इंदिरा गांधी को 'तुम' कहकर क्यों बुलाते थे सैम मानेकशॉ? भारत के पहले फील्ड मार्शल की पूर्व पीएम के साथ कुछ ऐसी थी ट्यूनिंग
भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'तुम' कहकर बुलाते थे. इसके पीछे की वजह बहुत कम लोगों को मालूम है. आज हम आपको बताएंगे कि इंदिरा के साथ मानेकशॉ की ट्यूनिंग कैसी थी... लेकिन उससे पहले आप यह जान लीजिए कि 1973 में इंदिरा गांधी ने ही उन्हें 'फील्ड मार्शल' की उपाधि दी थी, जो अब तक भारत में बहुत कम लोगों को मिली है.
Indira Gandhi and Sam Manekshaw: 3 अप्रैल 1914... यही वह तारीख है, जब पंजाब के अमृतसर में सैम होर्मूसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ का जन्म होता है, जो आगे चलकर भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ के रूप में पहचाने गए. आज उनकी जयंती है. वे 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख थे. उनके नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को पराजित किया था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश अस्तित्व में आया.
जनरल सैम मानेकशॉ बेबाक स्वभाव के थे. वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी 'तुम' कहकर संबोधित करते थे. इंदिरा ने 1973 में मानेकशॉ को भारत के पहले फील्ड मार्शल के रूप में सम्मानित किया.
इंदिरा गांधी और मानेकशॉ के बीच कैसा था रिश्ता?
इंदिरा गांधी और सैम मानेकशॉ के बीच आपसी सम्मान गहरा था. इंदिरा ने हमेशा मानेकशॉ की सलाह को तवज्जो दी. जब 1971 की जंग की योजना बनाई जा रही थी, उस समय इंदिरा गांधी ने मानेकशॉ से पूछा, क्या आप युद्ध के लिए तैयार हैं? इस पर मानेकशॉ ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया- मैं हमेशा तैयार हूं, पर तुम चाहती हो कि मैं अभी जाऊं? यह सुनकर इंदिरा गांधी मुस्कुरा दीं और उनकी राय पर अमल किया.
इंदिरा गांधी को 'तुम' कहकर क्यों बुलाते थे सैम मानेकशॉ?
- दरअसल, सैम मानेकशॉ और इंदिरा गांधी एक-दूसरे को बहुत पहले से जानते थे, जब इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. उनकी पहली मुलाकात द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई थी. उस समय मानेकशॉ सेना में अधिकारी थे. इस पुरानी जान-पहचान के कारण मानेकशॉ का इंदिरा गांधी से अनौपचारिक रिश्ता रहा.
- 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, जब इंदिरा गांधी ने उनसे पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सैन्य कार्रवाई पर चर्चा की, तब भी उन्होंने उन्हें 'तुम' कहकर संबोधित किया. हालांकि, इंदिरा गांधी ने कभी इस पर आपत्ति नहीं जताई, क्योंकि वे मानेकशॉ की प्रतिभा और स्पष्टवादिता को पसंद करती थीं.
बांग्लादेश में सैन्य हस्तक्षेप करने पर इंदिरा से क्या बोले थे मानेकशॉ?
मार्च 1971 में इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सैन्य हस्तक्षेप करने पर चर्चा की, तो मानेकशॉ ने कहा कि भारतीय सेना अभी तैयार नहीं है और मानसून के कारण अभियान मुश्किल होगा. उन्होंने कहा, "अगर आप चाहती हैं, तो मैं तुरंत युद्ध में चला जाऊंगा, लेकिन अभी हालात हमारे पक्ष में नहीं हैं. मानसून आने वाला है, युद्ध के लिए जरूरी उपकरण तैयार नहीं हैं... और सैनिकों को पूरी तरह से तैयार करने के लिए कुछ महीनों की जरूरत है."
इंदिरा गांधी ने उनकी राय का सम्मान किया और युद्ध की रणनीति को सही समय तक टाल दिया. दिसंबर 1971 में 16 दिन का युद्ध हुआ, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश का निर्माण करवाया.
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर किया हमला
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया. भारतीय सेना ने मानेकशॉ के नेतृत्व में 13 दिन में ही पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. 16 दिसंबर 1971 को जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश एक नया स्वतंत्र देश बना.
सैम मानेक शॉ के बारे में महत्वपूर्ण बातें
- सैम मानेकशॉ ने 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून में प्रवेश लिया और 1934 में ब्रिटिश भारतीय सेना में अधिकारी बने।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में बर्मा (म्यांमार) के मोर्चे पर लड़ते हुए उन्हें गंभीर गोली लगी थी, लेकिन वे बच गए और जल्दी ही सेना में लौट आए।
- जब पाकिस्तान में बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) के नागरिकों पर अत्याचार बढ़े, तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से युद्ध पर राय ली. मानेकशॉ ने कहा कि युद्ध के लिए तुरंत तैयार नहीं हैं, लेकिन सही समय पर कार्रवाई से भारत को पूर्ण विजय मिलेगी.
- 3 दिसंबर 1971 को युद्ध शुरू हुआ और केवल 13 दिनों में पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया.
- 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए, जो इतिहास में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था.
- मानेकशॉ की वीरता और रणनीति को सम्मान देते हुए 1973 में इंदिरा गांधी ने उन्हें 'फील्ड मार्शल' की उपाधि दी, जो अब तक भारत में बहुत कम लोगों को मिली है.
- वे भारतीय सेना के सबसे सम्मानित जनरल माने जाते हैं. 1971 युद्ध के कारण उन्हें भारत के महानतम सैन्य अधिकारियों में गिना जाता है. उनकी रणनीतियां आज भी भारतीय सेना में पढ़ाई जाती हैं.
- 27 जून 2008 में 94 साल की उम्र में वेलिंगटन, तमिलनाडु में मानेकशॉ ने अंतिम सांस ली.
'मैं इस्तीफा दे दूंगा और आप इसे स्वीकार कर लेंगी'
सैम मानेकशॉ अपनी स्पष्टवादिता और हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन उन्होंने हमेशा इंदिरा गांधी का सम्मान किया. एक बार, जब इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि अगर वह उनके निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो क्या होगा, तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, "तो मैं इस्तीफा दे दूंगा और आप इसे स्वीकार कर लेंगी." इंदिरा गांधी ने उनकी रणनीतिक सोच और नेतृत्व क्षमता की सराहना की.





