प्रांत बनाने की योजना है यानी प्रत्येक मौजूदा प्रांत से तीन-तीन नए प्रांत. खान का तर्क है कि पड़ोसी देशों में छोटे प्रांत हैं और इसलिए बेहतर प्रशासन मिलता है. मगर विरोध का स्वर सबसे ज़्यादा सिंध से उठ रहा है. सिंध की सत्ताधारी पार्टी PPP के मुखिया बिलावल भुट्टो जर्दारी और मुख्यमंत्री मुराद अली शाह पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि सिंध को तोड़ने की किसी भी कोशिश को “किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा” - क्योंकि उन्हें डर है कि इससे कराची क्षेत्र राजनीतिक रूप से अलग हो सकता है.
प्रस्ताव का समर्थन MQM-P ने भी किया है, जो कराची के शहरी क्षेत्रों की सबसे प्रभावशाली पार्टी है. MQM-P यहां तक कह चुकी है कि वह 28वें संवैधानिक संशोधन के ज़रिए नए प्रांतों के लिए संसद में कानूनी लड़ाई लड़ेगी. साफ है कि यह मुद्दा जितना प्रशासनिक बताया जा रहा है, उतना ही राजनीतिक और जातीय ध्रुवीकरण से जुड़ा हुआ भी है.
पाकिस्तान के लिए खतरनाक मोड़
लेकिन विशेषज्ञ इस प्रस्ताव को पाकिस्तान के लिए ख़तरनाक मोड़ मानते हैं. कराची-आधारित द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के लिए लिखे अपने आर्टिकल में पाकिस्तान के पूर्व शीर्ष अफ़सर और पुलिस प्रमुख सैयद अख्तर अली शाह ने साफ कहा कि “पाकिस्तान की समस्या प्रांतों की संख्या नहीं है, बल्कि शासन की कमजोरी, कानून का असमान लागू होना और जवाबदेही का अभाव है. सिर्फ प्रांत बढ़ाने से ये समस्याएं और गहरी होंगी.” उनका कहना है कि पाकिस्तान ने अलग-अलग शासन मॉडल आज़माए - आयूब ख़ान की दो-प्रांत व्यवस्था से लेकर बेसिक डेमोक्रेसी तक - लेकिन नतीजा हर बार असंतोष और असमानता ही रहा. नए प्रांत बनेंगे तो नौकरशाही बढ़ेगी, खर्च बढ़ेगा और संसाधनों की लड़ाई और तीखी होगी.
छोटे टुकड़ों में बांटना समाधान नहीं
पाकिस्तानी थिंक-टैंक PILDAT के अध्यक्ष अहमद बिलाल मेहबूब भी यही राय रखते हैं. Dawn अख़बार में लिखते हुए उन्होंने कहा कि प्रशासनिक ढांचे को छोटे टुकड़ों में बांटना समाधान नहीं, बल्कि समस्या को जटिल बनाने जैसा है. उनका मानना है कि “बड़े प्रांत मसला नहीं हैं; असली मसला यह है कि स्थानीय स्तर पर सत्ता का हस्तांतरण नहीं किया जा रहा.” यानी जिलों, तहसीलों और नगर पालिकाओं को अधिकार दिए बिना प्रांत बनाना सिर्फ सतही बदलाव होगा - वास्तविक विकेंद्रीकरण नहीं.
असहमति वाले प्रांतों को काटना चाहती है सेना और शहबाज सरकार
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर पाकिस्तान वास्तव में स्थिरता चाहता है तो उसे प्रांतों को बांटने के बजाय स्थानीय सरकारों को मजबूत करना होगा ताकि प्रशासन निचले स्तर पर जवाबदेह बन सके. लेकिन मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था की विडंबना यह है कि केन्द्र सरकार और सेना चाहती है कि असहमति वाले प्रांत टूटें - और प्रांतीय सरकारें चाहती हैं कि नगर पालिकाएं कमजोर रहें. यही वजह है कि यह “प्रांतीय विभाजन मॉडल” एक राजनीतिक शॉर्टकट की तरह दिखाई देता है - जिसे जल्दबाजी में लागू किया गया तो साम्प्रदायिक तनाव, संसाधनों की लड़ाई और अलगाववादी भावनाएं और उभर सकती हैं.
प्रांतों की संख्या बढ़ने से पाकिस्तान और बंटेगा, लेकिन सुधरेगा नहीं
पाकिस्तान आर्थिक संकट, कर्ज और आंतरिक हिंसा से जूझ रहा है. ऐसे समय में नए प्रांत बनाना इस बात का संकेत हो सकता है कि केंद्र सरकार असहमति को कुचलने के लिए प्रशासनिक पुनर्गठन का रास्ता चुन रही है. लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि असली समस्या - भ्रष्टाचार, कमजोर संस्थाएं, सैन्य दखल और जवाबदेही का अभाव - जैसी हैं वैसी ही रहीं, तो प्रांतों की संख्या बढ़ने से पाकिस्तान और बंटेगा, लेकिन सुधरेगा नहीं.





